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हिमालय के अद्भुत नदी क्षेत्र
अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)-
Mystic Power- भारत के उत्तर भाग को त्रिविष्टप कहते थे, जिसका अपभ्रंश तिब्बत है। त्रिविष्टप का प्रचलित अर्थ (निपात) स्वर्ग है। शाब्दिक अर्थ है तीन विटप या विष्टप (वृक्ष)। पुराणों में विश्व के कई भागों का वृक्ष रूप में वर्णन है। वृक्ष अपने जड़ के हजारों छोर से मिट्टी से जल ग्रहण कर उसे ऊपर तना तथा शाखाओं के माध्यम से पत्तों तक पहुंचाता है। नदी में भी यही क्रिया होती है, किन्तु विपरीत दिशा में ऊपर से नीचे जल का प्रवाह है। वर्षा का जल एक बड़े भूभाग पर गिरता है। वह हजारों छोटी धाराओं से बहता है। सभी धारा मिल कर एक नदी बनती है। वृक्ष शाखा की तरह समुद्र में मिलने के पहले नदी की भी कई शाखा हो जाती है। जिस भूभाग का जल एक नदी द्वारा निकलता है, वह उसका जल ग्रहण क्षेत्र है। इसे ब्रिटेन में catchment area कहते थे। अमेरिका ने अपनी स्वाधीनता दिखाने के लिए अलग नाम दिया-watershed। त्रिविष्टप में ३ विष्टप हैं।
पश्चिम भाग का जल सिन्धु से निष्कासित होता है-वह विष्णु विटप है। नीलमत पुराण के अनुसार यहां कश्यप रहते थे, अतः इसका नाम कश्मीर हुआ। सिन्धु तनया लक्ष्मी विष्णु पत्नी या वैष्णो देवी हैं। सिन्धु का प्रवाह क्षेत्र सिन्धु (सिन्ध प्रान्त) है। जहां तक इसकी ५ धारा थी, वह पञ्चनद या पंजाब (पंच + आब, अप् = जल) है। सिन्धु का अन्त जिस समुद्र में हुआ, उसे भी सिन्धु समुद्र कहते थे। मुस्लिम आक्रमण के बाद वह अरब सागर हो गया।
त्रिविष्टप का पूर्व भाग ब्रह्म विटप है, जो ब्रह्मपुत्र का स्रोत है। इस नद के पूर्व का भाग ब्रह्म देश (बर्मा, अभी महा-अमर, म्याम्मार) है। ब्रह्म देश तथा दक्षिण भारत के पूर्व तट के बीच का भाग ब्रह्मा का क-मण्डल है (क = जल, कर्ता रूप ब्रह्म)। इस कमण्डल में गंगा नदी मिलती थी अतः इसे गंगा-सागर कहते थे। इस सागर पर प्रभुत्व रखने वाले ओड़िशा राजा को भी गंग या चोळ-गंग कहते थे। बंगाल में अंग्रेजी शासन आरम्भ होने के बाद इसका नाम बंगाल की खाड़ी हो गया।
दोनों विटप के बीच कैलास पर्वत शिव का स्थान है जिसके निकट के पर्वत शिव जटा हैं। यह गंगा का उद्गम है। हरिद्वार के बाद के गंगा तट भूमि के शासक भीष्म थे, जिनको गंगा-पुत्र कहते थे। छोटे स्रोतों को मिलाकर धारा बनती है। गंगा धारा का जहां विभाजन आरम्भ हुआ, वह राधा (धारा का वर्ण विपर्यय) हुआ। यह फरक्का के पहले का भाग अंग था। इस राधा का राजा कर्ण राधेय या राधानन्दन था।
गंगा के दोनों तरफ के नद ब्रह्मपुत्र तथा सिन्धु पुल्लिङ्ग हैं। बीच में गंगा तथा अन्य सभी नदी स्त्रीलिङ्ग हैं। गंगा में भी दक्षिण के विन्ध्य से मिलने वाला शोण (सोन) नद पुल्लिङ्ग है।
गंगा-ब्रह्मपुत्र का संयुक्त डेल्टा (कुम्भ) भाग सु-नर वन है। छोटे छोटे वन खण्ड जल धाराओं से जुड़े हैं। इस सुनर वन का क्षेत्र सोनार बंगला है।
भारत गर्म क्षेत्र में है, अतः यहां ऊंचा तथा ठण्ढा स्थान स्वर्ग है। नीची भूमि नर्क है जो प्राचीन भारत के पश्चिम छोर पर मृत सागर के पास समुद्र तल से नीचा स्थान है। ठण्डे स्कन्ध देश (सिर उत्तर ध्रुव के नीचे सकैण्डनेविया) के देशों के स्थानीय भाषा में नाम हैं-स्वर्ग (Sverge- Sweden), नर्क ( Norge- Norway)।
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