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नवग्रह पीड़ाहरस्तोत्र
डॉ.दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध सम्पादक)-
mystic power- ग्रहों के द्वारा उत्पन पीड़ा का निवारण करने के लिये ब्रह्माण्डपुराणोक्त इस स्तोत्र का पाठ लाभदायक हैं, इसमें सूर्यादि नौ ग्रह से क्रमशः एक-एक श्लोक के द्वारा पीड़ा दूर करने की प्रार्थना की गयी है–
ग्रहाणामादिरादित्यो लोकरक्षणकारक: । विषमस्थानसम्भूतां पीडां हरतु मे रवि:॥ १॥
ग्रहों में प्रथण परिगणित, अदिति के पुत्र तथा विश्व की रक्षा करने वाले भगवान् सूर्य विषमस्थानजनित मेरी
पीड़ा का हरण करें ॥ १॥
रोहिणीशः सुधामूर्ति: सुधागात्र: सुधाशनः । विषमस्थानसम्भूतां पीडां हरतु मे विधु:॥ २॥
दक्षकन्या नक्षत्ररूपा देवी रोहिणीके स्वामी, अमृतमय स्वरूपवाले, अमृतरूपी शरीरवाले तथा अमृतका पान करानेवाले चन्द्रदेव विषमस्थानजनित मेरी पीड़ाको दूर करें ॥ २॥
भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा । वृष्टिकृद् वृष्टिहर्ता च पीडां हरतु मे कुज:॥ ३॥
भूमिके पुत्र, महान् तेजस्वी,’जगत्को भय प्रदान करनेवाले, वृष्टि करनेवाले तथा वृष्टिका हरण करनेवाले मंगल [ग्रहजन्य] मेरी पीड़ाका’हरण करें ॥ ३॥
उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति: । सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीडां हरतु मे बुध:॥ ४॥
जगत्में उत्पात करनेवाले, महान् चुतिसे सम्पन्न, सूर्यका प्रिय करनेवाले, विद्वान् तथा चन्द्रमाके पुत्र बुध मेरी पीड़ाका निवारण करें ॥ ४॥
देवमन्त्री विशालाक्ष: सदा लोकहिते रत: | अनेकशिष्यसम्पूर्ण: पीडां हरतु मे गुरु:॥ ५॥
सर्वदा लोककल्याणमें निरत रहनेवाले, देवताओंके मन्त्री, विशाल नेत्रोंवाले तथा अनेक शिष्योंसे युक्त बृहस्पति मेरी पीड़ाको दूर करें॥५॥
दैत्यमन्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामतिः । प्रभु: ताराग्रहाणां च पीडां हरतु मे भृगु:॥ ६॥
दैत्योंके मन्त्री और गुरु तथा उन्हें जीवनदान देने वाले, ताराग्रहों के स्वामी, महान् बुद्धिसम्पन्न शुक्र मेरी पीड़ा को दूर करें ॥६॥
सूर्यपुत्रो दीर्घदेहा विशालाक्षः शिवप्रियः । मन्दचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि: ॥ ७॥
सूर्यके पुत्र, दीर्घ देहवाले, विशाल नेत्रोंवाले, मन्दगतिसे चलनेवाले, भगवान् शिवके प्रिय तथा प्रसन्नात्मा शनि मेरी पीड़ाको दूर करें ॥ ७ ॥
अनेकरूपवर्णश्च शतशोSथ सहस्त्रद्रक् । उत्पातरूपो जगतां पीडां हरतु मे तम:॥८॥
विविध रूप तथा वर्णवाले, सैकड़ों तथा हजारों आँखोंवाले, ‘जगतूके लिये उत्पातस्वरूप, तमोमय राहु
मेरी पीड़ाका हरण करें ॥ ८ ॥
महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी॥ ९॥
महान् शिरा (नाड़ी)-से सम्पन्न, विशाल मुखवाले, बड़े दातोंवाले, महान् बली, बिता शरीरवाले तथा ऊपरकी ओर केशवाले शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ाका हरण करें॥९॥
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