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कालचिन्तन…
श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ)-
mystic power – हम सब का नियन्ता काल है। शेषनाग काल है। शेषशायी पुरुष धर्म है। धर्म का व्यायाम क्षण से युग पर्यन्त है तथा विस्तार मुहूर्त से परार्धपर्यन्त है। तीस मुहूर्त का एक दिनरात (होरा) होता है। तीस होरा का एक मास होता है । १२ मासों का एक संवत्सर होता है। एक संवत्सर में दो अयन हैं-उत्तरायण और दक्षिणायन ।
मनुष्य के दिनरात का विभाग सूर्यदेव करते हैं। रात प्राणियों के विश्राम के लिए तथा दिन क्रियाशील रह कर कर्म करने के लिए है। मनुष्यों के एक मास में पितरों का एक दिन रात होता है। शुक्लपक्ष पितरों का दिन है तथा कृष्णपक्ष पितरों की रात है। मनुष्य का एक वर्ष देवताओं के एक दिनरात के बराब होता है। उत्तरायण देवताओं का दिन है, दक्षिणायन उन की रात्रि है। देवताओं के चार हजार वर्षों का एक सतयुग होता है। सतयुग में चार सौ दिव्य वर्षों की संध्या होती है तथा इतने ही वर्षों का एक संध्यांश होता है। इस प्रकार, सतयुग का सम्पूर्ण मान ४००० + ४०० + ४०० = ४८०० दिव्यवर्ष है। संध्या एवं संध्यांशों सहित अन्य तीन युगों का मान भी इसी प्रकार स्पष्ट है। त्रेता का सम्पूर्ण मान ३००० + ३०० + ३०० = ३६०० दिव्यवर्ष, द्वापर का सम्पूर्ण मान २००० + २०० + २०० = २४०० दिव्यवर्ष तथा कलियुग का सम्पूर्ण मान १००० + १०० + १०० = १२०० दिव्य वर्ष हुआ। स्पष्ट है, देवताओं के बारह हजार वर्षों का एक चतुर्युग होता है तथा एक हजार चतुर्युग को ब्रह्मा का एक दिन बताया गया है। इतने ही युगों की उन की एक रात्रि भी होती है। अर्थात् ब्रह्मा के एक दिनरात्रि (होरा) का मान ससंध्यांश (१००० + १०० + १०० ) x २ = २४०० चतुर्युग है। ब्रह्मा दिन के आरंभ में सृष्टिकर्म करते हैं तथा रात्रि के आरंभ में इससे उपराम हो कर योगनिद्रा का आश्रय लेते हैं। जागने पर पुनः सृष्टि करने में व्यस्त हो जाते हैं। एक हजार चतुर्युग का जो ब्रह्मा का एक दिन बताया गया है तथा उतनी ही बड़ी जो उनकी रात्रि कही गई है, उसको जो लोग ठीक-ठीक जानते हैं, वे ही दिन और रात अर्थात् कालतत्व को जानने वाले हैं। कथन है…
१. सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद् ब्रह्मणो विदुः । रात्रिं युगसहस्त्रान्तां तेहोऽरात्रविदोजनाः।।( -महा. शांति. २३१/३१, भीष्म. ३२/१७)
२. तद्वै युगसहस्रान्तं ब्राह्मं पुण्यमहर्विदुः।
रात्रिं च तावतीमेव तेहोऽरात्रिविदोजनाः।।
(मनुस्मृति १/७३)
१. सहस्त्रयुगपर्यन्तम् = एक हजार युगों के बराबर। अहः यद् ब्रह्मणः = ब्रह्मा का जो एक दिन है। रात्रिं युगसहस्त्रान्ताम् = एक हजार युगों की एक रात्रि होती है। जनाः विदुः = जो लोग यह जानते हैं। ते अहोरात्रविदः = वे अहोरात्रविद् (कालज्ञ) हैं।
