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दो सहस्त्र वर्षों की पराधीनता में विजययोग अदृश्य
श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ )-
Mystic Power- मुहूर्त ग्रन्थों नरपतिजयचर्या और समरसार आदि में कई सहल विजयप्रद योगों का वर्णन है। मुहूर्त चिन्तामणि का कथन है कि…
(१) “स जयत्परीन् प्रचलितः।”( ११/५८ )
(२) “प्रयातो महीशो जयत्येव शत्रुन् ।”(११/६०)
(३) “जेता शत्रून गरुड इवाहीन्।”( ११/६२)
(४) “स्युः शलभा इव सर्वे ।(११/६३ )
(५) “रिपुवाहिनी वशमेति ।”(११ । ६४)
(६) “वसुचय लाभदयोगः।”( ११।७०)
(७) “क्षेमयशोवनोर्लभते।”( ११/७६)
अर्थात् इन योगों में यात्रा करने वाला शत्रुओं को झट जीत लेता है। ऐसे जीतता है जैसे सर्प को गरुड। शत्रु पतंगों की भाँति जल जाते हैं। शत्रुसेना वशीभूत हो जाती है और अपार धन, यश, राज्य मिलता है किन्तु इन योगों, मंत्रों, बलियों, होमों और देवादिकों के रहते हमने अगणित कष्ट झेले हैं। उनको कथाएँ ये हैं-
ई० पू० ३२६ में सिकन्दर ने तक्षशिला पर आक्रमण कर आंभी को पराजित किया। आंभी ने वाध्य होकर अनेक बहुमूल्य पदार्थों के साथ उसे ५००० सैनिक दिये और वे भारत विजय में सिकन्दर के सहायक बने। पोरस गणेशरूपी हाथियों के कारण हार गया, पंजाब-सिन्ध आदि पर यूनानी राज्य स्थापित हो गया और यूनानी ज्योतिष यहाँ आ गया। उसके बाद डिमेट्रियस ने पंजाब, सिन्ध और मिलिन्द ने काठियावाड़, मथुरा जीता और कुषाणों का राज्य काशी तक आ गया। मुहम्मद बिन कासिम ने १७ वर्ष के वय में ७१२ ई० में सिन्ध पर आक्रमण किया और धीरे-धीरे देवल, निरूत, सेहवान, रावर, ब्राह्मणावाद आदि को जीत लिया। देवल पर आक्रमण के समय उसने एक मन्दिर की पताका गिरवा दी और उस अपशकुन के भय से हिन्दू सेना भाग गयी। सिन्ध के ब्राह्मण राजा दाहिर का सिर काट दिया गया, उसके पुत्र जय को मुसलमान बनाया गया और वह ७१७ में मार डाला गया।
कासिम ने अगणित हिन्दुओं को काटा और मुसलमान बनाया। कासिम को मन्दिर के गुप्त कोष से ६००० ठोस मूर्तियाँ मिलीं जिनमें एक तीस मन की थी। होरा, पन्ना माणिक, मोती, सोना आदि के ढेर के साथ वह ७०० सुन्दरियाँ ले गया। ब्राह्मणावाद की विजय के समय कासिम ने दाहिर की दो पुत्रियों सूरज देवी और परमल देवी को पकड़ लिया, बाद में उन्होंने आत्महत्या कर ली और दाहिर के वध के बाद अनेक नारियाँ सती हो गयीं। कासिम ने विजय के उल्लास में चाचा को पत्र लिखा कि दाहिर और उसके स्वजनों को दोजख भेज दिया गया है, तमाम काफिरों को मुसल्मान बना दिया गया है और उनके मन्दिरों पर मसजिदें खड़ी हैं। उसने अनेक गाँव लूटे और अनेक को मुसल्मान बनाया।
जनवी सुबुक्तगीन ने जयपाल को हराया, लूटा और उसके पुत्र महमूद ने १००० ई० में उसे बन्दी बनाया। वह छः लाख दीनार और लाखों गुलाम दे कर छूटा पर बाद में आग में जल मरा महमूद ने जयपाल के पौत्र सुखपाल को मुसल्मान बनाया और उसका नाम नवासाशाह रखा। जयपाल के पुत्र आनन्द पाल की हार का भी कारण वही हाथी बना जो गणेश है, इन्द्र का वाहन है और गजलक्ष्मी को नहलाता है। आनन्दपाल के २०००० सैनिक मारे गये। महमूद ने पितापुत्र दोनों से दो लाख दोनार का हार, और अपार धन लिया। १००९ में नगरकोट पर आक्रमण किया तो वहाँ के राजा ने आत्म समर्पण कर दिया। महमूद ने सब मंदिरों की सम्पत्ति लूटी गाँवों को लूटा, अगणित का वध किया और बहुतों को मुसल्मान एवं गुलाम बनाया। उसे जितने ऊँट मिल सके, सब पर मन्दिरों और राजकोष का धन लादा गया। वह ७४० मन सोना, २००० मन चाँदी, २० मन से अधिक रत्न और सहस्त्रों स्वर्णसिलें तथा मूर्तियाँ ले गया मुसल्मान इतिहासकारों ने लिखा है कि गजनी शहर हिन्दूनगर सा दिखाई दे रहा था और वहाँ हिन्दू गुलामों को दो रुपये में खरीदने वाले नहीं मिल रहे थे। कई ने उनकी संख्या दो लाख बतायी है।
