![](https://mysticpower.in/wp-content/uploads/2024/01/जानिए-कौन-थे-मिथिला-के-प्रथम-राजा-निमि-.png)
जानिए कौन थे मिथिला के प्रथम राजा निमि?
श्री अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ )-
Mystic Power – स्वस्तिक-निमि इक्ष्वाकु के ९ पुत्रों में एक थे और मिथिला के प्रथम राजा बने।
निमि नेमि = छोर, सीमा। निमि = आंख का खोल, पलक। ऋषि वसिष्ठ के शाप से राजा निमि की पलक सदा खुली रहती थी। उनके शरीर के मन्थन से सन्तान की उत्पत्ति हुई, अतः उनके पुत्र को मिथि कहा गया और उनके क्षेत्र का नाम मिथिला।(देवी भागवत पुराण, ६/१४, भागवत पुराण, ९/१३, मत्स्य पुराण, ६१, विष्णु पुराण, ४/५ आदि)। इसी प्रकार पूर्व काल में राजा वेन के सरीर के मन्थन से पहले निषाद और फिर राजा पृथु का जन्म हुआ था। तारकासुर के एक सेनापति का भी नाम निमि था (मत्स्य पुराण, १४८/५१, १५३/५५, स्कन्द पुराण, १/२/१९/६२, १/२/२०/७)
इसका ज्योतिषीय अर्थ है कि सूर्य जगत् की आंख है-चक्षोः सूर्यो अजायत (पुरुष सूक्त, वाज. यजु, ३१/१२)। पृथ्वी की सतह पर इसकी गति के २ छोर हैं-दक्षिण में मकर रेखा तक, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करे (विक्रमादित्य काल में जब पुराणों का वर्तमान रूप बना, सूर्य ठीक मकर राशि में प्रवेश करता था, अभी अयन गति के कारण २४ अंश बाद प्रवेश)।
उत्तरी छोर है कर्क रेखा, जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है (विष्णु पुराण, २/८/६७-६९, भागवत पुराण, ५/२१/२-६, आदि)।
इक्ष्वाकु या उनके पुत्र निमि के समय कर्क रेखा मिथिला सीमा को छूती थी (पटना के निकट गंगा तट)। इस अर्थ में निमि की आंख सदा खुली रहती थी। पृथ्वी अक्ष का झुकाव प्रायः २७ अंश तक बढ़ता है और २२ अंश तक घटता है, जिसका चक्र प्रायः ४१,००० वर्ष का है (च्युति गति, Nutation)। अभी यह घट रहा है तथा प्रायः २३ अंश २७ मिनट है। कर्क रेखा का सबसे उत्तरी स्थान नैमिषारण्य था, जहां सूर्य के रथ की नेमि शीर्ण हो जाती थी (कूर्म पुराण, २/४३/७, पद्म पुराण, १/१, वराह पुराण, ११/१०७, वायु पुराण, १२५, शिव पुराण, ७/१/३/५३)। जब सूर्य दक्षिणी छोर पर रहता है तो उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ी रात होती है और सबसे अधिक शीत होता है। अतः इसे अरिष्टनेमि कहा गया। है। इस समय सूर्य श्रवण नक्षत्र में रहता है जिसमें ३ तारा हैं, अर्थात् यह तार्क्ष्य है (त्रि + ऋक्ष, ऋक्ष = भालू, ऋषि, तारा, जैसे सप्तर्षि, सप्तर्क्ष)। मार्गशीर्ष मास में सूर्य रथ पर तार्क्ष्य यक्ष की स्थिति का उल्लेख है (विष्णु पुराण, २/१०/१३, भागवत पुराण, १२/११/४१)।
तार्क्ष्य का अर्थ गरुड़ भी है, तार्क्ष कश्यप का पुत्र-
प्रमथ्य तरसा राज्ञः शाल्वादींश्चैद्यपक्षगान्।
पश्यतां सर्वलोकानां तार्क्षपुत्रः सुधामिव (भागवत पुराण, १०/५२/१७)
श्रवण नक्षत्र का स्वामी गोविन्द हैं, जो अरिष्ट को दूर करते हैं, इस अर्थ में भी यह नक्षत्र अरिष्टनेमि है। स्वस्तिक चिह्न क्रान्ति वृत्त (पृथ्वी कक्षा का वृत्त) के ४ पादों की सीमा है (चित्र में स्पष्ट)। अन्य ३ पाद की सीमा हैं-
(१) ज्येष्ठा नक्षत्र जिसका स्वामी इन्द्र है। इन्द्र देवों में ज्येष्ठ हैं, ज्येष्ठा तारा ब्रह्माण्ड में हमारे निकट का सबसे बड़ा तारा (Antares) है। ज्येष्टा नक्षत्र का आकार कुण्डल जैसा है जो वृद्धश्रवा (श्रवणेन्द्रिय का विस्तार) है। श्रवा का अर्थ सीधी रेखा है, श्रेष्ठता रेखा में इन्द्र सर्वोच्च होने से वृद्धश्रवा हैं।
(२) रेवती (क्रान्ति वृत्त का अन्त) का स्वामी पूषा है जो पुष्टि या पूर्णता देता है,
(३) पुष्य नक्षत्र का स्वामी बृहस्पति गुरु रूप में हैं। ये ४ पुरुषार्थ भी देते हैं-धर्म (गुरु), अर्थ (इन्द्र), काम (पूषा), मोक्ष (गोविन्द)
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥ (यजु, २५/१९)
सूर्य की यह उत्तर-दक्षिण दिशा की अयन गति भी एक सुपर्ण (पक्षी) या गरुड़ है-
अथ ह वाऽ एष महासुपर्ण एव स्यात्संवत्सरः। तस्य यान्पुरस्ताद्विषुवतः षण्मासानुपश्यन्ति सोऽन्यतरः पक्षो ऽथ यान्षड् उपरिष्टात् सः अन्यतरः। आत्मा विषुवान्। (शतपथ ब्राह्मण, १२/२/३/७)
"मिस्टिक पावर में प्रकाशित सभी लेख विषय विशेषज्ञों द्वारा लिखे जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं का सम्पादन मिस्टिक पावर के अनुभवी एवं विशेषज्ञ सम्पादक मण्डल द्वारा किया जाता है। मिस्टिक पावर में प्रकाशित लेख पाठक को जानकारी देने तथा जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया जाता है। मिस्टिक पावर लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है।"
:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
![](https://mysticpower.in/wp-content/uploads/2023/02/DONATION.jpeg)
![](https://mysticpower.in/wp-content/uploads/2023/10/contact-us-.png)