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हिन्दू धर्म में तंत्र का महत्व
दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक)-
मार्कण्डेय पुराण की दुर्गासप्तसती और अथर्ववेद तंत्र शास्त्र का सर्वोत्तम ग्रंथ है। मार्कण्डेय पुराण में ७०० श्लोकों का उल्लेख है। इसमें माँ दुर्गा जो शक्ति की ही देवी है, इनकी गोपनीय तांत्रिक साधना का वर्णन है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण मंत्र है।
‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै नमः
र्सव मनोकामना के पूर्ति के लिए नव दुर्गा यंत्र के साथ इस मंत्र के जाप का विधान बताया जाता है। शक्ति की अभिव्यक्ति के लिए हमेशा आधार की आवश्यकता होती है, और बिना आधार शक्ति प्रकट नहीं होती।
मंत्र में अद्भुत और असीमित शक्तियाँ निहित हैं। कोई भी मंत्र अपने आप में परिपूर्ण और भव्य है। साधक विभिन्न मंत्रों का प्रयोग विभिन्न शक्तियों को प्राप्त करने के लिए करते हैं। यह एक विराट विज्ञान है। केवल तंत्रशास्त्र पढ़कर कर कोई तांत्रिक नहीं हो सकता। बिना गहन साधना के कुछ भी संभव नही है। इसमें सिद्ध गुरु की भी आवश्यकता होती है। यदि गुरु न मिले तो शुद्ध हो कर मुहूर्त में मंत्र पाठ करें। यंत्र पूजन करें। शिव या हनुमान चालिसा और आरती का जाप करें। फिर साधना प्रारम्भ करें।
मंत्र साधना में पाँच शुद्धियाँ अनिवार्य है। भाव शुद्धि, मंत्र शुद्धि, द्रव्य शुद्धि, देह शुद्धि और स्थान शुद्धि। इसके अलावे पूर्व दिशा में बैठकर जाप करना लाभकारी होता है। अपनी बाईं तरफ दीपक रखें और दाईं तरफ धूप। शुभ मुहूर्त में निश्चित संख्या में संकल्प करके जाप प्रारम्भ करें। इसके लिए अधिक उपयोगी समय होली, दीपावली, महानवमी, चंद्र या सूर्य ग्रहण, अमावस्या, सोमवती अमावस्या, इत्यादि हैं। सभी इष्ट के लिए अलग-अलग प्रकार की मालाओं का विधान है। मालाओं में १०८ मनके भगवान शिव के ‘शिवसूत्र’ में वणिर्त १०८ ध्यान पद्धतियों का सूचक है।
शिव के लिए रुदाक्ष की माला, हनुमान के लिए रक्त चन्दन या मूँगे की माला, विष्णु के लिए तुलसी या चन्दन, लक्ष्मी के लिए कमल गट्टे एवं अधिकांश कार्यों के लिए स्फटिक की माला उपयोगी होती है। अलग-अलग कार्यो के लिए मनकों की संख्या का विशेष महत्व होता है। जैसे -मोक्ष प्राप्ति के लिए २५ गुड़ियों की माला, धन और लक्ष्मी के लिए ३० गुड़ियों की माला, निजी स्वार्थ के लिए २७ गुड़ियों की माला, प्रिया प्राप्ति के लिए ५४ गुड़ियों की माला, और समस्त कार्यों एवं सिद्धियों के लिए १०८ मनकों की माला का विधान है।
तंत्र साधना में मंत्र और यंत्र दोनों की आवश्यकता होती है। ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। मंत्र का कार्य ध्वनि के क्षेत्र में प्रभाव डालना है और यंत्र का कार्य दृश्य के क्षेत्र में प्रभाव डालना है। आप देखते हैं कि यंत्रों में ज्यामितीय रेखा काफी होती है। ये कोई साधारण रेखा नहीं होती। सभी चिन्हों के अलग-अलग रहस्य भरे अर्थ और उपयोगिता होती है। कोई भी साधक इस यंत्र पर ध्यान केन्द्रित करके जन्म-मरण के रहस्य को जान सकता है। यहाँ मैं यंत्रो में छिपी रहस्यों को दर्शाने जा रहा हूँ –