२. ब्रह्मं पुण्यम् –अहः युग सहस्त्रान्तम् = ब्रह्मा का एक पवित्र दिन एक हजार चतुर्युग के बराबर होता है। रात्रिं च तावतीम् एव = रात्रि भी उतनी बड़ी अर्थात् एक हजार चतुर्युग के बराबर होती है। तद् वै विदुः = उस (इस) तथ्य को जो जानता है। ते अहोरात्रविदः जनाः = वे लोग – अहोरात्र के ज्ञाता कहे जाते हैं।
ब्रह्मा के अहोरात्र की संध्या का मान इस का दशांश १०० चतुर्युग है तथा इतना ही संध्यांश है। इसलिये सम्पूर्ण अहोरात्र का मान दो हजार चार सौ चतुर्युग (महायुग) हुआ।
चतुर्युगी : = कृत + त्रेता + द्वापर + कलि = महायुग ।
संवत्सर = १ मानुषवर्ष = १ दिव्यदिन = १ दिव्य अहोरात्र । देवों का ३६० अहोरात्र = १ दिव्य वर्ष = ३६० मानुषवर्ष
इस क्रम में प्रत्येक युग का मान मानुषवर्षों में इस प्रकार परिगण्य है…
कलियुग = १२०० दिव्य वर्ष = १२००x३६० = ४,३२,००० मानुषवर्ष ।
द्वापरयुग = २४०० दिव्य वर्ष = २४००x३६०= ८,६४,००० मानुषवर्ष ।
त्रेतायुग = ३६०० दिव्य वर्ष = ३६००x३६० = १२,९६,००० मानुषवर्ष ।
कृतयुग = ४८०० दिव्य वर्ष = ४८००x३६० = १७,२८,००० मानुषवर्ष ।
१ चतुर्युगी = १२००० दिव्य वर्ष = १२०००x३६० = ४३,२०,००० मानुषवर्ष ।
एक महायुग का मान तिरालिस लाख बीस हजार मानुषवर्ष हुआ। इस सन्दर्भ में वेद का यह मन्त्र है…
शतं ते ऽ युतं हायनान् द्वे युगे त्रीणि चत्वारि कृण्मः ।
इन्द्राग्नी विश्वेदेवाः ते ऽनुमन्यतामहृणीयमानाः ।।
(अथर्व. ८/२/२१)
शतम् = १०० | ते = (ब्रह्मा के) ।
अयुतम् = १०,००० दस हजार मात्र ।
हायनान् = वर्षाणि ।
द्वे त्रीणि चत्वारि = ४३२ अंकानां वामतो गतिः ।
युगे = महायुग में,
एक चतुर्युगी में कृण्मः = स्थापित किया है।
इन्द्राग्नी = प्रभुत्व एवं सर्वोपरिता से युक्त ।
विश्वेदेवाः =सर्वमान्य विद्वानों ने ।
ते = उस ब्रह्म के लिए।
अह्नणीयमाणाः लज्जा संकोच से हीन, बिना किसी हिचक वा लाग लपेट के ।
ते = उस ब्रह्म के लिए। अह्नणीयमाणाः लज्जा संकोच से हीन, बिना किसी हिचक वा लाग लपेट के । अनु-मन्यताम् = मानें, स्वीकार करें। मन्वन्तर = १००० महायुग ।
अतएव १ मन्वन्तर = १००० ÷१४ = ७१ मन्वन्तर से कुछ अधिक वा
अनु-मन्यताम् = मानें, स्वीकार करें।
द्वे त्रीणि चत्वारि अयुतम् = ४३२x१०,००० = ४३,२०,००० मानुषवर्ष एक महायुग का मान है।
ब्रह्मा का १ दिन १००० चतुर्युगी (महायुग) = १०००x४३,२०,००० = ४,३२,००,००,००० अर्थात् चार अरब, बत्तीस करोड़ मानुषवर्ष ।
इतने ही वर्षों की ब्रह्म रात्रि है।
अतएव ब्रह्म होरा : ४,३२,००,००,०००x२ = ८,६४,००,००,००० मानुष वर्ष ।
इस की संध्या एवं संध्यांश का मान = ८६,४०,००,००० + ८६,४०,००,००० = १,७२,८०,००,००० मानुषवर्ष ।
सम्पूर्ण ब्रह्महोरा ८,६४,००,००,००० + १,७२,८०,००,००० = १०,३६,८०,००,००० ।
