जय शब्द का उपयोग
श्री सुशील जालान ( ध्यान योगी )-
Mystic Power– जय शब्द का उपयोग मंत्र की तरह भी किया जा सकता है, किसी भी देवता के आवाहन हेतु। जय शब्द के बाद उस देवता के प्रचलित नाम का योग कर मंत्र बनता है। देवता का नाम उसके सहस्र नाम स्तोत्र से चयन किया जा सकता है, उपयोग की दृष्टि से।
जय का पदच्छेद है, ज (ज् + अ) + य (य् + अ),
– ज् वर्ण है जन्म, प्रकट होने के संदर्भ में,
– य् वर्ण है वायु तत्त्व, प्राण, हृदयस्थ
अनाहतचक्र का कूट बीज वर्ण,
– अ है स्थायित्व प्रदान करने के लिए।
जय का अर्थ हुआ,
जिसका भक्त भक्तिभाव से, प्राणपण से, उसके विशिष्ट नाम, संज्ञा, विशेषण से, आवाहन करता है, पुकारता है, वह भक्त के हृदय में प्रकट हो।
श्रीमद्भगवद्गीता (16.7), श्लोकार्ध है,
“आर्त्तो जिज्ञासु अर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।”
अर्थात्,
चार तरह के भक्त श्रीभगवान् को पुकारते हैं, आर्त्त, जिज्ञासु, धन का इच्छुक, तथा ज्ञानी। श्रीभगवान् का कोई भी अवतार अथवा देवी का स्वरूप भक्त के लिए मान्य है इस श्लोकार्ध के अंतर्गत।
जय श्रीराम, यानि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम हृदय में दर्शन दें।
– बार बार प्राणायाम के साथ इसका मानसिक उच्चारण करने से कालान्तर में श्रीराम का साधक के हृदय में प्राकट्य, दर्शन होना संभव है। संवेग की तीव्रता तथा समर्पण भाव अभिष्ट है।
– ब्रह्म मुहूर्त, अभिजित मुहूर्त तथा संध्या बेला में प्रतिदिन इसका अभ्यास अपेक्षित है, ब्रह्मचर्य पालन भी जितना हो सके।
– श्रीराम भक्त वत्सल हैं, शरणागत भक्त की पुकार अवश्य सुनते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता (18.61), श्लोकार्ध है,
“ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति”
अर्थात्,
वह ईश्वर सभी के हृदय में वास करता है, प्रकट होता है।
इसी प्रकार जय श्रीकृष्ण अथवा जय श्रीनारायण का भी मंत्र के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
– जय श्रीदुर्गा, जय श्रीकमला, जय मां काली आदि भी देवी के मंत्र के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं।
– यह सभी के लिए है, नारी हो या बालक, ब्राह्मण हो या शूद्र, सनातनी हो या म्लेच्छ, पवित्री धारण किया हुआ गृहस्थ हो या संन्यासी !!
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