सन्तति विज्ञान…
श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ )-
Mystic Power-गुरु सन्तान कारक ग्रह है। सन्तान का विचार जन्मलग्न एवं प्रश्नलग्न से पञ्चम स्थान और चन्द्रमा उन लग्नों में जहाँ भी हो उससे पञ्चम स्थान से करे ।
१. गुरु, पञ्चमभाव, पञ्चमेशशुभ ग्रह युक्त या दृष्ट हो तो सन्तति हो।
२. लग्नेश पञ्चम भाव में हो, और गुरु बलवान् हो, तो सन्तति होती है।
३. बलीगुरु, लग्नेश से दृष्ट हो, तो प्रबल सन्तति योग होता है।
४. सन्तान (५वे) भाव पर मङ्गल और शुक्र की एकपाद, द्विपाद, त्रिपाद दृष्टि हो ।
५. १, ४, ७, १०, ५ और ९वे भावों के स्वामी शुभ ग्रह हो और उनमें से कोई पञ्चम भाव में बैठा हो तथा पञ्चमेश ६।८।१२ भाव में न हो, पापयुक्त, अस्त, या शत्रुराशीगत न हो, तो सन्तान सुख हो ।
६. पञ्चम में २, ७, ४ वृष, तुला, कर्क में से कोई राशी हो, ५वे शुक्र या चन्द्र हो अथवा इनकी दृष्टि हो, तो बहुपुत्र योग होता है।
७. लग्न या चन्द्रमा से ५वें भाव में शुभ ग्रह हो, या ५वां भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट हो, या पञ्चमेश से दृष्ट हो, तो सन्तान योग होता है।
८. लग्नेश, पञ्चमेश एक साथ हों, या परस्पर दृष्ट हो, अथवा दोनों स्वगृही मित्रगृही, या उच्च के हों, तो प्रबल सन्ततियोग समझें ।
९. लग्नेश, पञ्चमेश शुभ ग्रह के साथ होकर केन्द्र १, ४, ७, १०वें स्थानों में हों और द्वितीयेश बली हो, तो सन्तान योग होता है ।
१०. लग्नेश और पञ्चमेश दोनों सप्तम भाव में हों, अथवा द्वितीयेश लग्न में हो, तो सन्तान योग होता है।
११. पचमेश के नवांश का स्वामी, शुभ ग्रह से युत और दृष्ट हो तो सन्तान योग होता है। लग्नेश और पक्षमेश १।४।७। १० स्थानों में शुभ ग्रह से युत या दृष्ट हो तो सन्तान योग होता है।
१२. पञ्चमेश और गुरु बलवान् हो तथा लग्नेश पञ्चम भाव में हो, सप्तमेश के नवांश का स्वामी, लग्नेश तथा धनेश और नवमेश, इन तीनों से दृष्ट हो, तो सन्तति योग होता है।
१३. पञ्चम भाव में २।४।८।१०।१२ राशियाँ और इन्हीं राशियों के नवांश शनि, बुध, शुक्र या चन्द्रमा से युत । हों तो कन्यायें अधिक तथा पञ्चम भाव में १।३।५।७।९।११ राशियाँ तथा इन राशियों के नवांशाधिपति मङ्गल, शनि और शुक्र से दृष्ट हो तो पुत्र सन्तति योग होता है।
१४. पञ्चमेश २।८ भाव में हो तो कन्यायें अधिक होती हैं।
१५. १२ बुध, शुक्र या चन्द्रमा में से कोई हो तो कन्यायें अधिक होती है।
१६. बुध, चन्द्र और शुक्र में से एक भी ५ वें गया हो तो कन्यायें अधिक होती है।
१७. पञ्चम में मेष, वृष और कर्क में से किसी स्थान पर केतु हो तो सन्तान लाभ होता है।
प्रश्न लग्न में विशेष विचार…
१. प्रश्न कर्त्ता की तिथि संख्या को ४ से गुणा कर १ जोड़ें, योग में दिन संख्या विष्कम्भादि योग संख्या जोड़ें, और योग में २ का भाग दें। लब्धि को ३ से गुणाकर ४ से भाग दें। १ शेष हो तो विलम्ब से, दो शेष हो तो अभाव, ० शेष से शीघ्र सन्तति लाभ समझना चाहिए।
२. दिन संख्या को ३ से गुणा करें उसमें तिथि जोड़ लें, योग में दो का भाग दें १ शेष हो, सन्तति लाभ शेष हो अभाव समझना चाहिए ।
३. प्रश्न, जन्म और चन्द्रमा से पञ्चम में सिंह, वृष, वृश्चिक या कन्या राशियां हों तो विलम्ब में सन्तान होती है।
४. यदि प्रश्न से ५ वें पाप ग्रह की युति या दृष्टि हो, तो विलम्ब से सन्तति लाभ होता है।
५. प्रश्न से ८वें सिंह, मकर या कुम्भ में रवि और शनि हों, तो सन्तति अभाव होता है ।