दस अरब, छत्तीस करोड़, अस्सी लाख मानुषवर्ष मात्र दिव्य वर्षों में इसका मान = १०,३६,८०,००,००० | + ३६० = २,८८,००,००० ।
दो करोड़ अट्ठासी लाख दिव्य वर्ष के बराबर ब्रह्मा का होरा होता है। ३६० अहोरात्र का १ ब्राह्मवर्ष होता है। ब्रह्मा की आयु का प्रमाण १०० वर्ष है। इसलिये…
ब्रह्मा की सम्पूर्ण आयु = १०,३६,८०,००,०००×३६० x १०० मानुष वर्ष। = ३७,३२,४८,००,००,००,००० मानुषवर्ष । अर्थात् सैंतीसनील, बत्तीस खरब, अड़तालिस अरब मानुष वर्ष मात्र = १०,३६,८०,००,००० दिव्य वर्ष ।
सृष्टि के निर्माण के हेतु जिस जीव को ब्रह्मा के पद पर महामाया द्वारा स्थापित किया जाता है, उस के कार्य की अवधि (आयु) मात्र इतने वर्ष नियत है। वर्तमान में जो ब्रह्मा जी हैं, उनकी आयु के आधे का भाग ५० वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। ५१वाँ वर्ष चल रहा है। इसमें से २७ कल्पगत हो चुके हैं और २८वाँ श्री श्वेतवाराह नामक कल्प चल रहा है। इस कल्प का यह वैवस्वत नामक सातवाँ मन्वतन्तर है।
ब्रह्मा के १ दिन में १४ मन्वन्तर होते हैं। १ मनु का कार्यकाल = १ मन्वन्तर । १ ब्राह्मदिन = १ कल्प = १४ सर्वमान्य विद्वानों ने ।
७१ .३/७ – महायुग । प्रत्येक मन्वन्तर में सतयुग के प्रमाण तुल्य १ सन्धि होती है। इस प्रकार १४ मन्वन्तरों में आद्यन्त कुल १५ सन्धियाँ होती हैं।
१ संधिकाल = १ सतयुग = १७,२८,००० मानुषवर्ष ।
१५ संधिकाल = १५×१७,२८,००० = २,२९,२०,००० वर्ष ।
१ मन्वन्तर = ७१ महायुग = ७१x४३,२०,००० (१ महायुग का मान) = ३०,६७,२०,००० वर्ष । १४ मन्वन्तर = १४×३०,६७,२०,००० वर्ष । = ४,२९,४०,८०,००० वर्ष ।
१४ मन्वन्तर + १५ सन्धिकाल = ४,२९,४०,८०,००० + २,५९,२००० = ४,३२,००,००,००० वर्ष।
यह मान ब्रह्मा के १ दिन का है। चार अरब, बत्तीस करोड़ मानुष वर्ष के तुल्य एक ब्राह्म दिन होता है। ४,३२,००,००,००० ÷ ३६० = १,२०,००,०० अर्थात् एक करोड़ बीस लाख दिव्यवर्ष। इस गणना को जो हृदयंगम कर लेता है, वह ब्रह्मवेत्ताओं के निकट स्थान पाने का अधिकारी होता है। ऐसे जन को हमारा नमस्कार।
अब हम वर्तमान ब्रह्मा की गत आयु का आकलन कर रहे हैं।
ब्रह्मकल्प के ६ मन्वन्तर बीत चुके हैं।
६ मन्वन्तर = ६×३०,६७,२०,००० = १,८४,०३,२०,००० मानुषवर्ष ।
६ मन्वन्तरों की ७ संधियाँ १७,२८,००० (१ सतयुग का मान) x ७ = १,२०,९६,००० वर्ष ।
१ चतुर्युगी = ४३,२०,००० वर्ष गत २७ चतुर्युगी = २७x४३,२०,००० = ११,६६,४०,००० वर्ष। १ सतयुग + १ त्रेता + १ द्वापर १७,२८,००० + १२,९६,००० + ८,६४,००० वर्ष। = ३८,८८,००० वर्ष ।
