![](https://mysticpower.in/wp-content/uploads/2024/01/सृष्टि-के-मूल-में-कामशक्ति.png)
सृष्टि के मूल में कामशक्ति
डा. दीनदयाल मणि त्रिपाठी ( प्रबंध संपादक )
Mystic Power– सम्पूर्ण विश्व द्वन्द्वात्मक है। सम्पूर्ण सूष्टि मैयुनात्मक है। इन दोनों के मूल में आकर्षण है। जहाँ आकर्षण है वहाँ ‘काम’ है और काम द्वन्द्वात्मक जोर मैथुनात्मक है। और इसी के आधार पर तन्त्र, विश्वसृष्टि के मूल में शिव-शक्ति सम्बन्ध पोषित करता है।
‘शिवशक्तिसमायोगाद् जायते सृष्टिकल्पना ।’
जैसा कि प्रारम्भ में बतलाया जा चुका है-तन्त्र की सगुण भूमि में दोनों ब्रह्माण्डीय मोलिक ऊर्जाओं को शिव और शक्ति की संज्ञा दी गयी है। दोनों ऊर्जाओं से दो तत्त्व उत्पन्न हुए – पुरुषतत्व और स्त्रीतत्त्व। पुरुषतत्व स्थितिशील ऊर्जा का और स्त्रीतत्व गतिशील ऊर्जा का परिणाम है। पहला विकर्षणात्मक है, और दूसरा आकर्षणात्मक है। इस आकर्षण-विकर्षण के द्वन्द अथवा मैथुन से जिस शक्ति का जन्म हुआ यह याक्ति है- ‘कामशक्ति’ ।
कामशक्ति ही आदिशक्ति है और आदिशक्ति का विकास अथवा प्रधान विकास मैथुन विषयक है। अर्थात् आनन्द अथवा रति के लिए है। यही विश्ववासना है और विश्ववासना की मूति ‘स्त्री’ है। तन्त्र जिसे आदिशक्ति, महाशक्ति, परमेश्वरी अथवा परमाशक्ति कहता है, वह एकमात्र यही कामशक्ति है। ऐसी कामशक्ति समस्त सृष्टि के मूल में स्थित है। यही स्त्री पुरुर्थ के प्राकृतिक सम्बन्ध अथवा स्त्री-पुरुष के सम्भोग में परिणत होती है। इसीलिए तन्त्र की दृष्टि में सारा जगत् शैव एवं शाक्त जगत् है, जो शक्ति और शक्तिमान् से उत्पन्न हुआ है। विश्व स्त्री और पुरुप से उत्पन्न हुला है और स्त्री पुंसात्मक ही है। तन्त्र के अनुसार परमात्म शिव है और परमेश्वरी यानि माया शिवा है। पुरुष परमेशान है और प्रकृति परमेश्वरी है। इन दोनों का मिथुनात्मक सम्बन्ध ही मूल बासना है। वही आकर्षण अथवा ‘काम’ है। काम सभी प्रकार की वासनाओं के मूल में है। इसी से ‘काम’ को आदिदेव की संज्ञा मिली। अथर्ववेद में तो आदिदेव ‘काम’ को ब्रह्मा कहा गया है।
इस प्रसंग में पाठकों को यह भी बतला देना आवश्यक प्रतीत होता है कि किस प्रकार दोनों ऊर्जाओं द्वारा अमूर्त से मूर्त जगत् का निर्माण हुआ है और किस प्रकार यह दृश्यजगत् स्पर्श, रख, रूप, गंध, नाद की मनोहारी पटा से संयुक्त अणु-परमाणुओं से बना हुआ है। इस दिशा में योग-विज्ञान, तन्त्र विज्ञान एवं भौतिक विज्ञान में किस सीमा तक सामञ्जस्य है ?’ स्थितिशील ऊर्जा की अभिब्यक्ति सूक्ष्मतम प्राणवायु के रूप में होती है। जिसे वैज्ञानिक ‘इयर’ कहते हैं। सूक्ष्मतम प्राणवायु अर्थात् ‘इथर’ सम्पूर्ण विश्वब्रह्माण्ड में समानस्य से व्याप्त है।
दोनों ऊर्जाओं के आकर्षणात्मक-विकर्षणात्मक इन्द्र के फलस्वरूप तीनप्रकार की विद्युत्-चुम्बकीय तरंगें उत्पन्न होती हैं। जिन्हें विज्ञान ‘इलेक्ट्रान’, ‘न्यूट्रान’ और ‘प्रोटोन’ कहता है। ‘इलेक्ट्रान’ म्हण विद्युत्-चुम्बकीय तरंगें हैं। ‘न्यूट्रान’ विद्युत्-विहीन लेकिन चुम्बकीय ऊर्जा से युक्त तरंगें हैं। ‘प्रोटोन’ धन विद्युत्-चुम्बकीय तरंगें हैं। इन तीनों से अलग-अलग तीन प्रकार की मौलिक शक्तियों का आविर्भाव होता है- पावर, फोर्स बोर एनर्जी । तन्त्र को सगुणो- पासना भूमि में ये तीनों शक्तियाँ ही महासरस्वती, महाकाली और महालक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित है। आगे चलकर ये हो तीनों महासक्तियाँ क्रम से वाक् शक्ति, प्राणशक्ति और मनःशक्ति के रूप में प्रकट होती हैं। इन्हीं तीनों के बाश्रय से मानव के आन्तरिक स्वरूप का गठन होता है और जीवन का निर्माण होता है।
"मिस्टिक पावर में प्रकाशित सभी लेख विषय विशेषज्ञों द्वारा लिखे जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं का सम्पादन मिस्टिक पावर के अनुभवी एवं विशेषज्ञ सम्पादक मण्डल द्वारा किया जाता है। मिस्टिक पावर में प्रकाशित लेख पाठक को जानकारी देने तथा जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया जाता है। मिस्टिक पावर लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है।"
:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
![](https://mysticpower.in/wp-content/uploads/2023/02/DONATION.jpeg)
![](https://mysticpower.in/wp-content/uploads/2023/10/contact-us-.png)