बिन्दु-
यंत्र के बीच में बिन्दु होता है, यह पराशक्ति का प्रतीक है। इसकी बाहरी परत पर विभिन्न प्रकार की शक्तियाँ विद्यमान रहती हैं और अन्त में उसी में समाहित हो जाती हैं। यह उस प्राण का सूचक है जो र्सवव्यापक भी है। प्राकृतिक विज्ञान के अनुसार बिन्दु विश्व का बीज है। जिससे सृष्टि की उत्पत्ति होती है और फिर उसी में सृष्टि का विलय भी हो जाता है।
त्रिकोण-
यह पराशक्ति के प्रथम विकास का सूचक है। चूँकि आकाश को तीन से कम रेखाओं द्वारा घेरा नही जा सकता। यंत्र का नीचे मुख वाला त्रिकोण ‘शक्ति त्रिकोण’ कहलाता और उपरी मुखवाला ‘शिव त्रिकोण’ कहलाता है। इस प्रकार त्रिकोण प्रजननशील योनी का प्रतीक है।
वृत्त –
पराशक्ति की असीम शक्ति का बोध वृत्त से होता है। अपनी परिधि के प्रत्येक बिन्दु से केन्द्र में स्थित बिन्दु की ओर यह सूचित करता है।
चतुष्कोण-
चतुष्कोण का मुख चारों दिशाओ कि ओर रहता है। यह आकाश की समग्रता का प्रतीक है। इसे दशों दिशाओं एवं समस्त सृष्टि का आधार माना गया है।
पद्मदल–
यंत्र में अवस्थित पद्मदल हमेशा परिधि की ओर मुख किए हुए रहता है। इससे ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह विश्व के जन्म एवं विकास की अपूर्व शक्ति का बोध कराता है। जिस प्रकार कमल जल में रहकर भी पानी और कीचड से दूर रहता है उसी प्रकार पद्मदल साधक को र्व्यर्थ की सांसारिक रागों से दूर रहने की प्रेरणा देता है।
प्रत्येक क्रिया में ऊर्जा की आवश्यकता होती है और ऊर्जा से आकर्षण पैदा होता है। इस अस्तित्व में सभी वस्तुओं में आकर्षण है। हिन्दू शास्त्रों में आकर्षण शक्ति प्राप्ति की तीन प्रणाली है-
मांत्रिक, यांत्रिक और तांत्रिक –
बिना आकर्षा के प्रकृति निर्जीव, जड एवं शून्य हो जाएगी। प्रकाश आकर्षा है अंधकार विकर्षा है। जब तक मन पर आधिपत्य नही होगा आकर्षा का प्रयोग सफल नही होगा। यंत्रों पर ध्यान केन्द्रित करके उस पर उत्करिण मंत्र का जब सही उच्चारण के साथ जप किया जाता है तो यंत्र, इष्ट की उपस्थिति से जागृत हो जाता है, और उसे बाहरी शक्तियाँ प्राप्त होने लगती हैं।
मनुष्य के शरीर में सात चक्र हैं, और ब्रम्हाण्ड के विभिन्न भागों में यंत्र अवस्थित हैं। शरीर के चक्रों और ब्रम्हाण्ड के यंत्रों के मध्य गहरा संबन्ध स्थापित होना ही तंत्र साधना है- जो चक्रों और यंत्रों पर ध्यान केन्द्रित करके ही प्राप्त किया जा सकता है।
अपनी महत्वपूर्ण कृति ‘साइन्स एण्ड तंत्र’ में प्रो. अजीत कुमार कहते हैं – शुद्ध सृजनात्मक सिद्धांत यंत्रों के माध्यम से स्वयं को प्रकट करते हैं और यंत्र चक्रों के माध्यम से अभिव्यक्त होते हैं। चक्र के माध्यम से ही साधक अपनी मानसिक शक्ति को जागृत करता है एवं यंत्र और चक्र के माध्यम से ही शक्ति स्वयं को प्रक्रट करती है।
