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दुष्ट ग्रहों का दान जपादि विधान
डॉ.दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध सम्पादक)-
प्राणी पूर्व जन्म में शुभ या अशुभ कर्म जो भी करता है, उस कर्म के परिणाम को यह जातकशास्त्र उसी प्रकार प्रकट कर देता है, जैसे अन्धकार में स्थित पदार्थों को दीपक द्वारा हम देख सकते हैं। यथा वराहमिहिराचार्य लघुजातक ग्रन्थ में कहते हैं –
*यदुपचितमन्यजन्मनि शुभाऽशुभं तस्य कर्मणः पंक्तिम्। व्यञ्जयति शास्त्रमेतत् तमसि द्रव्याणि दीप इव।। (ल.जा.प्र.अ.श्लो 3)*
ज्योतिषशास्त्र के द्वारा सूर्यादि नवग्रह जिस प्रकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य आदि प्रवृत्ति की सृष्टि करते हैं, उसी प्रकार पूर्वजन्म के कर्मफल को भी प्रदान करते हैं। जीव पूर्व जन्म में शुभ या अशुभ कर्म जो भी करता है, उस कर्म के परिणाम वर्तमान जन्म में शुभ या अशुभ दशा फल के रूप में भोग करता है।
ग्रहदशा के प्रतिकार के लिए हर व्यक्ति अलग अलग माध्यम अपनाते हैं। यथा – ग्रहपूजा, इष्टदेव उपसना, मन्त्र जप, ग्रह जप, तन्त्र विधान, यज्ञ, दान, धर्म कार्य, रत्न धारण आदि। परन्तु कुछ ग्रहपूजा, मन्त्र यन्त्र जप करने से सम्पूर्ण ग्रहदोष खण्डन हो जाएगा यह एक भ्रम मात्र है। यदि मन में, शरीर में, कुसंस्कार भरा हुआ है, तब उसका आशाजनक प्रभाव नहीं मिलेगा। अतः विश्वास के साथ मन को शुद्ध करके मन्त्र, जप, यज्ञ, दानादि करना चाहिए। उस से दुष्ट फलदायक जो ग्रह हैं वे भी दान, जप, पूजा आदि से प्रसन्न होकर शुभ फलदायक होते हैं। अत एव आदरपूर्वक उनके दान-विधान करना चाहिए । यथा –
*येऽपि दुष्टफलकारका ग्रहास्तेऽपि पूजनादिना दानजपतः। सत् फलं परिदिशन्ति हर्षिता वच्मि दानविधिमादरादतः।। (भावप्रकाश, दान. अ.श्लो1)*
*जप हेतु उत्तम स्थान*
– रुद्रयामल में उल्लेख है – गङ्गा तट, तीर्थस्थान, कुरुक्षेत्र, प्रयाग, काशी, गोशाला, गुरु गृह, देव मन्दिर, पर्वत शिखर, इमली वृक्ष के नीचे, पर्वत गुफाओं में मन्त्र जप करना सिद्धि दायक है। (ग्रह रत्न विज्ञान, पृष्ठा. 148)
*जप हेतु उत्तम योग*
– शिव, ब्रह्मा, सुकर्मा, साध्य, शुक्ल, हर्षण, वरीयान्, ध्रुव, सौभाग्य, शोभन, धृति, वृद्धि, प्रीति, आयुष्मान् योगों में मन्त्र जप सिद्धिदायक है। (ग्रह रत्न विज्ञान, पृष्ठा. 146)
*जप हेतु शुभ अशुभ तिथि*
– प्रतिपदा –ज्ञाननाश, द्वितीया – ज्ञानवृद्धि, तृतीया – श्री लाभ, चतुर्थी – धनहानि, पञ्चमी – बुद्धि विकास, षष्ठी – बुद्धिनाश, सप्तमी – सुख वृद्धि, अष्टमी – दुःख, नवमी –स्वास्थ्यहानि रोग, दशमी – राज्यलाभ, एकादशी – पवित्रता, द्वादशी – सर्वसिद्धि, त्रयोदशी – दारिद्र्य, चतुर्दशी – निकृष्ट जन्म, अमावस्या – कार्यहानि, पूर्णिमा – धनवृद्धि इस प्रकार तिथियों का शुभाशुभत्त्व कहा गया है।। शुभ तिथियों में मन्त्रजप सिद्धिदायक है। वशीकरण के लिए सप्तमी तिथि, आकर्षण निमित्त तृतीया व त्रयोदशी तिथि, उच्चाटन के लिए द्वितीया व षष्ठी तिथि, स्तम्भन के लिए चतुर्थी, चतुर्दशी व प्रतिपदा तिथि, सम्मोहन के लिए अष्टमी व नवमी तिथि, मारण कर्म के लिए एकादशी व द्वादशी तिथि अत्यन्त प्रशस्त हैं।
