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चारो युगों का ज्योतिषीय अर्थ
अरुण उपाध्याय (धर्म शास्त्र विशेषज्ञ )
कलि: शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापर:।
उत्तिष्ठन् त्रेता भवति कृतं संपद्यते चरन्।।-ऐतरेय ब्राह्मण
भावार्थ- जो सोता है उसके लिए कलियुग है और जो जँभाई लेता है उसके लिए द्वापर तथा जो उठकर खड़ा होता है उसके लिए त्रेता एवं जो उठकर चलने लगता है उसके लिए सतयुग होता है।।
इसका एक ज्योतिषीय अर्थ भी है। सबसे छोटा युग ४ वर्ष का था जो आज के ग्रेगरी कैलेंडर के लीप ईयर की तरह है। इसी के ४ वर्षों के नाम पर युग खण्डों के नाम हैं। प्रथम वर्ष था कलि = कलन या गणना का आरम्भ, द्वापर = दूसरा, त्रेता = तृतीय, कृत या सत्य = पूरा। यह गोपद युग है, गाय के ४ पद की तरह युग के ४ वर्ष हैं। गोधूलि वेला से युग का आरम्भ होता है, सायंकाल गाय बैल घर लौटते हैं तो उनके चलने से धूल उड़ती है। मान लें कि युग का आरम्भ २५ सितम्बर २०१९ को सायं ६ बजे गोधूलि वेला में हुआ। ३६५ दिन ६ घण्टे का पहला कलि वर्ष २४ सितम्बर २०२० को रात्रि १२ बजे पूरा होगा जब सभी लोग सोये रहेंगे, इस वर्ष लीप ईयर होगा। अतः कहते हैं कि कलि सोता है। उसके बाद दूसरा द्वापर वर्ष आरम्भ होगा जो २५ सितम्बर २०२१ सबेरे ६ बजे पूरा होगा। उस समय प्रकाश (संजिहान, संझत) होगा जब लग सो कर उठेंगे। तीसरा वर्ष त्रेता २५ सितम्बर २०२२ दिन १२ बजे पूरा होगा जब सूर्य सिर पर खड़ा होगा तथा लोग भी काम के लिये खड़े रहेंगे। अतः त्रेता खड़ा है। चौथा कृत वर्ष २५ सितम्बर २०२३ सायं ६ बजे पूरा होगा जब लोग तथा गौ अपने घर लौटते होंगे। अतः कहते हैं कि कृत चलता है। इसी तरह रोमन कैलेण्डर में लीप ईयर होने से जिस तिथि को वर्ष आरम्भ हुआ, ४ वर्ष बाद उसी तिथि में पूरा होगा।
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