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ध्यान की आधुनिक विचारधारा
पण्डित अजय भाम्बी ज्योतिषाचार्य
‘मैडिटेशन‘ का आधुनिक कोश में अर्थ है, ‘चिंतन का भक्तिपूर्वक अभ्यास’, या किसी मननशील विचार में संलग्न होना या किसी एक बिंदु पर या शून्य पर मन को केंद्रित करना या सभी विचारों को मन से निकाल कर उसे खाली करना, विशेषकर भक्ति के दौरान या आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करने का एक साधन’।
आज के जबर्दस्त दबाव और तनाव के दौर में व्यस्त कार्यक्रमों के बीच आवश्यकता है सही मानवीय गतिविधियों की। भौतिक सोच की अंधी दौड़ के कारण आज के मनुष्य की मूल्य प्रणाली और जीवन शैली में आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है। जीवन के दबाव को कम करना होगा ताकि सकारात्मक सोच के साथ वह सुखी, स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सके और इस प्रकार वह हमेशा ही अनंत सुख से रह सके।
छह साल तक चलने वाले दूसरे विश्व युद्ध के कटु अनुभव के बाद किसी ने सही कहा था कि दबाव की स्थिति में भी मनुष्य की मानसिक शक्ति उसकी भौतिक शक्ति से कहीं अधिक श्रेष्ठ होती है। हमारे एक सहयोगी के उद्गार हमें इस बारे में आशा की किरण दिखा सकते और इन जटिल परिस्थितियों में भी हमें कम से कम एक कदम आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित का सकते हैं
अनंत काल से विपत्ति के समय मनुष्य हमेशा ही ऊँचे आसमान की ओर देखकर भगवान से अपनी रक्षा और मार्गदर्शन की प्रार्थना करता रहा है। इन प्रार्थनाओं में मानव जीवन के सभी कार्यकलाप शामिल होते हैं, लेकिन मनुष्य देर सबेर अपने अंदर भी झाँकने का प्रयास करता है। आत्मनिरीक्षण से हमें अपनी अंतर्निहित मानसिक क्षमताओं का ज्ञान होता है और उनसे हमें जीवन में आने वाली बाधाओं से लड़ने में मदद मिलती है। धीरे-धीरे मन को कुछ प्रशिक्षण देने के बाद हम अपने मन की प्रच्छन्न शक्तियों को पहचान लेते हैं। ये शक्तियाँ समस्त मानव जाति को परम पिता परमात्मा का उपहार है। इसके बाद आत्मसाक्षात्कार की अवस्था आती है। तब हमें सचमुच तनाव को रोकने या तनाव के वर्तमान स्तर को कम करने की शक्ति मिल जाती है। साथ ही नियमित, स्वस्थ और प्राकृतिक विकास के लिए सुखी और तनावमुक्त परिवेश भी बन जाता है।
मन की ये प्रच्छन्न शक्तियाँ सभी मनुष्यों में होती हैं, लेकिन हर आदमी को इन शक्तियों को पहचानना सीखना पड़ता है। भारतीय व्यवस्था के अनुसार गुरू के आशीर्वाद और शिक्षा से यह सीख सत्यनिष्ठ शिष्य को यथासमय दे दी जाती है और शिष्य अपनी इच्छा से इन शक्तियों का आह्वान कर सकता है। संक्षेप में, गुरू मन की इन गुह्य महाशक्तियों को शिष्य के मन-मस्तिष्क में संप्रेषित कर सकता है। इस अवस्था के बाद इन शक्तियों के विकास के लिए आस्था और नियमित अभ्यास आवश्यक है।
अंत में, उस शब्द की चर्चा करते हैं जिसे आम तौर पर धार्मिक संप्रदाय के साथ जोड़ दिया जाता है और यह शब्द है, मैडिटेशन अर्थात् ध्यान। जैसे कि पहले चर्चा की गई है कि ध्यान मन को केंद्रित करने की मात्र एक तकनीक या कला है। यह एक ऐसा मानवीय अंग है, जिसमें सबसे अधिक ब्लड सप्लाई का इस्तेमाल होता है और इसके सामान्य संचालन के लिए भरपूर ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
