षट्कर्म की विधि महात्म्य
श्री बृज रतन व्यास
Mystic Power– मंत्र विद्या में शांति, वश्य, स्तंभन, उच्चाटन, मारण व विद्वेषण इन उह कर्मों (षट्कर्मों) की प्रसिद्धि है, किंतु कई मंत्र-विशारद इसमें दस कर्मों का निरूपण करते हैं। इस आलेख में इनके संपादन की विधि, आधार और प्रभाव पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।
शांति का रोग, ग्रह पीड़ा, उपसर्ग एवं भय का शमन हो, उसे शांति कर्म कहते हैं।
स्तंभन
जिस मंत्र के द्वारा मनुष्य तथा पशु-पक्षी आदि जीवों की गति एवं हलचल का विरोध हो, उसे स्तंभन कर्म कहते हैं।
मोहन
जिस मंत्र के द्वारा मनुष्य एवं पशु-पक्षी आदि मोहित हों, उसे मोहन या सम्मोहन’ कहते हैं। मैस्मेरिज्म, हिप्नोटिज्म इसी के अंग है।
उच्चाटन
जिस मंत्र के प्रयोग से व्यक्ति अपने स्थान से भष्ट हो जाये तथा मान-सम्मान खो दे, उसे उच्चाटन कर्म कहते हैं।
आकर्षण
जिस मंत्र के प्रयोग से किसी व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित किया जा सके उसे आकर्षण कर्म’ कहते हैं।
जंभण
जिस मंत्र के प्रयोग से मनुष्य आदि प्रयोगकर्ता की सूचनानुसार कार्य करें, उसे श्रृंभणकर्म’ कहते हैं।
विद्वेषण
जिस मंत्र के द्वारा दो मित्रों के बीच फूट पड़े या संबंध टूट जाये उसे विद्वेषण कर्म’ कहते हैं।
मारण
जिस मंत्र के द्वारा मनुष्य आदि की मृत्यु हो जाये, उसे मारण कर्म’ कहते हैं।
पौष्टिक
जिस मंत्र के प्रयोग से धन-धान्य, सौभाग्य, यश व कीर्ति आदि में वृद्धि हो, वह पौष्टिक कर्म’ कहलाता है।
वशीकरण
जिस मंत्र के द्वारा अन्य व्यक्ति को वश में किया जा सके और वह व्यक्ति जैसा कहा जाये, वैसा ही करे, उसे वशीकरण कर्म’ कहते हैं। पटकर्मों के देवता शांति कर्म की रति, वशीकरण की वाणी, स्तभन की रमा, विद्वेषण की ज्येष्ठा, उच्चाटन की दुर्गा व मारण की देवता कालीजी हैं। षटकर्मों की दिशा शांति कर्म के लिये ईशान दिशा, वशीकरण उत्तर, स्तंभन पूर्व, विवेषण नैर्ऋत्य, उच्चाटन वायव्य कोण तथा मारण में अग्नि कोण प्रशस्त माना गया है।
षट्कर्मों की ऋतु: सूर्योदय से १० घड़ी (ढाई घड़ी का एक घंटा होता है) इस प्रकार प्रति चार घंटे के बाद ऋतुएं दैनिक स्तर पर बदलती हैं। क्रमशः वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, हेमन्त तथा शिशिर ऋतु रहती हैं।
तिथि, वार आदि का नियम शांति कर्म में द्वितीया, तृतीया, पंचमी तथा सप्तमी तिथियां।
पुष्टिकर्म में गुरुवार, सोमवार की षष्टी के अतिरिक्त चतुर्थी, त्रयोदशी, नवमी, अष्टमी व दशमी तिथियां उपयुक्त होती हैं।
दशमी, एकादशी, अमावस्या तथा नवमी एवं प्रतिप्रदा शुक्र एवं शनिवार आकर्षण कर्म के लिये प्रशस्त कहे गये हैं।
पूर्णिमा तिथि में सोमवार या रविवार हो अथवा अष्टमी तिथि हो तब विशेषकर प्रक्षेप के समय उच्चाटन का प्रयोग करना चाहिये।
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, अष्टमी एवं अमावस्या तिथि एवं शनिवार या भौमवार को मारण कर्म करना चाहिये।
बुधवार या सोमवार को पंचमी के दिन दशमी तथा पूर्णिमा तिथि को स्तंभन करना चाहिये।
शुभ ग्रहों के उदय में शांति पुष्टि आदि शुभ कर्मों को तथा अशुभ ग्रहों के समय मारण आदि क्रियाओं को करना चाहिये।
रिक्ता तिथि व रविवार को विद्वेषण, उच्चाटन आदि क्रूर कर्म करना चाहिये।
महेंद्र तथा वरुण मंडल के नक्षत्रों में स्तंभन, मोहन तथा वशीकरण का अनुष्ठान सिद्धिदायक होता है। वहीं मंडल तथा वायुमंडल गत नक्षत्रों में विद्वेषण एवं उच्चाटन आदि क्रियाओं को करना चाहिये।
इसी प्रकार मृत्यु योगों में मारण कर्म उचित है। नक्षत्र विधान अग्नि, वरुण, महेंद्र तथा वायुमंडल में नक्षत्र विधान निम्न प्रकार से बताया गया है।
१. महेंद्र मण्डन हस्ति सर्वकर्म प्रसिद्धिम।
२. वरुण मंडन स्यायुत्तरा भद्रपदा मूल शतभिषा तथा पूर्वा भाद्रपदा आश्लेषा, श्रेया वरुणामध्या। वायुमंडल : विशाखा, कृतिका, पूर्वा फाल्गुनी, रेवती तथा वायुमंडल मध्यस्थ सत्तकर्मा प्रसिद्धाः (ज्येष्ठा, उत्तराषाढा, अनुराधा तथा रोहिणी ये चार नक्षत्र महेंद्र मंडल में बताये जाते हैं। उत्तराभाद्रपद, मूल, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद तथा आश्लेषा पांच वरुण मंडल’ के हैं। स्वाति, हस्त, मृगशिरा, चित्रा, उत्तराफाल्गुनी, पुष्य और पुनर्वसु ये सात अग्नि मंडल के हैं। आश्विनी, भरणी, आर्दा, धनिष्ठा, श्रवण, मघा, विशाखा, कृतिका, पूर्वाफाल्गुनी तथा रेवती ये दस नक्षत्र वायुमंडल के हैं। शांति एवं पुष्टि कर्म दिन के अंतिम भाग में तथा मारण कर्म संध्याकाल में करना चाहिये। षटकर्मों के देवताओं का वर्णभेद वशीकरण, आकर्षण व क्षोभण कार्यों के लिये देवता का शुभ वर्ण में ध्यान करना चाहिये। स्तंभन में पीत, उच्चाटन में धूम वर्ण, उन्माद में लोहित वर्ण व मारण में कृष्ण वर्ण का ध्यान करना चाहिये।
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