६. प्रश्न से ८वें चन्द्र और बुध हो तो विलम्ब से १ सन्तति लाभ होता है और चन्द्र बली हो तो कन्या होती है।
७. प्रश्न से ८वें केवल बुध हो तो सन्तान का अभाव होता है।
८. प्रश्न से ८वें शुक्र और बुध हों तो सन्तति होकर भी नष्ट हो जाती है।
९. प्रश्न से ८वें मङ्गल हो, तो गर्भपात होता है।
१०. प्रश्न लग्न से अष्टमेश अष्टम में हो तो सन्तति नहीं होती है।
११. प्रश्न से ८वें शुक्र और सूर्य हों तथा दूसरे, बारहवें और आठवें पाप ग्रह हों तो सन्तान अभाव तथा प्रश्नकर्ता को कष्ट समझना चाहिए।
१२. प्रश्न से बारहवें का स्वामी १।४।७।१० में हो और शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो दीर्घजीवी १ पुत्र होता है।
१३. यदि पञ्चमेश, लग्नेश मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धन और कुम्भ में से किसी में हों, तो १ पुत्र लाभ होता है तथा यदि उक्त ग्रह, वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक मकर और मीन में से किसी में हों तो कन्या होती है।
१४. लग्न से विषम स्थान १ । ३ । ५ / ७ /९/११ वें स्थान में शनि हो तो पुत्र और यदि सम २।४।६।८।१०।१२ वें स्थान में हो तो कन्या होती है।
१५. प्रश्न से ५वें का स्वामी, लग्नेश या चन्द्रमा से इत्थशाल करता हो और शुभ से युत या दृष्ट हो तो सन्तान लाभ होता है ।
गर्भस्थ सन्तान का लिङ्गज्ञान विचार…
१. प्रश्न से लग्न में रवि, गुरु या भौम हो या ये ग्रह ३।५/७/९ वें स्थान में हों तो पुत्र अन्य कोई ग्रह हो तो कन्या होती है।
२. प्रश्न लग्न विषम राशियाँ विषम नवांश में हो, और लग्न में रवि, गुरु चन्द्रवली हों तो पुत्र समराशि या सम नवांश में ये ग्रह हो तो कन्या । परन्तु विषम में गुरु या रवि हो तो पुत्र । चन्द्र, शुक्र और मङ्गल, सम राशि में हो तो कन्या हो, ये तीन योग है।
३. प्रश्न लग्न को छोड़ अन्य विषम स्थान में शनि हो तो पुत्र । द्विस्वभाव लग्न पर बुध की दृष्टि हो, तो यमल (जुड़वाँ) सन्तति होती है।
४. प्रश्न लग्न पुरुष राशि हो और बली पुरुष ग्रह से युत या दृष्ट हो तो पुत्र । समराशि हो और स्त्री ग्रह से युत या दृष्ट हो तो कन्या होती है।
५. प्रश्न से पञ्चमेश और लग्नेश सम राशि में हो तो कन्या, विषय राशि में हो तो पुत्र होती है।
६. पुरुष ग्रह र, मं, गु, बली हों तो पुत्र जन्म; स्त्री ग्रह चं शु, बली हो तो कन्या जन्म होता है ।
७. प्रश्न कुण्डली में ३।९।५।११ वें स्थान में र, मं, गु हो तो पुत्र अथवा ५।९ भाव में बली गुरु हो तो पुत्र जन्म होता है ।
८. प्रश्न दिन संख्या, शुक्ल प्रतिपदा से उस दिन तक की तिथि संख्या; प्रहर संख्या तथा नक्षत्र संख्या को जोड़े १ घटायें ७ का भाग दें, शेष विषम १1३।५।७ रहें तो पुत्र तथा २।४।६ रहें तो पुत्री होती है।
९. गर्भिणी नामाक्षर प्रश्नतिथि तथा योग में १५ जोड़ें। योग में ९ का भाग दें, १/२/५/७१९ शेष रहे तो पुत्र सम २|४|६|८| रहें तो कन्या होती है।
१०. प्रश्न तिथि बार नक्षत्र तथा गर्भिणी के नाम के अक्षर जोड़ ७ का भाग दें, शेष १ से रवि २ से सोम के क्रम ये यदि र, भो. गु९ आयें तो पुत्र शुक्र, चन्द्र, बुध आयें तो कन्या, शनि आये तो क्षीण सन्तति समझना चाहिए।
११. प्रश्नकाल में प्रश्नकर्ता अपने दायें अङ्ग को स्पर्श करे तो पुत्र और बायें अङ्ग को स्पर्श कर पूछे, तो कन्या जन्म समझना चाहिए ।
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