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शनिकृत रोहिणी शकट भेद …
श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ )-
एक बार राजा दशरथ के ज्योतिषियों ने उनसे कहा कि शनि ग्रह रोहिणी शकट के पास पहुँच गया है। यदि उसने शकट का भेदन कर दिया तो बारह वर्षों का अकाल पड़ेगा। वसिष्ठ ने कहा कि यह प्रजापति (ब्रह्मा) का नक्षत्र है। इसका भेद हो जाने पर प्रजा जीवित नहीं रहेगी। इस बात को सुनने के बाद दशरथ महाराज रथ पर बैठ कर झट उस रोहिणीपुञ्ज के पास पहुँच गये जो पृथ्वी से अरबों योजन दूर है। सोने के रथ पर बैठे दशरथ ने जब धनुष पर संहारक अस्त्र चढ़ाया तब भयभीत शनि उनके पुरुषार्थ की भूरि भूरि प्रशंसा करने के बाद बोला कि आप वर माँगें। राजा ने कहा कि जब तक सूर्य, चन्द्र और सागर विद्यमान हैं, आप रोहिणी शकट का भेद न करें। शनि ने बात मान ली।
“रघुवंशेऽति निख्यातो राजा दशरथोऽभवत्।
कृत्तिकान्ते शनिं ज्ञात्वा दैवज्ञैज्ञापितश्च सः ॥
रथमारुह्य वेगेन गतो नक्षत्रमण्डलम् ।
हसित्वा तद्भयात् सौरिरिदं वचनमब्रवीत् ॥
तुष्टोऽहं तव राजेन्द्र वरं ब्रूहि किमिच्छसि ।
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन ॥”
तब राजा ने प्रार्थना की कि कृष्ण वर्ण वाले, गहरे नेत्र, लम्बी दाढ़ी और लम्बो जटाओं वाले, सर्वभक्षी, भीषण, कपाली, अधोदृष्टि और मन्दगति वाले, स्थूल रोम वाले, तप से देह को कुश कर सर्वदा योगाभ्यास में रत रहने वाले और अपने दृष्टिपात से सबका समूल नाश कर देने वाले शनि देव आपको नमस्कार है।
नमः कृष्णाय नीलाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
सर्वभक्षाय भीमाय कोटराक्षकपालिने॥
अधोदृष्टे मन्दगते स्थूलरोम्णे नमोनमः ।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ॥
त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः।”
उस समय शनि ने दशरथ से कहा कि जिसकी जन्मपत्री में लग्न, चतुर्थ, अष्टम और द्वादश स्थानों में मैं रहूँगा वह बालक मर जायेगा। उसके बचाने का उपाय यह है कि मेरे (शनि) वार में मेरी लोहे की मूर्ति बनाओ और शमीपत्र, उड़द, तिल आदि से उसकी पूजा करो। वह मूर्ति, दक्षिणा, काली गाय, काला बैल आदि ब्राह्मण को दो तथा मेरे स्तोत्र का पाठ कराओ। ऐसा करने पर मैं कष्ट नहीं देता। जन्म लग्न की ही भाँति जन्म राशि से अशुभ स्थानों में मेरे रहने पर अर्थात् मेरी अदेया में साढ़े साती में महादशा में और अन्तर्दशा में इन पदार्थों के साथ नीलम, सोना, कस्तूरी, महिषी, कालावस्व और जूता आदि देने पर मैं रक्षा करता हूँ और अन्य ग्रहों को पीड़ा से बचाता हूँ।
“मृत्युं मृत्युगतो दद्यां जन्मन्यन्ते चतुर्थके ।
शमीपत्रैः समभ्यर्च्य प्रतिमां लोहजां मम ॥
माषोदनतिलैर्मिश्रं दद्यात् लोहं च दक्षिणाम्।
कृष्णां गां वृषभं वापि यो वै दद्याद् द्विजातये ।।
मदिने तु विशेषेण स्तोत्रेणानेन पूजयेत्।
तस्य पीडां न चैवाहं करिष्यामि कदाचन ॥
गोचरे जन्मलग्ने वा दशास्वन्तर्दशासु च ।
रक्षामि सततं तस्य पीडां चापि ग्रहस्य च ॥”
( पद्मपुराण उत्तरखण्ड अध्याय ३४)
शंकाएँ-
(१) रोहिणी के पाँच तारे एक दूसरे से करोड़ों योजन दूर हैं। उनसे कोई शक नहीं बनता। केवल शकट की आकृति दिखाई देती है तो शनि शकट पर कैसे पहुंचा?
(२) रोहिणी शकट शनि से अरबों मील दूर है और शनि अपनी कक्षा छोड़कर कभी कहाँ जाता नहीं दीखता तो वह रोहिणी के पास कैसे पहुँच गया ?
(३) ज्योतिषशास्त्र में शुक्र और शनि परस्पर अति मित्र है और रोहिणी की वृष राशि शुक्र का क्षेत्र है तो अति मित्र की राशि में बैठा शनि अशुभ कैसे हो गया?
(४) वह लग्नकुण्डली आदि में परम शुभ क्यों माना जाता है?
(५) शनि या कोई ग्रह रोहिणी को सीध में रहने पर क्या रोहिणी सकट का भेद करता है? क्या रोहिणी नाम की गाड़ी को तोड़ता है?
(६) इस कथा में लिखा है कि रोहिणी तारा शनि ग्रह से सवा लाख योजन दूर है। क्या ऐसा कहने वाला कवि ज्योतिर्विद् और दिव्यद्रष्टा हो सकता है ?
(७) रोहिणी तारा पृथ्वी से अरबों योजन दूर है। दशरथ का रथ वहाँ कैसे पहुँच गया ?
(८) राम को लंका में जाने के लिये पुल बनाना पड़ा। दशरथ का यह रथ उस समय कहाँ था?
(९) जो शनि सारे संसार को समाप्त करने की शक्ति रखता है और जिसके दृष्टिपात से गणेश का गला कट गया उसके सामने दशरथ जीवित कैसे रहे ?
(१०) रोहिणी शकट का भेद करना और न करना क्या शनि के हाथ में है? क्या कोई ग्रह अपनी कक्षा के बाहर जा सकता है?
(११) क्या सृष्टि के अन्त तक शनि कभी रोहिणीशकट के बीच से नहीं जायेगा?
(१२) क्या शनि की ऐसी भीषण मानवाकृति है?
(१३) जो दशरथ से डर रहा है उसमें वर देने को शक्ति कहाँ से आ गयी?
(१४) या दशरथ के समय में १२ राशियों वाली यह जन्मपत्री बनती थी।
(१५) क्या जिनकी कुण्डली में लग्न, चतुर्थ आदि में शनि रहता है ये बालक मर जाते हैं?
(१६) क्या ज्योतिष का कोई ग्रन्थ इसका समर्थक है?
(१७) क्या दशरथ के समय सप्त वार प्रचलित थे?
(१८) दोनों का यह लम्बा विधान लिखने वाले क्या अर्थलोलुप नहीं है?
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