खेलकूद, व्यावसायिक जीवन, सार्वजनिक जीवन, युद्ध आदि सभी गतिविधियों में विजेता बनने के लिए सबसे पहले मन को जीतना आवश्यक है। चूँकि मन की शक्ति शारीरिक शक्ति से कहीं अधिक बड़ी है। हमारे सामने तस्वीर बिल्कुल साफ़ है कि सफल होने के लिए आवश्यक है कि मन की संपूर्ण क्षमता का पूर्ण दोहन करने के लिए हर संभव उपाय किया जाना चाहिए। मन की साफगोई को समझाने के लिए मुझे एक रोचक किस्सा याद आ रहा है।। भारत के प्रसिद्ध संन्यासी स्वामी विवेकानंद जी को एक बार उनके एक मित्र ने गॉल्फ की गेंद को सही निशाने पर लगाने की चुनौती दी। स्वामी जी ने एक बार इसका प्रदर्शन करने के लिए। कहा। एकाग्रता से प्रदर्शन देखने के बाद और मन को एकाग्र करने के बाद स्वामी जी ने एक बार गेंद को निशाने पर लगाने का अभ्यास किया और फिर गेंद को सही निशाने पर लगा दिया।
जीवन की सफल यात्रा का एक और रोचक और चुनौतीपूर्ण पक्ष यह है कि हम अपने दिल की हमेशा बदलती पुकार को सुनते रहें। मानव मन को कुछ इस तरह से डिज़ाइन या प्रोग्राम किया गया है कि इसमें कई बार हमेशा बदलती हुई पुकारें हमें सुनाई देती हैं। हम सबने कई बार इसका अनुभव किया होगा। कोई भी मौका हो, रुपये-पैसे मिलने वाले हों या प्यार, तसल्ली या शांति की भावनात्मक पुकार हो, हमारा दिल हमेशा ही अलग-अलग तरह की माँग करता रहता है।
हमारे सामने हमारे व्यक्तित्व का सबसे रोचक पक्ष है हमारे दिमाग और दिल के बीच का संबंध। यह कदाचित् एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है कि जो न केवल हमारे सामान्य आचरण को नियंत्रित करता है, बल्कि हमारे पूरे व्यक्तित्व को भी नियंत्रित करता है। यह हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है। आत्मा हृदय और मन से ऊपर है। भले ही हमारा कोई भी धर्म हो या आरोपित तर्क, यदि हम किसी भी दिमागी संघर्ष को दैवीय शक्ति के साथ सुलझाने के लिए कृतसंकल्प हैं तो हमारा अपने-आप पर पूरा नियंत्रण रहेगा। जो आदमी अपने आप पर विजय पा लेता है वह विश्व विजय करने का भी अधिकारी है।
अचानक ही यह अनुभव किसी को भी अपने आप हो सकता है या फिर गुरू की सीख से आप इसे विकसित करके नई ऊंचाइयों पर पहुँच सकते हैं। आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया या आनंदातिरेक को ही ध्यान कहा जाता है। यह कितना सरल है या फिर इसे कैसे हासिल किया जा सकता है यह भी ध्यान करने से ही जाना जा सकता है। महाशक्ति का आत्मनिरीक्षण और आत्मसाक्षात्कार हमें विरासत में मिला है और हमने इसे परम पिता परमात्मा से स्वाभाविक तौर पर उपहार के रूप में प्राप्त किया है। यदि एक बार हम अपने – आप पर ध्यान केंद्रित करने या अपने विचारों को दृढ़ता से किसी एक बिंदु पर केंद्रित करने में सफल हो गए तो हम ध्यानावस्था में हैं। हम अपने आंतरिक संघर्षों को सुलझा सकते हैं, हम अपने मानसिक स्तर को ऊपर उठा सकते हैं, उच्च शक्तियाँ प्राप्त कर सकते हैं, ऊर्जा को नियमित रूप में प्रवाहित कर सकते हैं और न केवल इस जन्म में बल्कि अगले जन्मों में भी अपने पूरे मालिक बन सकते हैं। परम पिता परमात्मा ने हममें विकास की सच्ची दैवीय प्रक्रिया नियोजित कर रखी है।
सच्चे ध्यान से न केवल हम संघर्षरहित और तनावरहित जीवन जी सकेंगे बल्कि इससे हम अपने इसी जीवन में, जिसे हम जानते हैं, न केवल ऊँचे मानवीय मूल्य, मानवीय आनंद और तीक्ष्ण बुद्धि प्राप्त कर सकेंगे, बल्कि दैवीय जीवन भी जी सकेंगे और इसी जन्म में ही परमानंद प्राप्त कर सकेंगे।
ध्यान की विधियों को आपके व्यक्तिगत नक्षत्र के आधार पर और आपकी आवश्यकताओं अनुरूप ढाला गया है। अगले अध्यायों में इस जटिल विषय को सरल बनाने का प्रयास किया गया है। विश्वास रखें, भरोसा करें, सच्चे दैवीय प्रेम के मार्ग का अनुसरण करें और दैवीय आनंद के पथ पर बस चलना शुरु कर दें।
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
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