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ब्रह्मांड का विनाश अथवा लय
डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी ( धर्मज्ञ )-
Mystic Power- समय-समय पर ब्रह्मांड में घटित होनेवाले लय/विनाश के प्रकार निम्नलिखित हैं – ४.१.१ प्रलय (प्रत्येक ४.३२ बिलियन वर्ष)
प्रलय का अर्थ है – ब्रह्मांड का लय क्या नष्ट हो जाता है ? जब प्रलय होता है, तब भूलोक (आकाशगंगा सहित आदि), निम्नलोक (भूवर्लोक), नरक (पाताल) के ७ लोक, स्वर्ग आदि सभी का विनाश होता है ।शेष क्या रहता है ?
उच्चतर सकारात्मक सूक्ष्म लोक जैसे महर्लोक, जनलोक, तपलोक और सत्यलोक वैसे ही रहते हैं ।
उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी (ब्रह्मा), पोषण के लिए उत्तरदायी (विष्णु) तथा लय/विनाश के लिए उत्तरदायी (महेश) ईश्वर के ये तत्व वैसे ही रहते हैं ।
यह कब होता है ?
यह प्रत्येक ४.३२ बिलियन वर्ष अथवा १००० चक्र अथवा ब्रह्माजी के १ दिन (१ कल्प) में एक बार होता है । प्रलय के उपरांत उत्पत्ति को कार्यान्वित होने और सत्ययुग के आरंभ के लिए ४.३२ मिलियन वर्ष की आवश्यकता होती है ।
उत्पत्ति को कार्यान्वित होने के लिए कुछ समय व्यतीत होने की आवश्यकता होती है । लय के उपरांत, उत्पत्ति की क्रिया तत्काल प्रारंभ होती है; परंतु उसे दृश्यमान अवस्था में आने में ४.३२ मिलियन वर्ष लगते हैं ।
महाप्रलय (प्रत्येक ४३२ बिलियन वर्ष) श्रीब्रह्माजी (उत्पत्ति तत्त्व) के प्रत्येक १०० दिनों (४३२ बिलियन वर्षों) में महाप्रलय आता है ।
महाप्रलय में संपूर्ण ब्रह्मांड का लय होता है अर्थात ब्रह्मांड के ७ सकारात्मक और नकारात्मक लोकों का । इसमें उत्पत्ति, पोषण और लय/विनाश के उत्तरदायी ईश्वर के तत्त्वों का भी विघटन होता है । केवल परमेश्वर निर्गुण अवस्था में रहते हैं ।
आधुनिक विज्ञान और अध्यात्मशास्त्र के दृष्टिकोण में अंतर आधुनिक विज्ञान की मान्यता है कि ब्रह्मांड की आयु १३ बिलियन वर्ष है । आधुनिक विज्ञान और अध्यात्मशास्त्र के दृष्टिकोण में अंतर का प्रमुख कारण ब्रह्मांड की उत्पत्ति, पोषण तथा विनाश के सिद्धांत को समझने के लिए आवश्यक छठी इंद्रिय क्षमता (संतों की तुलना में) का अभाव है ।
ब्रह्मांड और मानवजाति के सृजन पर अन्य विविध बिंदु ब्रह्मांड की उत्पत्ति के विषय में आध्यात्मिक शोध द्वारा प्राप्त कुछ अन्य बिंदु निम्नलिखित हैं ।
प्रश्न : मनुष्यों से परिपूर्ण इस वर्तमान सघन स्थिति तक पहुंचने में पृथ्वी को कितना समय लगा?
उत्तर: एक बार जब ब्रह्मांड खुली आंखों से दिखने योग्य हो जाता है तब वह संपूर्णता से तत्काल प्रकट होता है । पृथ्वी के रहने योग्य बनने तथा सत्ययुग का प्रारंभ होने के पूर्व पृथ्वी का कोई ऋतुकाल नहीं था ।
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
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