तंत्र के पश्चिमी लेखकों जैसे जोसे अर्गुयेलिस और मरियम अगुयेलिस ने यंत्रों की व्याख्या इस प्रकार की है – “यंत्र मस्तिष्क को मात्र एकाग्रता प्रदान करने के लिए मनुष्य द्वारा बनाए गये बाह्य उपकरण नहीं हैं। यह मानवीय चेतना में उपस्थित वास्तविक आकृतियाँ हैं जिन्हें साधक ध्यानावस्था में देख चुके हैं”।
तंत्र साधना के लिए उपयोगी स्थान श्मशान क्यों –
प्रत्येक कार्य के लिए सकारात्मक ऊर्जा की आवश्यकता पडती है और ऐसी ऊर्जा का स्रोत भैरवी को माना गया है। भैरवी श्मशान में निवास करती है। इसलिए श्मशान में बडी ही आसानी से शांति के साथ ऊर्जा की प्राप्ति हो जाती है। तंत्र के जन्मदाता भगवान शिव भी श्मशान में ही तंत्र साधना करते थे।
अथर्ववेद में तंत्र का वर्णन –
अथर्ववेद में धन-प्राप्ति, सुख-शांति, व्यापारिक सफलता, रोग निवारण, इच्छित कार्य सफलता, इत्यादि कार्यों के लिए विशेष मंत्र का उल्लेख है। अथर्ववेद के अनुसार प्रत्येक मंत्र के प्रत्येक अक्षर में एक विशेष ध्वनि होती है और प्रत्येक ध्वनि का अपना कंपन होता है और इन कंपनों की निश्चित संख्या होती है।
यहां मैं मंत्रों से प्राप्त होनेवाले लाभ के बारे में बतलाने जा रहा हूँ –
‘ॐ नमः शिवाय’ -स्वास्थ्य लाभ और मानसिक शांति के लिए।
ॐ शांति प्रशांति र्सव क्रोधोपशमनि स्वाहा -क्रोध शांति के लिए।
ॐ हृीं नमः’ – धन प्राप्ति के लिए।
‘ॐ हृीं श्रीं अर्ह नमः’ विजय प्राप्ति के लिए।
‘ॐ क्लिीं ऊँ’ – कार्य की रुकावट दूर करने के लिए।
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ – आकस्मिक दुर्घटना से बचाव के लिए।
‘ॐ गं गणपतये नमः’ – व्यापार लाभ, संतान प्राप्ति, विवाह एवं समस्त कार्यो के लिए।
‘ॐ हृीं हनुमते रुद्रात्म कायै हुं फटः’ – पद वृद्धि के लिए।
‘ॐ हं पवन बंदनाय स्वाहा’ – प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए।
‘ॐ भ्रां भ्रीं भौं सः राहवे नमः’ – पारिवारिक शांति के लिए।
साधना से पहले कुछ बातों को ध्यान में रखना जरुरी है। जैसे : धन प्राप्ति के लिए – लाल रंग, विद्या प्राप्ति के लिए पीला, रोग मुक्ति के लिए सफेद माला का प्रावधान है। इसके अलावा जिस रंग की माला हो, उसी रंग का आसन और वस्त्र भी लाभकारी होता है। मंत्र जाप या किसी भी साधना के समय अगर चंद्र नाडी चल रही हो तो और अधिक लाभकारी माना गया है। साधना पूर्ण निष्ठा आस्था एवं नियम से करना चाहिए। क्योंकि गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – ‘संशयात्मा विनश्यति’ शंका से ही विनाश होता है।
यंत्रों से संबंधित लाभ-
श्रीयंत्र– र्सव मनोकामना पूर्ति हेतु।
गणेश यंत्र- व्यापारिक सफलता हेतु।
श्री लक्ष्मी यंत्र –आर्थिक सफलता हेतु।
श्री बगलामुखी यंत्र- शत्रु पर विजय के लिए।
श्री महामृत्युंञ्जय यंत्र- लंबी उम्र के लिए।
श्री हनुमान यंत्र- बुरे आत्मा से बचाव के लिए।
दुर्गा यंत्र- कार्यो में सफलता के लिए।
काल माया मोहिनी यंत्र- इच्छापूर्ति के लिए।
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