वर्तमान कलियुग के गत वर्ष = ५१२१ वर्ष (सं. २०७९ वै. तक) । ब्रह्मा के ५१वें वर्ष का गत काल = ६ मन्वन्तर + ६ मन्वन्तरों की ७ संधियाँ + २७ महायुग (चतुर्युगियों) का काल + वर्तमान २८वीं चतुर्युगो का गत काल = १,८४,०३,२०,००० + १,२०,९६,००० + ११,६६,४०,००० + ३८,८८,०० + ५,१२१ वर्ष । = १,९७,२९,४९,१२१ वर्ष । ब्रह्मा जी की अब तक की गत आयु का मान = परार्ध + परार्धोत्तर गत = (३७,३२,४८,००,००,००,००० : २) + १,९७,२९,४९,११७ = १८,६६,२४,००,००,००,००० + १,९७,२९,४९,११७ = १८,६६,२५,९७,२९,४९,११७ वर्ष । इस ब्रह्मा का नाम आपव प्रजापति है। ये अब तक अपनी नियत आयु के अठारह नील, छाछठ खरब, पचीस अरब, सत्तानबे करोड़, उनतीस लाख, उनचास हजार, एक सौ सत्रह वर्ष भोग चुके हैं। यह इन का ५१वाँ ब्राह्मवर्ष है। वर्तमान कल्प का नाम श्रीश्वेतवारह कल्प है, क्योंकि इस कल्प के प्रारंभ में भगवान् का श्वेतवाराह के रूप में पृथ्वी के उद्धारार्थ अवतरण हुआ। इस कल्प के ६ मनु अपना कार्यका पूरा कर जा चुके हैं। इन गत मनुओं के नाम हैं…
१. स्वायम्भुव,
२. स्वारोचिष,
३. औत्तमि,
४. तामस,
५. रैवत,
६. चाक्षुष।
सातवें मनु वैवस्वत वर्तमान पद को सम्हाल रहे हैं। भविष्य में होने वाले मनुओं के नाम क्रम से ये हैं-८. सावर्णि, ९. दक्षसावर्णि, १०. ब्रह्मसावर्णि, ११. धर्मसावर्णि, १२. रुद्रसावर्णि, १३. देवसावर्णि तथा १४. इन्द्रसावर्णि।
धार्मिक व्यवस्था में संकल्प लेते समय परार्ध, कल्प, मन्वन्तर, युग का स्मरण द्विज लोग इस प्रकार करते हैं-
ओम् अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतखण्डे भारतवर्षे, अमुक क्षेत्रे, अमुक नगरे, अमुक ग्रामे तीर्थे वा अमुक नाम संवत्सरे, अमुकमासे, अमुकपक्षे (शुक्ल वा कृष्ण), अमुकतिथौ, अमुकवासरे,अमुकगोत्रोत्पन्नः, अमुकनाम वर्णःअहम् आत्मप्रीत्यर्थं अमुक कर्म करिष्ये ।
पर का अर्थ है- शत १०० । परार्ध = १०० का आधा = ५० । ब्रह्मा का प्रथम परार्ध ५० वर्ष व्यतीत हो चुका है। उनका यह द्वितीय परार्ध है। इस द्वितीय परार्ध में यह श्रीश्वेतवाराह नामक कल्प (ब्राह्मदिन) है। ब्रह्मा के १ कल्प में १४ मनु व्यवस्था को ठीक रखते हैं। इस कल्प में अब वैवस्वतमनु कार्य कर रहे हैं। ये सातवें मनु हैं।
इस का अर्थ हुआ कि इस के पहले ६ मनु पदमुक्त चुके हैं, अपने-अपने कार्यकालों को पूरा कर के इस सातवें मन्वन्तर की २७ चतुर्युगियाँ गत हो चुकी हैं। २८वीं चतुर्युगी चल रही है। इस चतुर्युगी के प्रथम तीन युग (सतयुग, त्रेता, द्वापर) व्यतीत हो चुके हैं तथा कलियुग के प्रथम चरण में से पाँच हजार एक सौ सत्रह वर्ष (वैक्रम संवत् २०७९ तक) समाप्त हो चुके हैं। कालमान के सम्बन्ध में इतना कहने के बाद जातक क्षेत्र स्थान स्वनाम गोत्र संवत्सर तिथि आदि का स्मरण करता हुआ कर्तव्य का निष्पादन करता है।
