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बीज तथा मंत्र
डॉ.दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक)-
आगमशास्त्र ही वह मूल, प्रामाणिक तथा सर्वमान्य ग्रन्थ हैं जिनमें जपयोग्य बीजों(एकाक्षर मंत्र) तथा मंत्रों (एक से अधिक बीज एवं मातृकाक्षरों का समूह) काविशद विवेचन किया गया है। हमारे ऋषि मुनियों, तपस्वियों, साधकों तथा गुरूओंने हजारों वर्षो की विकट साधना तथा आध्यात्मिक अनुसन्धान के पश्चात् ऐसेअसंख्य बीजों तथा मंत्रों की संरचना (खोज) की है जिनका निर्धारित संख्या मेंजप करने से साधक को उस मंत्र के अधिष्ठाता देव-देवियों का दर्शन-लाभ प्राप्त हो जाता है। जपयोग्य किसी भी बीज तथा मंत्र की संरचना में वर्णाक्षरों(मातृकाक्षरों) का उपयोग होता है। वर्णाक्षरों (अ से अ: तथा क से क्ष तक) मेंअनन्त शक्ति निहित होती है।
प्रत्येक वर्ण स्वयं में एक शक्तिपुंज है क्योंकि प्रत्येकवर्ण किसी न किसी देवी-देवता तथा तत्वों का प्रतीक होता है। हमारे गुरूओं नेविभिन्न वर्णाक्षरों (अर्ध तथा पूर्ण वर्ण) को विशेष प्रकार से आपस में संयोजितकरके ऐसे असंख्य मंत्रों को प्रकट किया है जिनका सही उच्चारण तक कर पानासामान्य व्यक्ति के लिए असम्भव होता है –
”अर्धमात्रा स्थिता नित्या
यानुच्चार्या विशेषत:”
मंत्र-शास्त्र के अनुसार ल-पृथ्वीतत्व, व-जलतत्व, र-अग्नितत्व य-वायुतत्व तथा ह-आकाशतत्व को निरूपित करता है। वर्णों को आपस में मिलाकर ह् र् ई म्मायाबीज तथा क् ल् ई म् कामबीज बनता है। ऐसे ही कुछ बीज तथा कुछमातृकाक्षरों को मिलाकर मंत्र बन जाता है।
नौ वर्णों का चन्डी मंत्र नवार्णमंत्र केनाम से विख्यात है। सामान्य रूप से एकाक्षर मंत्र को बीजमंत्र तथा अनेकवर्णाक्षरों से युक्त मंत्र को मंत्र कहते हैं। जिस मंत्र में बहुत अधिक वर्णाक्षरसम्मिलित हो जाते हैं उसे ‘मालामंत्र’ कहा जाता है। जिस प्रकार अत्यन्त लघुबीजके अन्दर विशाल वृक्ष विद्यमान रहता है उसी प्रकार एक अक्षर (बीज) के अन्दर उस बीज से सम्बन्धित देवता का वास होता है जो निर्धारित संख्या में जप किए जाने पर साधक के समक्ष उपस्थित हो जाता है। यह अभ्यास का विषय है। तर्क का नहीं।
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
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