महमूद ने १०१९ में कन्नौज के सातों दुर्ग एक दिन में जीत लिये। १०१८ में मथुरा के राजा कुल चन्द्र पर आक्रमण किया तो उसके ५००० वीर मरे और राजा ने पत्नी के साथ आत्महत्या कर ली। बरन के राजा हरदत्त ने १०००० हिन्दुओं के साथ इस्लाम स्वीकार किया। महमूद ने १०१८ में बुलन्दशहर, महावन, मथुरा और उसके आसपास के गाँवों को लूटते हुए १०१९ में कन्नौज में प्रवेश किया। राजा ने अधीनता स्वीकार कर ली और उसने सहस्त्रों समूद्ध मन्दिरों को स्वेच्छा से लूटा। वहाँ से तीस लाख दिरहम, ५५००० गुलाम बहुत हाथी और बहुमूल्य सामग्रियाँ गुजनी ले गया। उसने कालिंजर के गढ़ को हराया और वहाँ से भी अपार धन-जन ले गया। १०२४ की सोमनाथ की लूट में मन्दिर की रक्षा में क्षत्रियों के कई वंश समाप्त हो गये। मन्दिर के पूजाव्यय में १०००० गाँव सहायक थे, ५६ खंभों में अगणित रत्न जड़े थे और ४० मन सोने की जंजीरें थीं। महमूद ने मूर्ति तोड़ी उसके टुकड़ों को मसजिदों की सीढ़ियों में लगवाया, ५०००० से अधिक हिन्दुओं को मारा और रत्नों, सोना, चाँदी, दासों और दासियों की विशाल राशि ले गया। भूमि के भीतर की हड्डी बताने वाले ज्योतिषियों ने उस समय साधुवेश में घूमते मुसलमान गुप्तचरों को नहीं पहचाना महमूद ने ३० वर्षों में १७ आक्रमण किये।
मुहम्मद गोरी ने उछ, पेशावर और स्थालकोट जीतने के बाद ११९२ में पृथ्वीराज को जीता, उसकी आँखें फोड़ दिया, हत्या की और झाँसी, समाना, अजमेर (पुष्कर क्षेत्र) जीता तथा तराइन के द्वितीय युद्ध में लाखों राजपूत मरे और हारे गोरी ने कन्नौज और काशी को जीता, मन्दिरों को तोड़ा लूटा, नगरकोट की विजय में २०००० मारे और सात लाख स्वर्णदोनार, ७०० मन सोने चाँदी के पत्र, २०० मन सोने के पासे, २००० मन चाँदी और २० मन हीरा, पन्ना, मूंगा, मोती आदि पाया। गोरी ने भारत में एक सहस्त्र मन्दिर तोड़े, कई लाख को मारा, कई लाख हिन्दुओं को दासदासी बनाया और ४००० ऊँटों पर लाद कर रत्न आदि ले गया।
बलियार खिलजी ने ११९७ में बिहार के पालवंश को परास्त कर पूरा बिहार जीता, १२००० बौद्ध भिक्षुओं की हत्या की, अनेक पुस्तकालय जलाये, विद्यापीठ ध्वस्त किये और बौद्ध धर्म को उसकी जन्मभूमि से भगा दिया। उसने राजा लक्ष्मणसेन को भगाया तथा सारा रनिवास और सारा राज्य ले लिया। उसने बंगाल के साथ ही कालिंजर कालपी और बदायूँ को जीता तथा अल्तमश ने ग्वालियर, मालवा और उज्जैन जीता। अलाउद्दीन ने देवगिरि के राजा को हराया, उसका धन लूटा, दूसरी बार दिल्ली भेज कर उसकी हत्या की और तीसरी बार उसके पुत्र शंकर देव को मार डाला। १२६६ में गुजरात पर आक्रमण कर कर्णदेव को हराया, उसकी पत्नी कमला को बीबी बनाया और रणथंभौर को जीत कर राजा सहित पूरे राजवंश को मार डाला।