यह हमारी सनातन व्यवस्था का अंग है। हम सब द्विजों के द्वारा यह पालनीय एवं रक्षणीय है। जैसे मनुष्यों के अहोरात्र में दो संध्याएँ (प्रातः एवं सायम्) होती हैं वैसे ही युगादि-युगान्त की दो संध्याएँ होती हैं, मन्वन्तर के आरम्भ एवं अन्त की दो संध्याएँ होती हैं तथा कल्प (ब्राह्महोरा) के आदि एवं अन्त की भी दो संध्याएँ होती हैं। ये दो संध्याएँ कार्य के आरम्भ एवं उपसंहार के लिए होती हैं। जैसे हम सब प्रतिदिन सो कर उठने पर पातर् संध्या में कार्यारम्भ करते हैं तथा सायंकाल सोने के पूर्व कार्य को समेटते हैं, वैसे ही मनु जी मन्वन्तर के आरम्भ एवं अन्त में तथा ब्रह्मा जी कल्प के आरम्भ एवं अन्त में अपने-अपने कार्यों का प्रारंभ एवं संहरण करते रहते हैं। ये संध्याएँ सृष्टि एवं प्रलय की कारक हैं। सामान्यतः तीन प्रकार के सृष्टि एवं प्रलय देखे जाते हैं।
इन के नाम हैं-योग, मान्व तथा ब्राह्म। जागरण सृष्टि है तथा निद्रा प्रलय है। प्रत्येक मन्वन्तर का स्वामी धर्मपुरुष मनु होता है। १४ मनुओं, मनुपुत्रों, सप्तर्षियों, देवगणों, देवेन्द्रों तथा अवतारों का विवरण इस प्रकार है…
१. स्वायम्भुवमन्वन्तर स्वायम्भुव मनु के पुत्र – आग्नीध्र, अग्निबाहु, मेधा, मेधातिथि, वसु, ज्योतिष्मान् द्युतिमान् हव्य, सवन, पुत्र ।
सप्तर्षिगण – मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, क्रतु, वसिष्ठ, पुलस्त्य ।
पूज्यदेवगण-शान्तरजा, प्रकृति, याम। देवेन्द्र – यज्ञ ।
अवतार – वामन (कश्यप-अदिति से) ।
२. स्वारोचिषमन्वन्तर स्वारोचिष मनु के पुत्र- हविर्धः, सुकृति, ज्योति, आप, मूर्ति, अयस्मय, प्रथित, नमस्य, ऊर्ज, नभ सप्तर्षिगण – और्व, स्तम्ब, काश्यप, प्राण, बृहस्पति, दत्त, निश्चयवन ।
पूज्यदेवता- तुषितगण, पारावत। देवेन्द्र- रोचन।
अवतार- विभु (वेदशिरा – तुषिता से) ।
३. औत्तम मन्वन्तर उत्तम मनु के पुत्र – इष, ऊर्ज, तनुज, मधु, माधव, शुचि, शुक्र, सह, नभस्य, नभ ।
सप्तर्षिगण – कौकुरुण्डि, दाल्भ्य, शंख, प्रवहण, शिव, सित, सम्मित।
देवगण-सुधामा, अन, सत्य, जप, प्रतर्दन।
देवेन्द्र- सत्यजित् । अवतार-सत्यसेन (धर्म-सूनृता से)।
४. तामस मन्वन्तर तामस मनु के पुत्र-अकल्मष, धन्वी, तन्वी, तपोधन, तपोरति, तपोमूल, सुतपा, तपस्य, द्युति, परंतप ।
सप्तर्षिगण – काव्य, पृथु, अग्नि, जन्यु, धाता, कपीवान्, अकपीवान् ।
पूज्य देवता – सत्यक, हरि, वीर, वैधृति ।
देवेन्द्र – त्रिशिख ।
अवतार- हरि (हरिमेधा- हरिणी से)।
५. रैवत मनु के पुत्र- धृतिमान्, अव्यय, युक्त, तत्वदर्शी, निरुत्सुक, अरण्य, प्रकाश, निर्मोह, सत्यवाक्, कवि ।
सप्तर्षिगण – वेदबाहु, यदुध्र, वेदशिरा, हिरण्यरोमा, पर्जन्य, ऊर्ध्वबाहु, सत्यनेत्र |
देवगण-अभूतरजा, प्रकृति, परिप्लव, रैभ्य। देवेन्द्र – विभुः ।
अवतार – वैकुण्ठनाथ (शुभ्र-विकुण्ठी से) ।
६. चाक्षुष मन्वन्तर चाक्षुष मनु के पुत्र- ऊरु, पुरु, शतद्युम्न, महिम्न, तेजोमय, सह, सख, सानु, सुवर्ण, कुन्त।
सप्तर्षिगण – भृगु, नभ, विवस्वान्, सुधामा, विरजा, अतिनामा, सहिष्णु ।
देवगण-आद्य, प्रभूत, भृभु, पृथग्भाव, लेखा ।