*जप हेतु शुभ अशुभ वार*–
रविवार – धनलाभ, सोमवार – शान्तिलाभ, मङ्गलवार – आयुक्षय, बुधवार – श्री वृद्धि, गुरुवार – ज्ञान प्राप्ति, शुक्रवार – भाग्यहानि, शनिवार – अपकीर्ति इस प्रकार शुभाशुभ है। ज्योतिष शास्त्र के मत में रविवार – मारण, सोमवार – स्तम्भन, मङ्गलवार – विद्वेषण, वुधवार – उच्चाटन, गुरुवार – आकर्षण, शुक्रवार – सम्मोहन, शनिवार – वशीकरण कार्य के लिए उत्तम कहे गये है।
जप हेतु उत्तम करण – बव, बालव, कौलव, तैतिल, वणिज करण मन्त्र जप एवं साधना के लिए शुभ है।
जप हेतु शुभ अशुभ नक्षत्र – मन्त्र जप करने के लिए नक्षत्रों का फल इस प्रकार कहा गया है। यथा अश्विनी – शुभ, भरणी – मृत्यु, कृत्तिका – दुःख, रोहिणी – ज्ञानलाभ, मृगशीर्ष – सुख, आर्द्रा – बन्धुनाश, पुनर्वसु – धनलाभ, आश्लेषा – मृत्यु, मघा – दुःखनाश, पूर्वाफाल्गुनी – लक्ष्मी वृद्धि, उ.फाल्गुनी – ज्ञानवृद्धि, हस्त – धनलाभ, चित्रा – ज्ञानलाभ, स्वाती – शत्रुनाश, विशाखा – दुःख, अनुराधा – बन्धुहानि, ज्येष्ठा – पुत्रहानि, मूल – यशलाभ, पूर्वाषाढा उत्तराषाढा – श्रीलाभ, श्रवण – दुःख, धनिष्ठा – दारिद्र्य, शतभिषा – बुद्धि लाभ, पूर्वाभाद्रपद – सुख, उत्तर भाद्रपद रेवती – कीर्ति लाभ इस प्रकार शुभाशुभ है। तन्त्र शास्त्र के अनुसार रविवार में पुष्य नक्षत्र के दिन सकल तन्त्र कर्म सिद्धि दायक होता है। वशीकरण प्रयोग के लिए गुरु पुष्य योग प्रसिद्ध है।
*जप हेतु शुभ अशुभ पक्ष*–
शुक्लपक्ष मन्त्र जप एवं साधना के लिए उत्तम है। कृष्ण पञ्चमी तक मन्त्र ग्रहण शुभ। सांसारिक सुख, धन, सम्पत्ति और भौतिक सिद्धि के इच्छुक व्यक्ति के लिए शुक्लपक्ष तथा मोक्ष इच्छुक व्यक्ति के लिए कृष्णपक्ष सर्वोत्तम है। संक्रान्ति, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, सोमवती अमावास्या आदि मन्त्र जप या मन्त्र ग्रहण के लिए सर्वोत्तम है। (ग्रह रत्न विज्ञान, पृष्ठा. 147)
*जप हेतु शुभ अशुभ मास*
– चैत्र – सर्वसिद्धि, वैशाख – धनलाभ, श्रावण – दीर्घायु, भाद्रपद – सन्तानलाभ, आश्विन – रत्नलाभ, कार्तिक एवं मार्गशीर्ष – मन्त्रसिद्धि, माघ – बुद्धि वृद्धि, फाल्गुन – मनोरथ सिद्धि, अधिमास – सर्व हानि, ज्येष्ठ – मरण, आषाढ – स्वजन हानि, पौष – शत्रु वृद्धि इस प्रकार मास का शुभाशुभ कहा गया है।
