दीपावली काल और दर्शन
श्री अरुण कुमार उपाध्याय ( धर्मज्ञ )
Mystic Power– जीवन में प्रगति के लिए-बृहदारण्यक उपनिषद् (१/३/२८)-
असतो मा, सद् गमय = असत् (नहीं है, या अनुभव नहीं हो सके) नहीं, सत् (उपलब्ध या सत्य) की चेष्टा।
तमसो मा, ज्योतिर्गमय = तमस (अन्धकार, अज्ञान) से ज्योति (प्रकाश) की तरफ।
मृत्योर्मा, अमृतं गमय = मृत्यु या क्षणिक से अमृत अर्थात् सनातन स्थायी की चेष्टा।
स्वयं दीपावली दिन अन्धकार की पूर्णता है। उस दिन दीप जलाना तम स्य् ज्योति की गति है।
दीपावली के १ दिन पूर्व यम चतुर्दशी। १४ भुवन (स्तम्ब से ब्रह्म तक जीव स्तर) रूप १४ तिथि है। कृष्ण पक्ष में १४ तिथि यम या मृत्यु रूप है। इसका विपरीत दीपावली के १ दिन बाद अन्न-कूट या गोवर्धन पूजा है। गो-वर्धन तथा अन्न से जीवन चलता है, यह मृत्यु के विपरीत अमृत रूप हुआ।
दीपावली के २ दिन पूर्व निर्ऋति (ऋत = सदाचरण, सम्पत्ति) का अभाव है। उस दिन कुछ स्थायी वस्तु खरीदते हैं। दीपावली के २ दिन बाद यम-द्वितीया है। इसका अर्थ भाई-बहन का जोड़ा है। यह असत् से सत् गति है।
संवत्सर (वर्ष) चक्र में दीपावली रात्रि है। उस दिन चन्द्रमा विशाखा में रहता है। उसके विपरीत कृत्तिका नक्षत्र दिन है। कार्त्तिक पूर्णिमा को चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र में रहता है।
कृत्तिका = कैंची (कर्तन = काटना), विशाखा = द्वि-शाखा का मिलन विन्दु।
ये २ वृत्तों के मिलन विन्दु हैं। पृथ्वी का भ्रमण पथ बड़े गोल की सतह पर क्रान्ति वृत्त है। उसी गोल पर विषुव रेखा लिखा जाय तो यह प्रायः २३.५ अंश झुका रहेगा, जितना पृथ्वी कक्षा का क्रान्ति वृत्त पर झुकाव है। पृथ्वी से देखने पर सूर्य परिक्रमा कर रहा है। क्रान्ति वृत्त विषुव को २ विन्दुओं पर काटता है, यह ग्लोब में दिखाया जाता है। जिस विन्दु पर यह विषुव से ऊपर उठ रहा है अर्थात् सूर्य विषुव वृत्त से उत्तर की तरफ जा रहा है, वह विन्दु कृत्तिका है। इस विन्दु से कैंची (कृत्तिका) की तरह २ शाखायें मिलती हैं। इस विन्दु पर सूर्य किरण विषुव रेखा पर लम्ब होती है। इसके विपरीत (१८० अंश दूर) दोनों वृत्तों की शाखायें मिलती हैं। वह विशाखा नक्षत्र है।
कृत्तिका विन्दु से गोलीय त्रिभुज बनता है, अतः वहां से गणना होती है-मुखं वा एतत् नक्षत्राणां यत् कृत्तिकाः। एतद्वा अग्नेः नक्षत्रं यत् कृत्तिकाः। (तैत्तिरीय ब्राह्मण, १/१/२/१, अग्नि = अग्रणी)। कृत्तिका प्रथमं। विशाखे उत्तमं। तानि देव नक्षत्राणि। यानि देवनक्षत्राणि तानि दक्षिणेन परियन्ति। अनुराधाः प्रथमम्। अपभरणीरुत्तमम्। तानि यम नक्षत्राणि। यानि यम नक्षत्राणि तानि उत्तरेण (परियन्ति) (तैत्तिरीय ब्राह्मण, १/५/२/७) = कृत्तिका से आरम्भ कर प्रथम भाग में सूर्य विषुव के उत्तर रहेगा, दक्षिण से दूर गति। ये देव नक्षत्र हैं। विशाखा के बाद के नक्षत्र यम नक्षत्र हैं, उसमें सूर्य उत्तर से दूर जाता है।
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