देवेन्द्र-मन्त्रद्युम्न |
अवतार-अजित (वैराज-सम्भूति से)।
७. वैवस्वत मन्वन्तर…
वैवस्वत मनु के पुत्र- इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, नाभाग, अरिष्ट, करूष, पृषध, वसुमान्।
सप्तर्षिगण – अत्रि, वसिष्ठ, कश्यप, गौतम, भरद्वाज, विश्वामित्र, जगदग्नि ।
पूज्यदेवता – आदित्य, वसु, रुद्र, विश्वेदेव, मरुत्, साध्य, अभु, अश्विनौ ।
देवेन्द्र पुरन्दर।
अवतार वामन (कश्यप-अदिति से)।
८. सावर्णिमन्वन्तर सावर्णि मनु के पुत्र- वरीयान्, अवरीयान्, सम्मत, धृतिमान्, वसु, चरिष्णु, वाज, सुमति, विरजस्क,
सप्तर्षिगण गालव, दीप्तिमान्, परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, सृष्यशृंग, बादरायण व्यास । सुहत् ।
देवगण- सुरजा, विरजा, अमृतप्रभ ।
देवेन्द्र – विरोचनपुत्र बलि ।
अवतार – सार्वभौम (देवगुह्य-सरस्वती से)।
९. दक्षसावर्णिमन्वन्तर दक्षसावर्णि के पुत्र – भूतकेतु, दीप्तकेतु, धृष्टकेतु, पञ्चहोत्र, निराकृति, गय, अष्टहत, अचीक, भूरिधामा, पृथुश्रवा।
सप्तर्षिगण – हविष्मान्, सुकृति, आपोमूर्ति, अष्टम, प्रमिति, नभोग, नभस् ।
देवगण – पार, मरीचिगर्भ ।
देवेन्द्र-अद्भुत ।
अवतार-सृषभ (आयुष्मान् – अम्बुधारा से) । दक्षसावर्णि को मेरुसावर्णि भी कहते हैं। इसे रोहित मनु नाम दिया गया है।
१०. ब्रह्मसावर्णिमन्वन्तर ब्रह्मसावर्णि के पुत्र – सुक्षेत्र, उत्तमौजा, भूरिषेण, चित्रसेन, महासेन, विश्वसेन, प्रथित, सुधर्मा, कम्प, क्षत्र।
सप्तर्षिगण – आर्चिष्मान्, सुवृत, सत्य, तपोमूर्ति, नाभाग, अप्रतिमौजा, सत्यकेतु ।
देवगण – सुधामा, विशुद्ध।
देवेन्द्र- शम्भु ।
अवतार- विष्वक्सेन (विश्वसृज् – विषूचि से) ।
११. धर्मसावर्णिमन्वन्तर धर्मसावर्णि मनु के पुत्र-देववीर्य, देवानीक, अनघ, सर्वत्रग, सधर्मा, सुवर्चा, शंकु, नरोत्तम, प्रभुपाद, क्षेम।
सप्तर्षिगण – निःस्वर, अग्नितेजा, वपुष्मान्, घृणि, आरुणि, अमोघ, तरुण ।
देवगण-विहंगम, कामगम, निर्वाणरुचि ।
देवेन्द्र- वैधृत ।
अवतार-धर्मसेतु (अर्यक-वैधृता से) ।
१२. रुद्रसावर्णिमन्वन्तर रुद्रसावर्णि मनु के पुत्र-देववान्, उपदेव, देवश्रेष्ठ, उदधिष्ण्य, निश्वर, अग्नितेजा, महातेजा, तिग्मतेजा. संतोष, संपत् ।
सप्तर्षिगण-द्युति, सुतपा, तपोमूर्ति, तपस्वी, तपोऽशन, तपोरति, तपोधृति ।
देवगण – हरित, रोहित, सुमना, सुकर्मा, सुराय।
देवेन्द्र – मृतघामा ।
अवतार-स्वधामा (सत्यसहा-सुनीता से) ।
१३. देवसावर्णिमन्वन्तर देवसावर्णि मनु के पुत्र- चित्र, विचित्र, धर्मभृत, घृत, सुनेत्र, क्षत्रवृद्धि, सुतपा, निर्भय, दृढ, नय।
सप्तर्षिगण – धृतिमान् हव्यप, तत्वदर्शी, निरुत्सुक, निष्प्रकम्प, निःशंक, निरालम्ब ।
देवगण- सुकर्म, सुत्राम।
देवेन्द्र-दिवस्यति ।
अवतार – योगेश्वर (देवहोत्र – बृहती से) । देवसावर्णि को रुचिसावर्णि भी कहा गया है।