रत्नावली मत के अनुसार भाद्रपद शुक्ल कृष्ण पक्ष की षष्ठी, आश्विन कृष्ण चतुर्दशी, कार्त्तिक शुक्ल नवमी, आषाढ शुक्ल पञ्चमी, श्रावण कृष्ण पञ्चमी तिथियों में विशेष रूप से मन्त्र जप किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी, आषाढ शुक्ल एकादशी नागपञ्चमी, श्रावण एकादशी, भाद्रपद जन्माष्टमी, आश्विन कृष्ण अष्टमी, कार्त्तिक शुक्ल नवमी, मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी, पौष चतुर्दशी, माघ शुक्ल एकादशी, फाल्गुन शुक्ल षष्ठी, चैत्र शुक्ल त्रयोदशी मन्त्र जप के लिए ग्रहणीय है।
*ग्रहों का जपनीय मन्त्र* –
सूर्य – ॐ ह्रीं ह्रौं सूर्याय नमः।।
चन्द्र – ॐ ऐं क्लीं सोमाय नमः।। मङ्गल – ॐ हूँ श्रीं भौमाय नमः।।
बुध – ॐ ऐं श्रीं श्रीं बुधाय नमः।। गुरु – ॐ ह्रीं क्लीं हूँ बृहस्पतये नमः।। शुक्र – ॐ ह्रीं श्रीं शुक्राय नमः।।
शनि – ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः।। राहु – ॐ ऐं ह्रीं राहवे नमः।।
केतु – ॐ ह्रीं ऐं केतवे नमः।। (श्रीजगन्नाथपञ्चाङ्ग, पृष्ठा.110)
*सूर्यादि ग्रहों का मन्त्र जपसंख्या* –
सूर्य की 7000,
चन्द्रमा की 11000,
मंगल की 10000,
बुध की 9000,
बृहस्पति की 19000,
शुक्र की 20000,
शनि की 33000,
राहु की 18000
एवं केतु की 7000 जपसंख्या कही गई है।
*रवौ सप्तसहस्राणि विधोवेकादशैव तु। भौमे दशसहस्राणि सहस्रनवकं बुधे।।*
*एकोनविंशतिर्जीवे भार्गवे विंशतिः शनौ। सुरा धृतिरगौ सप्त केतौ जपमितिः स्मृता।।* *(भावप्रकाश, दान. अ.श्लो12,13)*
जिस प्रकार ग्रह के अनुसार मन्त्र जप संख्या कही गई है, उसी प्रकार द्वादश राशियों के लिए भी मन्त्र जप कहा गया है। राशियों के मन्त्र 18 दिन में 1800 वार जप करना चाहिए। यथा –
मेष – ॐ ह्रीँ श्रीं लक्ष्मीनारायणाय नमः।।
वृष – ॐ गोपालाय उत्तरध्वजाय नमः।।
मिथुन – ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।।
कर्क – ॐ हिरण्यगर्भाय अव्यक्तरूपिणे नमः।।
सिंह – ॐ क्लीं ब्रह्मणै जगदाधाराय नमः।।
कन्या – ॐ पीँ पीताम्बराय नमः।।
तुला – ॐ तत्त्वनिरञ्जनाय तारकरामाय नमः।।
वृश्चिक – ॐ नारायणाय सुरसिंहाय नमः।।
मकर – ॐ श्रीँ वत्सलाय नमः।।
कुम्भ – ॐ श्रीँ उपेन्द्राय अच्युताय नमः।।
मीन – ॐ आँ क्लीँ उद्धृताय उद्धारिणे नमः।।
(ग्रह रत्न विज्ञान, पृष्ठा. 158)
सूर्यादि ग्रहों के लिए रत्न – सूर्य दुष्ट हो तो सूर्य मन्त्र से शुद्ध किया हुआ माणिक्य धारण करना चाहिए।
चन्द्रमा दुष्ट हो तो मोती, मंगल दुष्ट हो तो मूँगा, बुध दुष्ट हो तो पन्ना, गुरु दुष्ट हो तो पुखराज, शुक्र दुष्ट हो तो वज्र (हीरा), शनि दुष्ट हो तो नीलम, राहु दुष्ट हो तो गोमेद और केतु दुष्ट हो तो वैदूर्य पञ्चामृत से स्नान करके अपने अपने मन्त्रों से अभिमन्त्रित करके धारण करना चाहिए।
यथा –
*दुष्टेऽर्के प्रयतः सुधीभिरङ्गे माणिक्यं परमर्कमन्त्रशुद्धम्। दुष्टेऽब्जे वरमौक्तिकं प्रवालं भौमे ज्ञे वरपाचिरत्नमेव ।।*
