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छह रिपु अर्थात् शत्रु
डॉ. अजय भाम्बी विश्वप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य- गीता के अनुसार व्यक्ति स्वयं ही अपना मित्र और शत्रु है। साथ ही श्री कृष्ण बताते हैं कि मनुष्य के छह शत्रु हैं; यदि कोई दूसरा व्यक्ति शत्रुतापूर्ण बर्ताव करता है तो उसकी शत्रुता की जड़ तक पहुँचा जा सकता है, लेकिन कृष्ण भगवान् बताते हैं कि मनुष्य को असली खतरा अपने-आप से है। उसके छह शत्रु हैं : काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर्य अर्थात् ईर्ष्या।
इन छह शत्रुओं में तीन अतिरिक्त बंधन भी हैं। पहला बंधन है, बाहरी प्रभाव और इसी की वजह से मनुष्य अपने-आपको बाहरी दुनिया में घसीट लेता है। दूसरा बंधन है, आई (ईगो) अर्थात् मनुष्य का अहं। बहुत गहरे जुड़ाव के कारण मनुष्य अपने असली स्वरूप को भूल जाता है और अपने-आपको मात्र शरीर ही समझने लगता है। तीसरा बंधन है मन। जब साधक यम और नियमों का पालन करने लगता है तो वह तीनों प्रकार के मोहबंधन और छहों शत्रु उसे परेशान करना बंद कर देते हैं। जब यह अभ्यास जारी रहता है तो वह इनसे पूरी तरह से मुक्त हो जाता है।
आसन
योग में भटकते मन को काबू में रखने के लिए यह आवश्यक माना गया है। मन का स्वभाव ही भटकना है। अगर मन चंचल हो तो विचारों का सिलसिला चलता रहता है और अंततः इससे शरीर और इंद्रियाँ भी प्रभावित होती हैं। यही कारण है कि जब आप अपने चारों ओर लोगों को देखते हैं तो आप पाएंगे कि वे अनजाने में ही बेचैन हैं और लगातार कुछ न कुछ करते रहते हैं। ये विचार बहुत गहरे में दबे होते हैं और आदमी का सपने में भी पीछा नहीं छोड़ते। अगर आदमी पुतले की तरह स्थिर होकर बैठ जाए तो विचारों का सिलसिला बंद हो जाता है। जप या कुछ और करने के लिए आपको अपने शरीर को स्थिर रखना होता है। पतंजलि ने सुझाया था कि यदि कोई योगी निश्चल होकर किसी खास मुद्रा में बैठ जाए तो उसे आसन कहा जा सकता है। आम तौर पर प्रमुख रूप में तीन प्रकार के आसन होते हैं, जिन्हें सर्वश्रेष्ठ माना जा सकता है और वे आसन हैं. सुखासन, सिद्धासन और पद्मासना |ये आसन करते समय रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रखना चाहिए ताकि पूरे शरीर में रक्त का संचार होता रहे। यदि कोई साधक इस आसन में बिना हिले डुले काफी देर तक रह सकता है तो उसे सच्चे तौर पर आसन कहा जाता है। साथ ही पतंजलि यह भी समझाते हैं कि इस आसन में बैठे हए साधक को चाहिए कि वह अपने शरीर को शिथिल भी करता रहे और धीरे-धीरे अपने सभी विचारों को शांत कर ले और ईश्वर में अपना ध्यान लगा ले।।
हमारा मानना है कि यदि कोई व्यक्ति बिना हिले-डुले किसी आसन में जाने-अनजाने कम से कम तीन घंटे तक बैठा रहे तो माना जा सकता है कि उसने उस आसन विशेष में बैठने की कला में प्रवीणता हासिल कर ली है। इसे सिद्धासन कहा जाता है।
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
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