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साधना चोरी से बचाता है उल्टा तिलक
श्री अनिल गोविन्द बोकील (नाथसंप्रदाय मे पूर्णाभिषिक्त और तंत्र मार्ग मे काली कुल मे पूर्णाभिषिक्त के बाद साम्राज्याभिषिक्त।)
आज एक महत्वपूर्ण बात आपके समक्ष रखना चाहता हूँ ।
हम अक्सर सुनते है – इंद्र ; यम ; नारद आदि आदि । ये शब्द व्यक्तिवाचक बिलकुल नहीं है । ये सभी पद याने posts है । आज के इंद्र की जगह कुछ कालावधी के बाद कोई अन्य लेगा । वैसे ही अन्य posts के विषय मे जाने । अब इन सभी को ऊर्जा की जरूरत होती ही है । ऊर्जा के लिए ये खुद साधना नहीं कर सकते । अत: वे ऊर्जा प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहते है । आप जानते ही है कि पितृपक्ष मे हम पूर्वजो के लिए तर्पणादि करते है । इससे उनकी अगली यात्रा सुखकर रहती है ।
कोई इंद्र वगेरो के लिए कुछ करते है ? नहीं । इसीलिए ये योनी ऊर्जा की तलाश मे रहती है । कहां से प्राप्त करते रहते है ऊर्जा ? कोई भी साधक कुछ साधना करते है ; तब उनकी साधना मे रहे न्यून / छिद्र / गलतीयां वे पकड लेते है । और उसी माध्यम से पूरी साधना चोरी करते रहते है ।
जब भी साधक साधना करते है ; तब ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होती है । और साधना मे छिद्र रहेंगे तब वही से साधक की साधना ये योनीयां तुरंत ग्रहण करती है । और साधक को लगने लगता है कि इतनी साधना करने पर भी कुछ नहीं हो रहा ? निराशा आती है।
इसीलिए उपाय बताया जा रहा है अब ।
गायत्री मंत्र मे शुरू मे चार व्याहृती होती है । ” ओम ; भु: ; भुव: ; स्व: ।
इसका उपयोग करना चाहिये । तरीका यह होगा एक बर्तन मे जल लेना । उसमे अपने दाहिने हाथ की अनामिका डूबोकर हिलाते हुए उक्त चारो व्याहृती उलटे क्रम से जपना ” स्व: भुव: भू: ओम ” । और अनामिका से अपने माथेपर ( कपोल पर ) उलटा ( ऊपर से नीचे ) तिलक करना । इस से साधना समय की हमारी ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होनेपर भी अपने ही अंदर रहेगी । उसे कोई चुरा नहीं सकेगा ।
कितना समय लगता है इसके लिए ? बस्स ; १० सेकंद ।। कोई भी साधना करने से पहले ऐसा उलटा तिलक जरूर करे ।
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