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अथर्ववेद में जादू-टोने की विधियाँ
श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ )-
Mystic Power –टोना करने वाला अपने यहाँ किसी वस्तु पर टोना करता है कि दूसरे को हानि पहुँचे। जिसके लिए वह टोना करता है, उस पर टोना पड़ता है और उसको हानि पहुँचती है या उसकी मृत्यु होती है।(अथर्ववेद ४/१८/३).
अथर्ववेद में टोने की विविध विधियाँ ये दी हैं—कृत्या प्रयोग करने वाले कच्चे मिट्टी के बर्तन पर, पके हुए मिट्टी के बर्तन पर, कच्चे मांस पर टोना करते हैं।(अथर्ववेद ४/१७/४). जो उसको लेगा या खाएगा उस पर टोने का प्रभाव होगा और उसे हानि पहुँचेगी । बिना नाम लिए सपत्नी या सोत के नाशन के लिए टोना करने का विधान है। उसका नाम बिना लिए हुए उस पर टोना करना कि उसकी मृत्यु हो जाए । मन से उसका चिन्तन करके उस पर टोना करना । इससे ज्ञात होता है कि जिस व्यक्ति को हानि पहुंचानी होती है, उसका नाम लेकर भी टोना किया जाता है ।(अथर्ववेद ३/१८/३).
अथर्ववेद में कहा गया है कि इन साधनों से टोना किया जा सकता है(अथर्ववेद ५/६/९). और दूसरे को हानि या लाभ पहुँचाया जा सकता है-आँख, मन, मन्त्र और तपस्या । ये जादू-टोने के बड़े शस्त्र हैं। अथर्ववेद में आँख से टोना करने वालों को ‘चक्षुमन्त्र’ कहा गया है।(अथर्ववेद २/७/५). कुदृष्टि या आँख से टोना करने वाले नीच व्यक्ति की हड्डियाँ तोड़ देने का आदेश है। इसी प्रकार अंजन के द्वारा आँख से टोना करने वाले को नष्ट करने का वर्णन है।(अथर्ववेद १९/४५/१). साथ ही अंजन के द्वारा टोने के प्रयोग को प्रयोक्ता पर ही लौटाने का वर्णन है। इसका अभिप्राय यह है कि अंजन लगाने वाले पर टोने का प्रभाव नहीं होता। दूसरे स्थान पर वर्णन किया गया है कि जो आँख, मन और विचार से टोना करके हानि पहुँचाना चाहते हैं, उन्हें नष्ट कर दिया जाए ।(अथर्ववेद ५/६/१०).
अथर्ववेद का कथन है कि जिस व्यक्ति या वस्तु पर टोना करना हो, उसके निमित्त किसी वस्तु पर टोना करके उसे कुएँ में डाल दें या श्मशान में जाकर उसे गाड़ दें या किसी मकान आदि पर बांध दें।(अथर्ववेद ५/३१/८). इस विधि का अभिप्राय यह ज्ञात होता है कि जिस वस्तु पर टोना अभीष्ट है, वह वस्तु नष्ट हो जाए या मर जाए। कुए में डालने का भाव है कि वह व्यक्ति या वस्तु सदा के लिए समाप्त हो जाए। मकान पर बांधने का भाव यह है कि वह मकान, जो कि शत्रु का है, नष्ट हो जाए या वह व्यक्ति आदि सूखकर नष्ट हो जाए ।
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अथर्ववेद में आसुरी ओषधि से पति पर टोना करने का विधान है।(अथर्ववेद ७/३८/१से५). इसके द्वारा स्त्री पति को अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है।(अथर्ववेद ७/३८/१). इस ओषधि के प्रयोग के द्वारा इन्द्र देवों पर प्रभावशाली हो गया। इसके प्रयोग से स्त्री पति का विशेष प्रेम प्राप्त कर सकती है।(अथर्ववेद ७/३८/२).इस ओषधि के प्रयोग से पति केवल अपनी स्त्री का ही चिन्तन करेगा और किसी स्त्री का नाम तक नहीं लेगा । वह अपनी पत्नी का ही होकर रहेगा।(अथर्ववेद ७/३८/४). पति यदि सुदूर स्थान में हो या नदी के पार हो तो भी वह इस ओषधि के कारण बद्ध सा होकर अपनी स्त्री के पास आ जाएगा ।(अथर्ववेद ७/३८/५).