१४. इन्द्रसावर्णिमन्वन्तर इन्द्रसावर्णि मनु के पुत्र-तरंगभीरु, वप्र, तरस्वान्, उग्र, अभिमानी, प्रवीण, जिष्णु, संक्रन्दन, तेजस्वी, सबल ।
सप्तर्षिगण – अतिबाहु, शुचि, शुक्र, युक्त, अजित, अग्निध्र, मागध ।
देवगण – पवित्र, कनिष्ठ, चाक्षुष, भ्राजिक, वाचावृद्ध ।
देवेन्द्र-शुचि ।
अवतार – बृहद्भानु (सुत्रायण-विताना से) । इन्द्रसावर्णि को भौत्य मनु भी कहते हैं।
सृष्टि की सम्पूर्ण व्यवस्था युग, मन्वन्तर एवं कल्प के अन्तर्गत भूयमान है। यह व्यवस्था शाश्वत होने से भृत है। सभी कालबद्ध हैं। कल्प में १४ मन्वन्तर, मन्वन्तर में ७१ चतुर्युगी, चतुर्युगी में ४ युग बड़े छोटे के क्रम से तथा युग में वर्ष अवयव रूप से विद्यमान हैं। हमारा जीवन संवत्सरों (वर्षों) में सीमित है। मनु की व्यवस्था में रहने से हम मानव हैं। मनुप्रोक्त धर्म को धारण करना हमारा कर्त्तव्य है। ब्रह्मा जी सिसृक्षासम्पन्न महत्तपी जीव हैं। सृजन कर्म के नायक के रूप में परमसत्ता ने ब्रह्मा जी को नियुक्त किया है। ब्रह्मा जी ने अपने सहायकों के रूप में महातपस्वी जीवों को मनु, अषि, देवता के पद पर प्रतिष्ठित किया है। मनु के सहायक के रूप में उनके पुत्र हैं तथा सब की सहायता के लिए महाजीव विष्णु प्रत्येक मन्वन्तर के आरम्भ में अवतार लेता है। देवताओं के अधिपति के रूप में इन्द्र होता है। इस प्रकार ब्रह्मा के एक कल्प में १४ मनु, प्रत्येक मनु के १० पुत्र, १४ सप्तर्षिगण १४ देवगणों में अनेक उपगण, १४ इन्द्र, १४ अवतारक अवतार होते हैं। मन्वन्तर विस्तार के सम्बन्ध में यह पौराणिक वचन है…
चतुर्युगाणां संख्याता साधिका ह्येकसप्ततिः ।
मन्वन्तरं मनोः कालः सुरादीनां च सत्तम ।।
चतुर्दशगुणो ह्येष कालो ब्राह्ममहः स्मृतम् ।। (विष्णु पुराण १/३/१८, २२)
हे सत्तम ! इकहत्तर युगों से कुछ अधिक काल का एक मन्वन्तर होता है। यही मनु एवं देवादिकों क कार्यकाल है। इस काल का चौदह गुना ब्रह्मा का एक दिन होता है। पुन: कहते हैं…
द्वितीयस्य परार्धस्य वर्तमानस्य वै द्विज ।
वाराह इति कल्पोऽयं प्रथमः परिकीर्तितः ।। ( विष्णु पु. १/३/२८)
हे द्विज! इस समय वर्तमान ब्रह्मा के दूसरे परार्ध का यह वाराह नामक पहला कल्प है। इस वाराह कल्प में यह सातवाँ वैवस्वत मन्वन्तर है। वर्तमान में हम जिस धर्म का आचरण कर रहे हैं, वह वैवस्वत मनु के द्वारा प्रचलित, पुरन्दर इन्द्र द्वारा संरक्षित, वसिष्ठादि सप्तर्षियों द्वारा प्रसारित, आदित्यादि देवों द्वारा पोषित, इक्ष्वाकु आदि मनुपुत्रों द्वारा पूजित तथा वामनादि अवतारों द्वारा उद्धारित है। वैष्णवजनों द्वारा कथित इस सनातन धर्म के प्रति हम पूर्णत: समर्पित हैं।
।। सनातनधर्माय नमः ।।
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
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