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अद्वैत का माध्यम श्री ललिता रुद्रम त्रिशती
सुश्री नारायणी-
Mystic Power – जीवन मे प्रेम के महत्त्व को हर प्राणी समझता है। पशु पक्षी को भी प्रेम भाव का अनुभव शीध्र ही हो जाता है,यदि किसी भी पशु पक्षी, प्राणी को प्रेम भाव से स्पर्श किया जाय, तो उसके भीतर,भय या भय से आने वाली प्रतिक्रिया शान्त हो जाती है।
मनुष्य का मूल स्वरूप प्रेम ही है,और उसका एक प्रेमी भी होता है, किन्तु यदि प्रेमी की कल्पना हो, और उसका अनुभव जीवन मे न उतरे, तो द्वैत का भाव बना रह जाता है।
ईश्वर के साथ, की गई भक्ति भी इसी प्रकार है। यदि प्रेमी और ईश्वर के बीच एक दूरी बनी हुई है और द्वैत का भाव है, तो अभी भक्ति को और निखारने की आवश्यकता है।
इसी अद्वैत में उतरने का एक अद्भुत माध्यम है, श्री ललिता रुद्रम त्रिशती। ईश्वर को अपने भीतर अनुभव करना। जगतजन्नय्यै जगतेक पितरे, जगत की जननी मां अम्बा और जगत के पिता(शिव) वो तो बस एक ही है, और हम सब उसकी सन्तान।
जगत की जननी मां भगवती और पिता रुद्र रूप शिव को एक साथ अपने भीतर अनुभव करना, इसी का नाम है, श्री ललिता रुद्रम त्रिशती।
हम सब जानते है, अगस्त्य मुनि और मां लोपा मुद्रा दोनों ही माँ भगवती के अनन्य भक्त रहे हैं। अगस्त्य मुनि ने हयग्रीव ऋषि से आग्रह किया कि मां के सहस्त्र नाम की साधना कर के भी तृप्ति नहीं हो रही है, कुछ रहस्यमयी है जो जानने की अनन्य इच्छा है, ऐसा विचार कर वे हयग्रीव ऋषि के चरणों मे सिर रख कर , कई वर्षों तक साधना में रत रहे। हयग्रीव ऋषि भी माँ ललिता के साथ धयानस्थ रहे।
बहुत लंबा समय बीतने के बाद, हयग्रीव ऋषि को मां ललिता से आदेश मिला, अगस्त्य मुनि और मां लोपामुद्रा मेरे अनन्य भक्त है, इन्हें ललिता त्रिशती का रहस्य प्रदान करो। इस प्रकार ह्यग्रीव ऋषि ने अगस्त्य मुनि को ललिता त्रिशती की साधना प्रदान करी।
जिस प्रकार ललित त्रिशती एक दिव्य ग्रन्थ है और मनुष्य के जीवन के विकास में सहायक है, उसी प्रकार श्री रुद्रम भगवान रुद्र से की गई एक दिव्य प्रार्थना है, जो हमें हमारे प्रारब्ध से मुक्त कराने में सहायक है।
श्री रुद्रम, 3000 साल से भी ज्यादा प्राचीन, संस्कृत भाषा मे लिखी गई, मन्त्रात्मक तरंगें है, जिसमें भक्ति, रहस्य और ईश्वर के प्रेम में लय बद्ध हो अद्वैत का अनुभव है।
भगवान रुद्र को संघार का कारक माना जाता है। सत्य ही है, अज्ञानता के अंधकार के संघारक, ज्ञान के प्रकाश को फैलाने वाले भगवान रुद्र।
ऎसे भगवान रुद्र को अपने ही कर्मों के भार से मुक्ति के लिए की गई प्रार्थना, औऱ अपने जीवन में शुभता का भंडार जागृत हो , इस धन्यवाद व नमन के भाव का समन्वय श्री रुद्रम।
शिव का मायना ही है, शुभता।
22 अनुछंदों में भगवान रुद्र से की गई प्रार्थना, श्री रुद्रम।
11 नमकम के औऱ 11 चमकम के भाग हैं।
नमकम भाग में, अपने जीवन में प्रारब्ध के कारण, माया बन्धनों में उलझा मनुष्य नमन कर प्रार्थना करता है, समर्पण करता है।
चमकम, अपने जीवन को हर प्रकार से प्रकाशित करने के लिए मांग करना है। जब ईश्वर से एक सम्बन्ध स्थापित हो जाये, तब मांग कर कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है।
इस, कली काल में, इन दो ग्रन्थों को एक साथ, अपने जीवन में उतारना लगभग असंभव है, और यदि संस्कृत का ज्ञान न हो तो प्रश्न ही नहीं उठता।
किन्तु वर्तमान परिस्थितियां, कली की प्रधानता, ईश्वर से दूर होने के कारण, भीतर की अज्ञानता प्रगाढ़ रूप लेती है।और मनुष्य जीवन की माया में फंस जाता है।
किसी भी मनुष्य के भीतर तीन की अज्ञानता होती है,
1 शरीर बोध ~मैं यह शरीर मात्र हूँ, यह अज्ञानता गुलामी के कारण हमारे भीतर उतपन्न हुई है।अन्यथा हर भारतीय ऋषयों की संतान है, अतः उसे अपने स्थूल के साथ साथ सूक्ष्मता का ज्ञान है, किन्तु गुलामी का दौर इतना लंबा रहा की शरीर बोध की अज्ञानता हमारे भीतर भर दी गयी।