यह आसुरी ओषधि क्या है ? वैद्यक शब्द – सिन्धु का कथन है कि सफेद या पीली सरसों को आसुरी ओषधि कहते हैं। राजनिघण्टु ने पीली सरसों के गुण बताए हैं कि इसके प्रयोग से शरीर की सुन्दरता बढ़ती है। यहाँ वास्तविक अभिप्राय यह है कि स्त्री को पीली सरसों का प्रयोग अधिक करना चाहिए, उसका उबटन आदि सदा लगाना चाहिए। इससे शरीर का सौन्दर्य निरखता जाएगा और पति उसके वश में रहेगा ।
अथर्ववेद की व्याख्या में सायण ने पति को वश में करने वाली ओषधि का नाम ‘सौवर्चल’ कहा है।(अथर्ववेद ७/३८/१). भावप्रकाश के अनुसार सौवर्चल यह सोंचर नमक या काला नमक का नाम है।(भाव० हरीतक्यादिवर्ग श्लोक २४८-२४९)
यह सज्जी और नमक से तैयार किया जाता है । भावप्रकाश में दूसरा शब्द सुवचला है।(भाव० गुडच्यादिवर्ग लोक २८४-२८६)
इसको हिन्दी में हुरहुर, हुलहुल या कानफुटी कहते है। इसके पत्तों में विशेषता यह है कि सूर्य जिस ओर जाता है, उसी ओर इसके पत्ते झुक जाते हैं । अतः इसे सूर्यभक्ता, रविप्रीता आदि कहते हैं । सायण के अनुसार उक्त सौवचल ओषधि से हुरहुर लेनी चाहिए। सायण ने अथर्ववेद के तीन मन्त्रों में पति को वश में करने वाली ओषधि शंखपुष्पी कही हैं।(अथर्ववेद ३/१८/१से६). भावप्रकाश के अनुसार यह कान्ति और वल बढ़ाने वाली है तथा भूतबाधा हरती है।(भाव० निघण्टु- गुडूच्यादिवर्ग, श्लोक २६९-२७०)
इसे हिन्दी में शंखपुष्पी और शंखावलो कहते हैं ।
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अथर्ववेद में वर्णन किया गया है कि किस प्रकार पाठा ओषधि के द्वारा टोना करके सपत्नी को नष्ट किया जा सकता है या उसे अपने वश में किया जा सकता है।(अथर्ववेद ३/१८/१से ६).इस सूक्त में पाठा ओषधि का नाम नहीं है, परन्तु सायण में इस सूक्त में पाठा ओषधि का वर्णन माना है। इस सूक्त के विषय में कौशिक सूत्र का कथन है कि इस सूक्त से सपत्नीजय के लिए बाणापर्णी के पत्तों के चूर्ण को लाल रंग की बकरी की दही के जल में मिलाकर अभिमन्त्रित करके सौत की खाट पर बखेर दें।(कौशिक सूत्र – ४.१२) इसी प्रकार कौशिक सूत्र में निर्देश है कि वादविवाद में विजय प्राप्त करने के लिए अथर्ववेद के मन्त्र का जप करता हुआ सभा भवन में प्रवेश करे ।’ अथववेद से ज्ञात होता है कि सपत्नी पर विजय पाने के लिए पाठा ओषधि के पत्तों को उसकी खाट के नीचे-ऊपर डाला जाता था। भाव- प्रकाश में भी पाठा का वर्णन है।’ इसको हिन्दी में पाठा, पाठ, पुरइन, पाती आदि कहते हैं । यह शूल, ज्वर, हृदय रोग, उदररोग आदि को दूर करती है । जादू करने वाले दूसरे व्यक्ति के प्राण और अपान को नष्ट करना चाहते हैं, जिससे वह व्यक्ति जीवित न रह सके।(अथर्ववेद १९/२७/५से६).
टोना खेत, गाय और आदमियों पर किया जाता था । अथर्ववेद में विधान है कि हृदयरोग और पीलिया रोग को टोने से उतार कर तोतों पर, पौधे पर और हरी वनस्पतियों पर डाल दें। इसका यह अभिप्राय ज्ञात होता है कि ऐसा टोना करने से वह पेड़ या पौधा सूख जाता है और रोगी नीरोग हो जाता है। रोगों आदि को दूर करने के लिए आजकल भी ऐसी प्रथाएँ प्रचलित हैं। वस्त्रादि को रोगी के ऊपर से घुमाकर उतार कर पेड़ या पौधे में बाँध देते हैं और यह मानते हैं कि पेड़ पौधा सूख जाएगा और रोगो नीरोग हो जाएगा । यही बात अथर्ववेद में भी कही गई है कि मनुष्यों और पशुओं के रोगों को नड और सरकण्डा आदि पर डालते है। झाड़-फूंक से भी रोग हटाने का वर्णन है ।(अथर्ववेद ३/९/५).
टोना आदि मूखों का काम : अथर्ववेद से ज्ञात होता है कि टोना आदि को अच्छा काम नहीं समझा गया है। अतएव इसकी बार बार निन्दा की गई है। अथर्ववेद में कहा गया है कि कृत्याप्रयोगों के द्वारा मूर्ख ही नष्ट होते हैं, विद्वान् नहीं।(अथर्ववेद ४/१८/२).इससे ज्ञात होता है कि जादू-टोने का प्रचलन मूर्खो में होता है। मूर्ख ही जादू-टोने पर विश्वास रखते हैं, अतः उन्हें हानि भी पहुँचती है। उन पर ही टोने आदि का प्रभाव होता है, विद्वानों पर नहीं । मूर्ख व्यक्तिअपनी मूर्खता के कारण विद्वानों पर टोना करते हैं, परन्तु उनका यह प्रयोग सफल नहीं होता है।(अथर्ववेद ५/३१/१०). टोना करना निन्दित काम माना गया है।(अथर्ववेद ५/३१/१०).अतएव जादु करने वालों को नष्ट करने का आदेश दिया गया है।(अथर्ववेद २/८/२). टोना करने का दुष्परिणाम यह बताया गया है कि टोना करने वाला दूसरे व्यक्ति को हानि न पहुँचा सकने के कारण उसकी भलाई करता है और अपने लिए दुःख उत्पन्न करता है।(अथर्ववेद ४/१८/६)
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