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गायत्री की असंख्य शक्तियाँ
डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध सम्पादक )-
Mystic Power- भारतीय मनीषियों ने विभिन्न शक्तियों को देवनामों में संबोधित किया है। यह समस्त देव-शक्तियाँ उस परम शक्ति की किरणें ही हैं, उनका अस्तित्व इस महत्त्व के अन्तर्गत ही है।
विद्यमान सभी देवशक्तियाँ उस महत्त्व के ही स्फुलिंग हैं, जिसे अध्यात्म की भाषा में गायत्री कहकर पुकारते हैं। जैसे जलते हुए अग्निकुण्ड में से चिंगारियाँ उछलती हैं, उसी प्रकार विश्व की महान् शक्ति सरिता गायत्री की लहरें उन देव-शक्तियों के रुप में देखने में आती हैं।
संपूर्ण दताओं की सम्मिलित शक्ति को गायत्री कहा जाय तो यह उचित होगा।… वेद, उपनिषद्, से लेकर पुराणशास्त्रों और रामायण, महाभारत आदि तक ऐसा कोई भी आगम निगम ग्रन्थ नहीं है, जिससे गायत्री महाशक्ति की अभिवन्दना न की गई हो।
ऋग्वेद में ६ ।६२ ।१०, सामवेद में २ ।८ ।१२, यजुर्वेद वा. सं. में ३ ।३५- ।२२ ।९-३० ।२-३६ ।३, अथर्ववेद में १९ ।७१ ।१ में गायत्री की महिमा विस्तार-पूर्वक गाई गई है।
ब्राह्मण ग्रन्थों में गायत्री मंत्र का उल्लेख अनेक स्थानों पर है। यथा-
ऐतरेयब्राह्मण ४ ।३२ ।२-५ ।५ ।६-१३ ।८-१९ ।८, कौशतकी ब्राह्मण २३ ।३-२६ ।१०, गोपथ ब्राह्मण १ ।१ ।३४, दैवत ब्राह्मण ३ ।२५, शतपथ ब्राह्मण २ ।३ ।४ ।३९-२३ ।६ ।२ ।९-१४ ।९ ।३ ।११, तैत्तरीय सं में १ ।५ ।६ ।४-४ ।१ ।११ ।१, मैत्रीयणी संय ४ ।१० ।३-१४९ ।१४।
आरण्यकों में गायत्री का उल्लेख इन स्थानों पर है-
तैत्तरीय आरण्यक १ ।११ ।२१० ।२७ ।१, वृहदारण्यक ६ ।३ ।११ ।४ ।८,
उपनिषदों में इस महामन्त्र की चर्चा निम्न प्रकरणों में-
नारायण उपनिषद् ६५-२, मैत्री उपनिषद् ६ ।७ ।३५, जैमिनी उपनिषद् ४ ।२८ ।१, श्वताश्वर उपनिषद् ४ ।१८ ।
सूत्र ग्रन्थों में गायत्री का विवेचन निम्न प्रसंगों में आया है-
आश्वालायन श्रौत सूत्र ७ ।६ ।६-८ ।१ ।१८ शंरखायन श्रौत सूत्र २ ।१० ।२-१२ । ७-५। ५ ।२-१० । ६ ।१०-९ ।१६ आप स्तम्भ श्रौत सूत्र ६ ।१८ ।१ शांखायन गृह्य सूत्र २ ।५ ।१२, ७ ।१९, ६ ।४ ।८ कौशीतकी सूत्र ९१ ।६ गृह्य सूत्र २ ।४ ।२१ आपस्तम्भ गृह्य सूत्र २ ।४ ।२१ बोधायन घ. शा. २ ।१० ।१७ ।१४ मान. ध. शा. २ ।७७ ऋग्विधान १ ।१२ ।५ मान. गृ. स. १ ।२ ।३-४ ।४८-५ ।२
गायत्री का महत्त्व बताते हुए महर्षियों ने एक स्वर से गाया है-
‘गायत्री वेद मातरम्’अर्थात् गायत्री वेदों की माता ज्ञान का आदि कारण है। ‘प्रज्ञा’ शक्ति मनुष्य को आत्मिक दृष्टि से सुविकसित एवं सुसम्पन्न बनाती है। ……… पर आत्मिक पूँजी का धनी अपने आप में संतुष्ट रहता है और अनुभव करता है कि वह सच्चे अर्थों में सुसम्पन्न है।…
सं उतत्वः पश्यन्नददर्शवाचमुतत्तःश्रवन्नशृणोत्येनाम्।उतो त्वस्मैतन्वां विसस्त्रेजायेपत्यवउशतीसुवासाः।। -“सरस्वती- रहस्योपनिषद्”
हे भगवती वाक् ! तुम्हारी कृपा से ही सब लोग बोलते हैं। तुम्हारी कृपा से ही विचार करना संभव होता है। तुम्हें जानते हुए भी जान नहीं पाते। देखते हुए भी देख नहीं पाते। जिस पर तुम्हारी कृपा होती है, वही तुम्हें समझ पाता है।…
भूलोकस्यास्य गायत्री कामधेनुर्मता बुधैः।लोक आश्रायणे नामुं सर्व मेवाधि गच्छति।। -गायत्री मंजरी ‘
‘विद्वानों ने गायत्री को भूलोक की कामधेनु माना है। उसका आश्रय लेकर हम सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं।’’
तेजोऽसि शुक्रमस्यर्मृतयसि धामनायसि।प्रियं देवा नायना धृष्ट देव यजनयसिगायत्र्यस्येकपदी द्विपदी त्रिपदी चतुष्यद्यपदसिनहि पद्यते नमस्ते तुरीयाय दर्शनाय पदायपरोरजसेऽसा वदो मा प्रापत्। वृ. ५ ।१४ ।७
हे गायत्री! तुम तेज रुप हो, निर्मल प्रकाश रुप हो, अमृत एवं मोक्ष रुप हो, चित्तवृत्तियों का विरोध करने वाली हो, देवों की प्रिय आराध्य हो, देव पूजन का सर्वोत्तम साधन हो। हे गायत्री! तुम इस विश्व ब्रह्माण्ड की स्वामिनी होने से एक पदी, वेद विद्या की आधारशिला होने से द्विपदी, समस्त प्राण-शक्ति का संचार करने से त्रिपदी और सूर्य-मण्डल के अन्तर्गत परम तेजस्वी पुरुषों की आत्मा होने से चतुष्पदी हो। रज से परे हे भगवती! श्रद्धालु साधक सदा तुम्हारी उपासना करते हैं।
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
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