*दैवेज्ये खलु पुष्पकं तु शुक्रे वज्रं भानुजहेतवे सुनीलम्। गोमेदं शशिमर्दिनि प्रयत्नाद्वैदूर्य शिखिनि मुदा सदा सुखार्थम्।। (भावप्रकाश, दान. अ.श्लो14, 15) *
सूर्य के लिए दान द्रव्य –
गेहूँ, गुड, ताम्र, सुवर्ण, रक्तचन्दन, माणिक्य, रक्त वस्त्र और गाय रवि के लिए दान करना चाहिए। यथा –
गोधूमान्नं गुडं ताम्रं काञ्चनं रक्तचन्दनम्। माणिक्यं रक्तवस्त्रं च गामर्काय निवेदयेत्।। (भावप्रकाश, दान. अ.श्लो 2)
चन्द्र के लिए दान द्रव्य – वंशपात्र में श्वेत चावल, मोती, रूपा (चाँदी), श्वेतवस्त्र, घृतकुम्भ, कर्पूर और सफेद बैल चन्द्रमा के लिए दान करना चाहिए।
तण्डुलं वंशपात्रस्थं मुक्तां रौप्यं सितांशुकम्। घृतकुम्भं सकर्पूरं वृषं चन्द्राय चार्पयेत्।। (भावप्रकाश, दान. अ.श्लो 3)
भौम के लिए दान द्रव्य – गेहूँ, गुड, ताम्र, लाल मूँगा, सुवर्ण, लाल बैल, मसूर दाल, लाल वस्त्र ओर रक्त चन्दन मंगल के लिए दान करना चाहिए ।
गोधूमगुडताम्राणि प्रवालं काञ्चनं वृषम्। रक्तं मसूरं वस्त्रं च चन्दनं कुजहेतवे।। (भावप्रकाश, दान. अ.श्लो 4)
बुध के लिए दान द्रव्य – नील वस्त्र, सब पुष्प, हाथी का दांत, सुवर्ण, दासी, मूँग, घृत और कांस्य बुध के लिए दान करना चाहिए।
नीलांशुकं सर्वपुष्पं गजदन्तं च काञ्चनम्। बुधाय दासी मुद्गाज्ये कांस्यं दद्यात्प्रयत्नतः।। (भावप्रकाश, दान. अ.श्लो 5)
गुरु के लिए दान द्रव्य – हल्दी, शक्कर (चीनी), पीला धान, सुवर्ण, पीत वस्त्र, लवण, पोखराज और घोडा बृहस्पति के लिए दान देना चाहिए।
हरिद्रां शर्करां पीतधान्यं काञ्चनमम्बरम्। लवणं पुष्परागं च तुरगं प्रीतये गुरोः।। (भावप्रकाश, दान. अ.श्लो 6)
शुक्र के लिए दान द्रव्य – सुवर्ण, चित्र वस्त्र, चाँदी, श्वेत गौ, श्वेत घोडा, वज्र (हीरा), घृत, श्वेत तण्डुल और कर्पूर शुक्र के लिए दान करना चाहिए।
स्वर्णं चित्राम्बरं रौप्यं धेनुं श्वेततुरङ्गमम्। वज्रमाज्यं तण्डुलांश्च कर्पूरं प्रीतये भृगोः।। (भावप्रकाश, दान. अ.श्लो 7)
शनि के लिए दान द्रव्य – नीलम रत्न, काला तिल, कुल्थी, भैंस, तिल तेल, काला वस्त्र और लोहा शनि के लिए दान करना चाहिए।
नीलरत्नं तिला नीलाः कुलत्था महिषा शनेः। तिलतैलं कृष्णवस्त्रं लोहं चेति विदुर्बुधाः।। (भावप्रकाश, दान. अ.श्लो 8)
राहु के लिए दान द्रव्य – गोमेद रत्न, घोडा, तेल, तिल, कम्बल, नील वस्त्र और लोहा राहु के लिए दान करना चाहिए।
गोमेदमश्वं तैलं च तिलानपि च कम्बलम्। नीलवस्त्रं च लौहं च राहोर्दानं बुधा विदुः।। (भावप्रकाश, दान. अ.श्लो 9)
केतु के लिए दान द्रव्य – वैदुर्य रत्न, तेल, तिल, कम्बल, शस्त्र, कस्तूरी और नील पुष्प केतु के लिए दान करना चाहिए।
वैदूर्यरत्नं तैलं च तिलकम्बलमर्पयेत्। शस्त्रं मृगमदं नीलपुष्पं केतुग्रहाय तत्।। (भावप्रकाश, दान. अ.श्लो10)
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