अलाउद्दीन से राजा का युद्ध ११ मास चलता रहा, राजपूत केसरिया बाना पहन कर रण में मरे और पतिव्रताएँ पदमिनी के साथ सती हो गयीं। मलावार का राजा हार कर भाग गया, लूट कर मदूरा दरिद्र बना दिया गया और वारंगल एवं द्वारसमुद्र में भी यही हुआ। अलाउद्दीन के राज्य में हिन्दू जजिया कर देते थे, दुधारू पशुओं का कर देते थे, कर में आधा अन्न देते थे, घोड़े पर नहीं चढ़ते थे, शस्वास्व नहीं रखते थे, अच्छा वस्त्र नहीं पहनते थे और कोई पद नहीं पाते थे। उसने अन्हिलवाड़ के राजा कर्ण को पुत्री देवलदेवी से अपने लड़के खिजिर खाँ का विवाह किया।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने तेजपाल का सिर काट कर लटका दिया, दिल्ली के पास के २७ भव्य मन्दिरों को तोड़ा, तोमरों के मन्दिर पर जामा मसजिद बनवाई और खंभों पर बनी सुन्दर मूर्तियों के नाककान तोड़ दिये। चौहान राजा विग्रहराज का बनवाया सरस्वती मन्दिर तथा अजमेर और मेरठ के सारे मन्दिर मसजिद में परिणत हो गये। महीपाल देव तोमर के बनवाये शिव मन्दिर के शिवस्थान पर कब बन गयी तोमर ने पाँच लाख लोगों का वध किया। जनरल कनिंघम ने लखनऊ के गजेटियर में लिखा है कि बाबर के वजीर मीरबांको द्वारा अयोध्या का राममन्दिर गिराने में १७६००० हिन्दू मारे गये और वहाँ मसजिद बनाने में गारे में पानी के स्थान में हिन्दूरक्त डाला गया।
बाबर अयोध्या को मक्का बनाना चाहता था। उसने १५२८ में राणा संग्राम सिंह से युद्ध किया और विजयी होने पर रामजन्मभूमि पर मसजिद बनायी। फतेहपुर सीकरी के राजभवन, अनूपझौल और मन्दिर आदि राजपूतों द्वारा निर्मित थे। उनकी शिल्पकला भारतीय है पर वे सब मसजिद और क्रविस्तान बन गये। बाबर ने धामदेव से सीकरी ले ली और उनके बहनोई अजीत सेन को इब्राहीम लोदी ने गोमांस खिलाकर मुसलमान बना दिया। बाबर ने सीकरी की पहाड़ी पर राजपूतों के कटे सिर का विजयस्तूप बनवाया, सकरवार क्षत्रिय वहाँ से भाग गये, यमुनास्तंभ कुबुबमीनार हो गया, शिवमन्दिर ताजमहल बन गया, अयोध्या फैजाबाद कही जाने लगी, प्रयाग इलाहाबाद हो गया और सब छोटे नगरों के नाम अरबी हो गये।
अकबर ने १५६१ में गोंडवाना में महारानी दुर्गावती और उनके पुत्र को मार डाला, चित्तौड़ का दुर्ग जीता, राजपूत कन्याएँ ब्याही और वोर राजपूतों को मरने तथा उनकी पत्नियों को जलने के लिए बाध्य किया। मुसलिम इतिहासकार अल बदायूनी फिरिश्ता और निजामुद्दीन अहमद ने अपनी कलम से लिखा है कि अकबर ने चित्तौड़ के मन्दिरों को ध्वस्त करने की आज्ञा दी तो उनको रक्षा में १०००० राजपूत वीर मारे गये। राणाप्रताप ने घास की रोटी खायो, रणथंभौर के सुरजनसिंह और कालिंजर के रामचन्द्र सिंह परास्त हुए. १५६२ में जयपुर के राजा बिहारीमल की कन्या से अकबर का विवाह हुआ, उसे अम्बर के राजा भारमल की कन्या प्राप्त हुई, मौना बाजार लगा, जहाँगीर ने मेवाड़ पर चार आक्रमण किये, रणकपुर का मन्दिर तोड़ा, उसकी रक्षा में मुकुन्ददास मारा गया, जहाँगीर की आज्ञा से खुर्रम ने मेवाड़ पर पुनः आक्रमण किया, मन्दिर तोड़े, खेत जलाये, हिन्दू स्त्रियों और बच्चों को नीलाम किया और सलीम का मानलाई सदृश अनेक हिन्दूकन्याओं से विवाह हुआ। उसने मानवाई के पुत्र के नेत्र फोड़े और जेल में डाल दिया क्योंकि उसको गुरु अर्जुनदेव पर श्रद्धा थी। बाद में शाहजहाँ ने उसे कटवा दिया। शाहजहाँ को माता मारवाड़नरेश उदय सिंह की कन्या थी जहाँगीर ने गुरु अर्जुनदेव को जलते कढ़ाई में बैठा कर जलती रेत से भून कर और गाय की खाल में बन्द कर रावी नदी में दुबो दिया फिर भी अकबर और जहाँगीर के दरबारी पण्डित शास्वार्थ में पण्डितों पण्डितों को जीतते रहे, दिग्विजय के सहस्रों मुहूर्त लिखते रहे और बादशाह का गुण गाते रहे।
