पुष्य नक्षत्र और विवाह
श्री सुशील जालान (ध्यान योगी )-
Mystic Power – पुष्य नक्षत्र कर्क राशि में अपने चारों पादों के साथ स्थित है, 3°20′ से 16°40′ तक। पुष्य नक्षत्र के स्वामी और देवता क्रमशः शनि तथा देवगुरु बृहस्पति हैं।
मोक्ष भाव द्वादश, मीन राशि का स्वामी बृहस्पति, मोक्ष भाव चतुर्थ में, कर्क राशि में, उच्च का होता है और यहां 5° पर, पुष्य नक्षत्र के प्रथम चरण में, परमोच्च का माना गया है, कालपुरुष कुंडली में।
यह दोनों ग्रह आपस में चारों पुरुषार्थों के कारक हैं –
– शनि दशम भाव अर्थ (कर्म) और एकादश भाव काम,
– बृहस्पति नवम भाव धर्म और द्वादश भाव मोक्ष, के स्वामी माने गए हैं कालपुरुष कुंडली में।
इन दोनों ग्रहों के योग से चारों पुरुषार्थों की सिद्धि होती है।
– नवमेश बृहस्पति और दशमेश शनि का योग नवम अथवा
दशम भाव में श्रेष्ठ राजयोग माना गया है।
– दोनों का, नवमेश दशमेश का, स्थान परिवर्तन भी उत्तम राजयोग है।
* लेकिन विवाह वर्जित है पुष्य नक्षत्र में –
– क्योंकि मोक्ष के लिए ब्रह्मचर्य आवश्यक है।
द्वादश भाव में, मोक्ष भाव में, रति क्रिया श्रेष्ठ है अगर योग तंत्र विद्या के आधार पर की जाती है –
– शुक्र ग्रह रति क्रिया का कारक है, उच्च का माना जाता है
मीन राशि, द्वादश भाव, कालपुरुष कुंडली में।
– यहां वज्रोली योग क्रिया संपन्न करते हैं साधक और साधिका।
– मोक्ष का यह भी एक मानक है।
जैसे शिव संग पार्वती का विवाह, जहां वीर्यपात नहीं होता है, मैथुनी लौकिक संतान नहीं होती है। इनकी दो अलौकिक संतानें हैं, गणपति और कार्तिकेय –
– गणपति, ऋद्धि सिद्धि प्रदाता हैं, मूलाधार चक्र में स्थित हैं, अनाहत चक्र तक गतिमान हैं,
– स्वामी कार्तिकेय अनाहत चक्र में विराजमान हैं देवसेना के प्रधान सेनापति के रूप में, सूर्य के तेज के साथ, दितिपुत्र दैत्यों को पराजित करते हैं।
– पार्वती स्वयं कुण्डलिनी शक्ति है, शिव के साथ सायुज्य में स्थित है, मूलाधार चक्र, अनाहत चक्र और सहस्रार में।
* वैदिक संस्कृति में, पुष्य नक्षत्र में सामान्य जन के लिए विवाह निषेध किया गया है, विशेषकर जब बृहस्पति पुष्य नक्षत्र में हो, गोचर में, ब्रह्मचर्य पालन के लिए।
– जबकि वज्रोली योगक्रिया में सक्षम योगी योगिनी के लिए यह नियम मान्य नहीं है। यह दोनों शिवतत्त्व का बोध करते हैं रति में रत होकर।
– यहां स्वयं योगी आनंद भैरव तथा योगिनी आनंद भैरवी के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं।
– शिवलिंग का यही मर्म है, रहस्य है, शिव पार्वती के युग्म होने का।
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