शक्ति का रहस्य
डा० दुर्गाशंकर नागर
mystic power – संसार में किसी भी काम में हाथ डालने के वर से पहले अपनी शक्ति का पता लगा लेना चाहिये, तभी हम संसार में किसी भी विभाग व शाखा में सफलता प्राप्त कर सकते हैं । एक विद्वान ने कहा है- Weaklings have no place in the world.’कमजोरोंके लिये संसारमें कहीं स्थान नहीं है ।” हमको अपनी पूरी शक्तियों का ज्ञान नहीं है, इसीलिये हम संसार को भाररूप मालूम हो रहे हैं और हमारा कहीं ठिकाना नहीं है। क्योंकि हमको स्वयं अपनी शक्ति में विश्वास नहीं है । परमात्मा ने किसी को निर्बल या बलवान नहीं बनाया है तुम अपनी अवस्था कों जैसी हों वैसी बना सकते हो । तम कहोगे कि हमारे प्राचीन ऋषि) मुनि; महात्माओं में शक्तियाँ और सिद्धियाँ थीं। इन बातें के राग अलापने से उन्नति की तरफ तुम कुछ भी नहीं बढ़ सकते। उनमें जो सिद्धियाँ और शक्तियाँ थीं वे तुममें भी हैं और तुम भी अपनी अपार उन्नति कर सकते हो और महात्मा बन सकते हो ।
प्रयत्न करो, पुरुषार्थ करो, परिश्रम करो, तप करो, और तुम्हारे भीतर जो शक्ति का भण्डार पड़ा है उसे खोल दो। तुम्हारे भीतर एक ऐसी शक्ति विद्यमान है कि तुम उसकी सहायता से जो कुछ चाहो सो कर सकते हो । कोई इसे पराशक्ति, ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति कहते हैं । कोई चितिशक्ति कहके पुकारते हैं; कोई जगन्माता, जगदम्बा, जगजननीके नामसे स्मरण करते हैं ।
यह आनन्दमयी चितिशक्ति उपास्यकी ही शक्ति है। उपासक कों बिना इस शक्ति की सहायता के परमात्मा की प्राप्ति नहीं हों सकती ।
“नायमात्मा बलहीनेन लभ्य: ‘-शक्तिहीन को न आत्मा की और न परमात्मा की ही प्राप्ति हो सकती है । इसलिये शक्ति की उपासना करों । चितिशक्ति पूर्ण प्रेमस्वरूप है; चितिशक्ति सत्यस्वरूप है; चितिशक्ति सर्वव्यापक है, चेतनमय है।
चितिशक्ति की प्रसत्नता के लिये तुम्हें बलिप्रदान करना होगा किन्तु हिंसात्मक बाह्य-बलि नहीं अपने अहंकाररूपी मस्तक को प्रेमरूपी तलवार से प्रथक्क करके उनके चरणकमलो में समर्पण करो । प्राणिमात्र पर प्रेम करों । चितिशक्ति जग-जननी जगदम्बा है; चितिशक्ति तुच्छ-से-तुच्छ कीट और महान-से-महान् प्राणी ब्रह्मातक्में, सबमें है सर्वप्रिय है। क्योंकि उसका निवास सब प्राणियोंमें है, सब उनकी प्रिय सन्तति हैं । सबकी रक्षा और पालन अपने ऊपर कष्ट लेकर कर रही है। चितिशक्ति प्रेमलूप है, चर-अचर प्राणिमात्र में व्यापक है ।
भूतमात्रमें चितिशक्ति है; इसलिये सबको आत्मवत समझो। बालक, युवा, वृद्ध, स्त्री-पुरुष, रंक-राजा, साधु या पापी, मूर्ख या विद्वान, सबके प्रति प्रेम की घारा बहाओ। शुद्ध विचारों कों ही निरन्तर अन्तःकरण में उदय होने दो। अशुद्ध विचार पास भी न फटकने पावे । शुद्ध विचार और शुद्धाचरण ही माँ को प्रसन्न करने का उपाय है । सदविचार करो शुद्धाचरण का पालन करों; अगर माँ को प्रसन्न करना है, शुद्ध विचार अखण्ड हृदय में जाग्रत रक्खों ।
शक्ति का संचय करो, शक्ति की ही उपासना करो; शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही सत्य है, शक्ति ही सब कुछ है; शक्ति की ही सर्वत्र आवश्यकता है बलवान बनो, वीर बनो निर्भय बनों साहसी बनो, स्वतन्त्र बनो और शक्ति-शाली बनो ।
तुम निरे मिटटी के पुतले नहीं हो, हाड़-मांस और रक्त के थैले नहीं हो, निर्जीव मुर्दे के समान नहीं हो, किन्तु एक सजीव शक्तिसम्पन्न चेतन आत्मा हों । तुम्हारे जीवन का उद्देश्य किसी विशेष उद्देश्य को पूर्ण करना है ।
