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तीन बाह्ययान
श्री पेमा तेनजिन-
Mystic Power – पुद्रलनैरात्म्य ज्ञान का बोध करना श्रावकयानियों का दर्शन है। ये वस्तुओं की स्वलक्षण सत्ता स्वीकार करते हैं। ये निरवयव परमाणु एवं विज्ञान की परमार्थ सत्ता भी स्वीकार करते हैं। इनका लक्ष्य स्वयं की शान्ति, सुख एवं निर्वाण की प्राप्ति है। आठ प्रतिमोक्ष संवरों में से किसी एक का पालन करते हैं। चित्त की एकाग्रता को बनाये रखने हेतु शमथ की भावना करते हैं तथा विपश्यना की प्राप्ति के लिए चार आर्यसत्यों सहित उनके सोलह आकारों की भावना करते हैं।
चार आर्य सत्यों को रोग, रोग हेतु, रोगमुक्त व्यक्ति तथा औषधि के रूप में ग्रहण कर दुःखसत्य को ज्ञेय, समुदय सत्य को त्याज्य (प्रहेय), निरोध सत्य को प्रापणीय एवं मार्गसत्य को सेवनीय मानते हैं। फल के रूप में श्रावकयानी चार युगल एवं आठ पुरुष की प्राप्ति करते हैं-
स्रोतापत्तिफलप्रतिपन्नक- स्त्रोतापन्न, सकृदागामीफलप्रतिपन्नक-सकृदागामि, आनागामीफलप्रतिपन्नक- अनागामी एवं अर्हत्त्वफलप्रतिपन्नक- अर्हत् ।
प्रत्येक बुद्धयान में दर्शन के रूप में पुद्गलनैरात्म्य और धर्मों की नि:स्वभावता का बोध होता ग्राह्य शून्यता का बोध होता है अर्थात् ग्राह्य-ग्राहक दोनों की शून्यता का बोध नहीं होता है। अतः ये विज्ञान के निरवयवी अस्तित्व को परमार्थ रूप में स्वीकार करते हैं। चर्या के रूप में ये आठ प्रातिमोक्ष संवरों में से किसी एक का पालन करते हैं। प्रमुखतया शमथ की भावना करते हुए सोलह आकारों के साथ चार आर्यसत्यों की भावना करते हैं। फल प्रत्येकबुद्ध अर्हत् पद की प्राप्ति करते हैं।
बोधिसत्त्वयानी दर्शन के रूप में ये पुद्गल-नैरात्म्य एवं धर्म-नैरात्म्य का अवबोध करते हैं। समस्त सत्त्वों को बुद्धत्व प्राप्त कराना इनका परम लक्ष्य है। मुख्यतया छह पारमिताओं सहित चार संग्रह-वस्तुओं का अभ्यास करते हैं। दो नैरात्म्य, पाँच मार्ग तथा सैंतीस बोधिपाक्षिक धर्मों की भावना करते हैं। फल के रूप में बुद्धत्व की प्राप्ति करते हैं, जो दो कार्यों अर्थात् परार्थ के लिए निर्माणकाय तथा स्वार्थ धर्मकाय से युक्त होता है।
श्रावक, प्रत्येकबुद्ध एवं बोधिसत्त्व इन तीनों यानों में व्यक्ति हेतु, समुदय, कर्म और क्लेशों से निवृत्त होकर निर्वाण प्राप्त करता है। इसलिए इन्हें समुदययान के नाम से जाना जाता है।
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
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