2 जितना मुझे पता है बस वही सत्य है
इस ब्रह्मांड में अनन्त का ज्ञान व्याप्त है, हर क्षण न्यूनता से भरा है, हर क्षण में कुछ नया छिपा है किंतु हमारा अहंकार अनन्त को छोटा करना चाहता है।
3 मेरी इंद्रियां है अतः जीवन का लक्ष्य सुख की प्राप्ति है।इन्द्रियों को रस प्रदान करना है, बस जीवन इतना ही है।
इन्हीं तीन अज्ञानताओं में मनुष्य अपने आराम के काराग्रह में कैद हो जाता है और तप से वंचित रह जाता है।
भगवान ने राम रूप में जन्म लिया तो भी तप को ही प्रधानता दी है।
जिस प्रकार मनुष्य के जीवन में वायु के बिना श्वास रुक जाएगा, उसी प्रकार ईश्वर से, शुभता से या शिव से टूट कर हम मृत है।अपनेआपको ईश्वर से जोड़े रखने के लिए तप की डोर आवश्यक है। तप में स्वाद ढूंढ कर ही हम अज्ञानता की परतों से मुक्त हो सकते हैं, अपने ईश्वर से जुड़ सकते हैं।
प्रकृति में जन्में हैं तो किसी न किसी जीवन में ईश्वर को जानना ही है, और ऐसा करने के दो ही मार्ग हैं
1 ब्रह्माणड को जानें, वेद उपनिषद, शास्त्रों को जानें, ऐसा करने में बहुत समय लग जाएगाऔर इस ज्ञान को जानने में प्रकाश से भी तीव्र गति से चलना होगा।
दूसरा मार्ग है, ब्रह्माणड को जानने की बजाए उसके बीज को समझ लें। बीज स्वरूप को जानने का मार्ग ही है श्री ललिता रुद्रम त्रिशती।
जब गुरु की शक्ति, ह्रदय में प्रेम बनकर बहती है, तो भीतर के विकारों को बहा देती है, और हमे महादेव से जोड़ देती है। वो अवस्था जब शिवशिवा से अपना रिश्ता हो।
यह सम्भव है, गुरु के तप की शक्ति, मां भगवती की शक्ति और शिव की शक्ति से, और तीनोँ का सँग्रह है, श्री ललिता रुद्रम त्रिशती।
पृथ्वी अपने उच्च के आयाम की ओर आगे बढ़ रही है, और हम इसमें सहायक बन सकें, इसके लिए, डॉ अवधूत शिवानंद जी ने बीज रूप में एक महाग्रन्थ प्रदान किया है श्री ललिता रुद्रम त्रिशती।
सनातन की उत्पत्ति वेदों से हुई है, जिन्हें सिद्धों ने अपनी साधना में सुना है। और फिर सामान्य मनुष्य के लिए उसकी रचना की।
किन्तु वेदों से पहले एक ही चेतना(शिव) विद्यमान थी।फिर शिव का डमरू बजा, जिसे विज्ञान ने भी स्वीकारा है, शिव के डमरू के नाद से बीज की उत्पत्ति हुई।
यहीं से वेद, पुराण, सत्त चित्त आनन्द और तुरीयातीत की रचना हुई।
यही है बीजमन्त्रात्मक श्री ललिता रुद्रम त्रिशती। बीज की दीक्षा कीमती है, यह साधना कीमती है।
इस महाग्रन्थ में मां ललिता त्रिशती और श्री रुद्रम का संग्रह है।
इसमें तीन भाग है, प्रथम भाग में आह्वाहन है, गुरु की शक्ति, शिव अष्ट स्वरूप, भैरव स्वरूप और पंचानन का।
दूसरा भाग योगिनी चक्र साधना, इस अंश में हम अपने हर कण में भगवती के विभिन्न स्वरूपों का आह्वाहन करते है, शक्ति का ज्ञान का प्रवाह हमारे भीतर से हो इसकी प्रार्थना है।
तीसरे भाग में 15 अध्याय है श्री विद्या मन्त्र के सभी बीज मंत्र।
हर बीज पर 20 मन्त्रों की साधना है। और हर मन्त्र में पुनः 5 बीज हैं। जिसमें दो मन्त्र मां भगवती, चौथा मन्त्र भगवान महामृत्युंजय का और पांचवा बीज मंत्र समर्पण का है।
सम्पूर्ण ग्रन्थ में मां ललिता और भगवान रुद्र की कृपा को बीज साधना के माध्यम से जागृत करने का प्रयास करना है।
यह ग्रन्थ बीज रूप में है, इसलिए, यह एक आधा घण्टे में पढ़ने वाला ग्रन्थ है, और इसके पठन से पूरी दुनिया में, रोज, हजारों हज़ारों चनमत्कार हो रहे हैं।
कितनी ही माओं ने उस समय बच्चे को सामान्य जन्म दिया, जब चिकित्सक पूर्णतः सर्जरी के लिए तैयार थे, मृत्यु के बाद व्यक्ति का वापस आ जाना, शरीर को हिला भी न पाने की अवस्था का गठिया, और उसका गायब हो जाना। पूरा चिकित्सा जगत हैरान है।
यह सब श्री ललिता रुद्रम अनुष्ठान से ही सम्भव हो रहा है। श्रद्धा और भक्ती का एक नया आयाम श्री ललिता रुद्रम त्रिशती।
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
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