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शिव धनुष-पिनाक
श्री सुशील जालान (ध्यान योगी )-
Mystic Power – शिव धनुष का नाम पिनाक है। यह हर एक पुरुष के पास है, आध्यात्मिक है। इस पर प्रत्यंचा चढा़ना ही सती (सीता) को प्राप्त करना है। यह ध्यान-योग की, कृतयुग की विधा है।
त्रेता युग में भी भगवान् परशुराम ही शिव धनुष पिनाक धारण करने में समर्थ थे, या अन्य ब्रह्मर्षि, जैसे वसिष्ठ और विश्वामित्र।
धनुष का टूटना भौतिक नहीं है, बल्कि उसके दो भाग करना है, जो कि आध्यात्मिक क्षेत्र महर्लोक में किया जाता है।
उस धनुष की टंकार सुनकर ही परशुराम आए सीता स्वयंवर स्थल पर कि किसने यह किया है।
इस धनुष को जाग्रत करने का अर्थ है त्रिभुवन जीत लेना। कोई असुर या अनधिकारी पुरुष ऐसा न कर सके, इसलिए महर्षि गण अपने दिव्य चक्षु से एक दृष्टि अन्य साधकों पर भी रखते थे कि प्रतिकार करें जब वह टंकार सुनाई देती थी उन्हें ध्यान में।
धनुष बीच में से दो टुकड़े किया गया था, अर्थात् शिवशक्ति के प्रयोग करने का क्षण। हम सब जानते हैं कि धनुष पर तीर धनुष के मध्य में ही लगा कर लक्ष्य पर प्रक्षेपित किया जाता है।
यह विशिष्ट आध्यात्मिक शक्ति है जिसके एक बार प्रक्षेपण के पश्चात् फिर से प्रत्यंचा चढ़ानी पड़ती है।
यह विद्या ब्रह्मविद्या के अंतर्गत है और दीक्षा से ही सीखी जा सकती है। ब्रह्मास्त्र जैसे दिव्य अस्त्र इस विद्या के विषय हैं।
पिनाक धनुष जाग्रत करना ध्यान-योग की ही एक अनुपम विधा है। आत्मबोध होने पर इस विद्या का उपयोग किया जाता है आध्यात्मिक गुरु की अनुमति से।
सुषुम्ना (मध्य) नाड़ी मणिपुर चक्र से प्रारंभ होकर अनाहत चक्र में खुलती हैं। अनाहत चक्र से सुषुम्ना नाड़ी में से अतिसूक्ष्मातिसूक्ष्म ब्रह्म नाड़ी निकल कर सहस्त्रार तक पहुंचती है।
योगी की आत्मचेतना सहस्त्रार से लौट कर अनाहत (सात में चतुर्थ, अर्थात् मध्य) चक्र में आकर बाण संधान करती है। यह आध्यात्मिक बाण ही अमोघ अस्त्र है भगवान् श्रीराम का।
जनक विदेह थे। सीता के लिए उपयुक्त वर वही हो सकता था उनकी दृष्टि में जो पिनाक धनुष जाग्रत कर सकता हो। इसीलिए स्वयंवर रचा गया।
भगवान् भी अपने गुणों से ही पहचाने जाते हैं। नर और नारायण में यही तो भेद है।
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