प्रत्येक मनुष्य में दैवी-शक्ति छिपी हुई है और बह सब कुछ कर सकता है । समस्त मानसिक और शारीरिक निर्बलताओं पर विजय प्राप्त करों और जीवन कों आनन्दमय बनाओ । कोई निर्बल व्यक्ति स्वतंत्र नहीं हो सकता । शक्ति स्वयं ईश्वर का रूप है। यह वाक्ति सर्वव्यापक है । यह शक्ति तुम्हारे भीतर गुप्त है । तुम इस शक्ति के बल से अपनी परिस्थिति बदल सकते हो । तुममें शक्ति है। शक्ति तुम्हारे भीतर-बाहर सर्वत्र मौजूद है।
शक्ति तुम्हारी जननी है, तुम्हारे शरीर और प्राणों की जननी है । जगत् मे और तुम्हारे शरीर में जो कुछ जीवन है चेतन है, उस सबकी वही दयामयी जननी है तुम यह कल्पना करो कि तुम सदा शक्ति में ही रहते हो, शक्ति में ही चलते हो और शक्ति में ही जीवित रहते हो आगे-पीछे,ऊपर-नीचे,दायें-बरायें,सब तरफ शक्ति-ही-शक्ति को देखते रहो।
तुम अपनी मनःस्थिति कों उस महान् शक्ति से संयुक्त कर लो जिससे सब शक्तियाँ प्रवाहित हो रही हैं ।
शक्ति की प्रार्थना
रात्रि के पिछले हिस्से में अपने बिस्तर से उठ बैठो और शान्त होकर एक दिव्य ध्यनिको, जो सारे संसार में गूँज रही है। ध्यान से सुनो । यह ध्वनि तुम्हारे इृदयमन्दिर में हो रही है। हृदयमन्दिर ही चितिशाक्ति का निवास स्थान है। अंग प्रत्यंग को ढीला करके शान्ति और स्थिरता से किसी भी सुखासनसे बैठ जाओ और नीचे लिखी हुई प्राथेना करों–
प्रार्थना
दयामयी जननी ! आनन्दमयी स्नेहमयी, अम्रतामयी
माँ !! तुम्हारी जय हो। माँ ! जिस: प्रकार बिना पंख के पक्षी अपनी मॉँ की बाट जोहते रहते हैं, जैसे भूख से पीड़ित बछड़े अपनी माँ की बाट देखते रहते है, वैसे ही माँ! मैं तुम्हारी बाट देखता रहता हूँ | तुम जल्दी से आकर मुझे दर्शन दो ।
तुम मेरे मन में, शरीर में व्याप्त हो । मैं तुम्हें समझ सकूँ, तुम्हारा दर्शन कर सकूँ, ऐसी बुद्धिशक्ति मुझे प्रदान करो ।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशैषजन्तोः
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीद शुभां ददासि ।
दरिद्रयदु: खबयहारिणि का त्वदंद्या
सर्वोपकारणाय सदार्दचित्ता ।।
हे माँ ! तुम्हारा स्मरण करने से समस्त जीवों के भय का नाश होता है और शान्त-चित्त से स्मरण करने से अत्यन्त शुद्ध बुद्धि तुम देती हो । दरिद्रता; दु:ख और भय का नाश करने वाली तुम्हारे सिवा कौन है । सबो के उपकार के लिये तुम्हारा चित्त सदा दया से सुकोमल रहता है ।
इस प्रकार इस मन्त्रका अनेक बार पाढ़ करके पूर्ण श्रद्धा के साथ भगवती का ध्यान करके फिर सो रहो। प्रातः-
काल उठते वक्त फिर उस शक्ति का चिन्तन करो, थोड़ी देर ध्यान में मग्न बैठे रहो । इस साधन से तुम्हें विलक्षण
बातें मालूम होंगी ।
इसका सिद्धान्त यह है कि समस्त विश्व का संचालन और ज्ञान जिस महत्वद्वारा हो रहा है उसे गुप्त मन या
सर्वव्यापक मन कहते हैं | उसको चलाने वाली शाक्ति है।
प्रतिदिन इस शक्ति की श्रद्धा के साथ उपासना करने से शक्ति तुम्हें प्रेम करेगी, चाहेगी । तुम भूल भी जाओ, माँ तुम्हे कभी नहीं भूलती ।
इस विधि से एक मास साधन करके देखो और तुम्हें एक मास में ही विलक्षण बल और शक्ति मालूम देगी। जिन-जिन कामनाओंकों पूर्ण करना हो उनको माँ से कह दो और अनन्य चिन्तन करों, तत्काल तुमको उन पदार्थों की प्राप्ति होगी । विद्या, धन, बल, एश्वर्य ये सब इस पराशक्ति से ही उत्पन्न होते हैं और शक्ति का साधन करने से अवश्य फलसिद्धि होती है। इस महाशक्ति की उपासना से तुममे आश्चर्यजनक शक्ति की जाग्रति होगी और तुम असाध्य से असाध्य कार्य को साध्य कर सकोगे । संसार में जीवित रहना हो तो शक्ति-सम्पादन करो और यह समझते रहों कि तुम माँ की गोद में सदैव सुरक्षित हो और समग्र शक्तियोँ का भण्डार तुम्हारे अन्दर है।
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -: