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उत्तरध्रुव निवास की अमान्यता
पण्डित रघुनन्दन शर्मा (साहित्यभूषण)
Mystic Power- तिलक महोदय के लिखे हुए ‘उत्तरध्रुव निवास’ ग्रन्थ का खण्डन करने के लिए बाबू उमेशचन्द्र विद्यारत्न ने ‘मानवेर आदि जन्मभूमि’ और बाबू अविनाशचन्द्र दास एम०ए० बी०एल० ने ‘ऋग्वेदिक इंडिया’ और नारायण भवानराव पावगी ने ‘आर्यावर्त्यांतील आर्यांची जन्मभूमि’ बड़ी योग्यता से लिखे हैं। तीन ग्रन्थकार कहते हैं कि तिलक महोदय ने भूल की है। यहाँ हम तीनों ग्रन्थों से एक-एक वाक्य लिखकर दिखलाना चाहते हैं कि वे किस प्रकार लोकमान्य तिलक की पुस्तक का खण्डन करते हैं। ‘आर्यावर्तातील आर्यांची जन्मभूमि’ में पावगी महोदय कहते हैं कि ‘तिलक ने अपने ग्रन्थ में लिखा है कि It is clear that this Soma juice was extracted and purified at night during the Atiratra sacrifice. (in the Arctic) and Indra was the only deity to whom the libations were offered in order to help in his fight with the Asuras, who had taken shelter with the darkness of the night.
अर्थात् उत्तरध्रुव में अतिरात्र यज्ञ के समय रात्रि में सोमरस निकालकर साफ़ किया जाता था और असुरों का पराभव करने के लिए इन्द्र को समर्पित किया जाता था, परन्तु उत्तरध्रुव में तो सोमलता होती ही नहीं। वह तो हिमालय में होने वाली वस्तु है, क्योंकि अनेक स्थानों पर लिखा है कि मुंजवान् पर्वत पर होती है। यह मुंजवान् पर्वत् हिमालय का ही भाग है, इसलिए उत्तरध्रुव निवास का सिद्धान्त सच्चा नहीं है। यह एक ऐसा प्रमाण है जिसने उस थ्योरी का खण्डन कर दिया है, जिसके द्वारा तिलक महोदय उत्तरध्रुव में आर्यों का निवास सिद्ध करते हैं। ऊपर के प्रमाण से तो यह परिणाम निकलता है कि आर्य वहाँ पैदा हुए, जहाँ सोमलता होती हो ।
अविनाश बाबू अपने ‘ऋग्वेदिक इंण्डिया’ में लिखते हैं कि ‘वेद उस समय बने जब सरस्वती नदी हिमालय से बहकर सीधी समुद्र को जाती थी। उस समय राजपूताने का मरुस्थल समुद्र हो रहा था। इस समय सरस्वती नदी का पता भी नहीं है। वह जब बहती थी उस समय इस ऋचा के कहनेवाले उस नदी को देखते थे। समुद्र कितने दिन तक रहा, सरस्वती उसमें बहकर गिरती थी, उसको कितना समय हुआ और समुद्र तथा सरस्वती को सूखे हुए कितने दिन हुए ? यदि समुद्र और सरस्वती एक ही समय में सूखे हों तो अविनाश बाबू की राय में उक्त घटना को हुए कम-से-कम लाखों वर्ष है। ये। अविनाश बाबू के कथनानुसार लाखों वर्ष पूर्व आर्य लोग उस जगह पर थे जहाँ सरस्वती नदी और राजपूताने का समुद्र लहरा रहा था। इस प्रकार अविनाश बाबू ने भी उत्तरष्ठवोत्पत्ति के सिद्धान्त का खण्डन कर दिया और सिद्ध कर दिया कि आर्यलोग लाखों वर्ष पूर्व आर्यावर्त में हो रहते थे।
बाबू उमेशचन्द्र विद्यारन कहते हैं कि ‘तिलक महोदय का मत संशोधन करने के लिए हम गत वर्ष उनके घर गये और उनके साथ पाँच दिन तक इस विषय में बहस करते रहे। उन्होंने हमसे सरलतापूर्वक कह दिया कि हमने मूल वेद नहीं पढ़े- हमने तो केवल साहब लोगों के अनुवाद पढ़े हैं’। इस एक ही वाक्य में उन्होंने यह कह डाला कि वेदों के द्वारा तिलक महोदय का निकाला हुआ यह सिद्धान्त कि आर्य लोग उत्तरध्रुव के निवासी हैं विश्वास योग्य नहीं है, क्योंकि जो आदमी जिस पुस्तक को समझ नहीं सकता वह उसके अन्दर की बात कैसे जान सकता है और कैसे उसके आधार पर अनुसन्धान कर सकता है? इन तीनों विद्वानों ने इतना ही नहीं लिखा किन्तु अपने ग्रन्थों में पचास से दो सौ पृष्ठों तक का सारा स्थान लोकमान्य तिलक के सिद्धान्त के खण्डन में लगा दिया है।
वेदों में सोम किस वस्तु को कहा है और सरस्वती किस पहाड़ से निकलकर किस समुद्र में गिरती है, इसका वर्णन हम यहाँ नहीं करना चाहते। हम तो यहाँ केवल यही बतलाना चाहते हैं कि जिस रीति का अर्थ तिलक महोदय को प्रिय था उसी ढंग से अर्थ करनेवाले पाश्चात्य शिष्यगण उनको मिल गये, जिन्होंने सिद्ध कर दिया कि सोमलता उत्तरध्रुव में नहीं होती, अतः वेदों में उत्तरध्रुव के सोमयाग का वर्णन नहीं हो सकता, क्योंकि लाखों वर्ष पूर्व आर्यलोग राजपूताने के समुद्र में सरस्वती को गिरते हुए देखते थे। तात्पर्य यह कि लाखों वर्ष पूर्व आर्य लोग वहाँ थे जहाँ सोमलता हो, सरस्वती नदी हो, और राजपूताने का समुद्र हो। इन वर्णनों से दो बातें सामने आईं- एक तो यह कि वेद लाखों वर्ष के पुराने सिद्ध हुए, दूसरी यह कि आर्यों का उत्तरध्रुव में निवास सिद्ध न होकर भारतवर्ष में सिद्ध हुआ।
अब रहा दूसरा प्रश्न जिसके विषय में लोकमान्य तिलक ने लिखा है कि ‘यह देववर्ष और मनुष्यों की वर्षसंख्या की गड़बड़ पौराणिक है-निराधार है। इसको देववर्ष कहना भूल है। हमारी की हुई १२,००० वर्ष की गिनती ठीक है। यह वह वर्षसंख्या है जो हिमपात आरम्भ होने से आजतक की होती है। इसपर हम कहते हैं कि यह युगों की संख्या है, हिमकाल की नहीं।
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