आकाश में पिता पुत्र सम्बन्ध
श्री अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ )-
Mystic Power- आकाश में पिता पुत्र सम्बन्ध २ प्रकार का है। जन्म देने वाला पिता, उसका निर्माण क्षेत्र माता है। आकाश में ३ माता (पृथिवी) और ३ पिता (उनके आकाश) हैं।
तिस्रो मातॄस्त्रीन्पितॄन्बिभ्रदेक ऊर्ध्वतस्थौ नेमवग्लापयन्ति ।
मन्त्रयन्ते दिवो अमुष्य पृष्ठे विश्वमिदं वाचमविश्वमिन्वाम् ॥ (ऋक्, १/१६४/१०)
तिस्रो भूमीर्धारयन् त्रीरुत द्यून्त्रीणि व्रता विदथे अन्तरेषाम् ।
ऋतेनादित्या महि वो महित्वं तदर्यमन् वरुण मित्र चारु ॥ (ऋक्, २/२७/८)
सूर्य तथा चन्द्र से प्रकाशित भाग को पृथ्वी कहा है, सभी पृथ्वी में पृथ्वी ग्रह की तरह ही समुद्र, नदी, पर्वत नाम हैं। सूर्य-चन्द्र दोनों से प्रकाशित पृथ्वी ग्रह है। सूर्य प्रकाश का क्षेत्र (जहां तक इसका प्रकाश ब्रह्माण्ड से अधिक है) सौर पृथ्वी है। इसमें ग्रह कक्षाओं से बने पृथ्वी को घेरे वलयाकार क्षेत्रों के नाम पृथ्वी के द्वीपों के नाम पर हैं, तथा उनके बीच के क्षेत्रों के नाम पृथ्वी के समुद्रों के नाम पर हैं। जहां तक सूर्य विन्दु मात्र दीखता है, वह ब्रह्माण्ड या काश्यपी पृथ्वी है।
रवि चन्द्रमसोर्यावन्मयूखैरवभास्यते।
स समुद्र सरिच्छैला पृथिवी तावती स्मृता॥
यावत्प्रमाणा पृथिवी विस्तार परिमण्डलात् ।
नभस्तावत्प्रमाणं वै व्यास मण्डलतो द्विज ॥ (विष्णु पुराण, २/७/३-४)
हर पृथ्वी से उसका आकाश उतना ही बड़ा है, जितना मनुष्य तुलना में पृथ्वी (१-१ कोटि गुणा, जिन क्षेत्रों को वायु के १०-१० गुणा बड़े ७ स्तर कहा है)।
ब्रह्माण्ड की सर्पाकार भुजा के ७ खण्ड हैं जिनको आकाश में गंगा की ७ धारा कहा गया है। इसके अनुरूप जम्बू द्वीप में ७ गंगा, भारत में गंगा की ७ धारा तथा अन्य द्वीपों की ७ मुख्य नदियों को गंगा कहा गया है।
सप्त प्रवत आदिवम् (ऋक्, ९/५४/२)
अस्मा आपो मातरः सप्त तस्थुः (ऋक्, ८/९६/१)
वर्तमान काल में इन धाराओं के नाम हैं ३०००० परसेक तथा पर्सीयस, नोर्मा तथा बाहरी भुजा, स्कुटम
सौर मण्डल में पिता-पुत्र का अन्य अर्थ है-जहां पिता के कार्य क्षेत्र की सीमा समाप्त हो, वहां से पुत्र का आरम्भ होता है।
सौरमण्डल में शनि तक के ग्रहों का पृथ्वी गति पर प्रभाव होता है, जिसकी गणना की जा सकती है। अतः सूर्य का पुत्र शनि हुआ। ठोस ग्रहों में पृथ्वी सबसे बड़ी है। ठोस ग्रहों की सीमा पर मंगल ग्रह पृथ्वी का पुत्र हुआ। पृथ्वी की कक्षा में चन्द्र का एक ही सतह दीखता है क्योंकि जितने समय (२७.३ दिन) में यह पृथ्वी की परिक्रमा करता है, उतने ही समय में अपने अक्ष की परिक्रमा करता है।
इसी प्रकार बुध जितने समय (८८ दिन) में सूर्य की परिक्रमा करता है, उसके २/३ समय (५८.७ दिन) में अपने अक्ष की परिक्रमा करता है। यह चन्द्र जैसा तथा उससे दूर है अतः चन्द्र का पुत्र हुआ। एक अनुमान है कि पहले यह भी पृथ्वी की कक्षा में चन्द्र के बाद था। चन्द्र आकर्षण के कारण समुद्र जल का कुछ भाग उसकी दिशा में उठ जाता है तथा पृथ्वी पर ब्रेक का काम करता है।
पृथ्वी का अक्ष भ्रमण प्रति वर्ष २ माइक्रोसेकण्ड धीमा हो जाता है तथा चन्द्र ३ सेण्टीमीटर दूर हट जाता है। बुध बाहरी कक्षा में था अतः चन्द्र की तरह इसका अक्ष भ्रमण परिक्रमा के अनुपात में था। दूर हटते हटते यह पृथ्वी कक्षा से निकल गया और अभी सूर्य कक्षा में है।
जब बृहस्पति पृथ्वी के निकटतम हो तब यह सम्भव है। यह प्रायः २ अरब वर्ष पहले हुआ जब से आज जैसी ग्रह कक्षा हुई और उसे सृष्टि सम्वत् कहते हैं। चन्द्र कक्षा की सीमा पर रहने या उसके जैसा अक्ष भ्रमण करने वाला दूर का ग्रह होने से चन्द्र का पुत्र बुध है।
सौमायनो बुधः (ताण्ड्य महाब्राह्मण, २४/१८/६)
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