गया का आध्यात्मिक महत्व प्राचीन ग्रंथों और पांडुलिपियों में भी मिलता है, जहाँ इसे गयापुरी या गयाशीर्ष कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान है जहाँ भगवान विष्णु ने राक्षस गयासुर से युद्ध किया था, युद्ध के बाद भगवान् विष्णु की शरण में आने के बाद गयासुर के ऊपर भगवान स्थापित हुए जिससे यह क्षेत्र पवित्र हो गया। गया का उल्लेख रामायण और महाभारत महाकाव्यों में भी मिलता है, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को और बढ़ा देता है। गया में महत्वपूर्ण स्थान हैं-
- विष्णु पद
- अक्षय वट
- फल्गु नदी
- बोधगया
पिंडदान एक पवित्र अनुष्ठान है जो किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद किया जाता है, और यह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति का एकमात्र उपाय है। पिंडदान को किसी प्रियजन द्वारा मृतक व्यक्ति के लिए एक आवश्यक संस्कार माना जाता है। मृतकों के वंशजों के द्वारा अपने पूर्वजों को पिंडदान के द्वारा मुक्ति का सबसे महत्वपूर्ण और आवश्यक संस्कार माना जाता है। इस संस्कार समारोह का उद्देश्य आत्मा की अंतिम मोक्ष की यात्रा को सरल बनाना है, और यह भी माना जाता है कि यदि पिंडदान पूरा हो जाता है, तो आत्मा का पुनर्जन्म का चक्र छुट जाता है । यह पिंडदान , श्राद्ध अनुष्ठान जीवित परिवार को आशीर्वाद और शुभकामनाएँ देते है ।
पिंडदान श्राद्ध समारोह की प्रक्रियाएँ:
पूजा में निम्नलिखित मुख्य चरण शामिल हैं:
- पिंड प्रदान करना: पूर्वजों को घी, शहद, चीनी, दूध और दही से बने पिंड (चावल के गोले)अर्पित करना है। पिंड प्रदान को पूरी एकाग्रता और विश्वास के साथ किया जाना चाहिए।
- तर्पण: जल के साथ तिल, जौ, चावल चढ़ाने की क्रिया है। .
- ब्राह्मण भोजन: ब्राह्मण को भोजन देना वार्षिक श्राद्ध पूजा का एक अनिवार्य हिस्सा है।
संपूर्ण पिंडदान समारोह, श्राद्ध के प्रकार पर निर्भर करते हुए, 45 मिनट से 1:30 घंटे तक चलता है।
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