गुरु अर्जुनदेव पाचवें, हरगोविन्द छठे और श्री तेगबहादुर सिखों के सातवें, गुरु थे। वे पाँच वीरों के साथ दिल्ली गये। औरंगजेब ने मति दास को आरे से चिरवाया, दयालु को कड़ाहे में उबलवाया, सतोदास को रुई में लपेट कर जलाया, कथा तथा गुरुदित्ता को कटवाया, गुरु तेगबहादुर का सिर चाँदनी चौक में कटवाया और उसे गुरु गोविन्दसिंह के पास भेजवा दिया। उनके पुत्रों की भीषण मृत्यु सुप्रसिद्ध है। गोविन्दवाणी में लिखा है कि औरंगजेब शिखा सहित सिर को मूत्र से मुंड़वाता था, उसका जुलूस निकालता था और उस पर ईंट, जूता आदि रखवाता था मूत डारि तिन सौस मुंढ़ाये। मूंड़ मूँद कर सहर फिराये।
मथुरा के केशवदेव कटरा श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है। उस पर भिन्न-भिन्न समयों में जो अनेक विशाल और भव्य मन्दिर बने वे सब मुसलमानों द्वारा तोड़ डाले गये। ४०० इसवी के आसपास यहाँ विक्रमादित्य ने एक भव्य मन्दिर बनवाया था। उसके पास ही जैनों और बौद्धों के मन्दिर और बिहार थे। १०१७ में महमूद गजनवी ने उन सब को तोड़ा और लूटा।
महमूद के मुंशी अलुतनवी ने स्वयं लिखा है कि ऐसा मन्दिर २०० से कम वर्षों में और दस करोड़ से कम स्वर्णमुद्रा में नहीं बन सकता। ११५० ई० में यहाँ दूसरा मन्दिर बना और उसे सिकन्दर लोदी ने ध्वस्त किया। उसके सवा सौ वर्षों बाद ओर छानरेश श्री वीर सिंह जूदेव ने तैंतीस लाख की लागत से २५० फोट ऊंचा आठ मंजिल का मन्दिर बनवाया। वह आगरा से दिखाई देता था। १६६९ ईसवी में उसे तोड़ कर उसी की सामग्री से उसी को कुरसी पर औरंगजेब ने जो ईदगाह बनवायी वह अभी खड़ी है। उसने जुझारसिंह की हत्या की, स्वियों को अपने महल में रख लिया तथा गुरु तेग बहादुर और शंभा जो को हत्या की। उसने काशी के विश्वनाथ मन्दिर के साथ लगभग १००० मन्दिर तोड़े, उन पर मसजिदें बनवायें काशी का नाम मुहमदाबाद रखा और ९० वर्ष जीवित रहा परन्तु उसके दरबार में भी कई ज्योतिषी पण्डितराज विराजमान थे और उसका तथा उसके पूर्वजों का यशोगान कर रहे थे। मुसलमानों ने हमारी आँखें निकलवायें सिर में लोहे की कीलें ठोंकीं, खालें खिचवाय हाथों से कुचलवाया और अनेक दुर्दशाएँ को, इसकी सहस्त्रों कथाएँ हैं। अंगरेजों और पुर्तगोजों आदि ने भी दूसरे ढंग से उनसे बढ़ कर ऐसे अत्याचार किये जो भुलाये नहीं जा सकते। जिस नदी और प्रान्त के नाम पर हिन्दू और हिन्दुस्तान शब्द बने हैं वे दोनों अब हमारे नहीं रहे। इसके हेतु भी अंगरेज ही हैं।
परन्तु खेद है कि हमें इन दो सहस्र वर्षों में विजय यात्रा का एक भी प्रबल मुहूर्त नहीं मिला जब कि उनकी संख्या सहस्रों में बतायी गयी है, तो हम इन्हें सत्य कैसे मानें और वे सत्य नहीं हैं तो वे कई सहल भोषण योग कैसे सत्य हो सकते हैं जो कन्या की बिदाई पाँच वर्ष तक रोक देते हैं, कई वर्षों को विवाहमुहूर्त से विहीन बना देते हैं, व्यवहार में सैकड़ों अड़ंगे डालते हैं और जिन्होंने हमारे मनोबल को समाप्त कर दिया है?
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