सुर असुर संघर्ष
चक्रपाणि (पुरोहित हनुमान सेतु मंदिर लखनऊ)
प्राचीन काल से ही सुर असुर संघर्ष चलता आ रहा है हमारे पुराण इन कथाओं से ही भरे पड़े हैं ।
जिसे मैं पूर्व में भी व्यक्त कर चुका हूँ पुनः कहता हूँ कि भारतीय पौराणिक साहित्य रामायण और महाभारत में मात्र इतिहास खोजने पर हम कहीं न कहीं चूक जायेंगें । इसका अभिप्राय यह कदापि न समझा जाय कि मेरा मत है कि इनमें इतिहास नही है ।
मैं ये कहना चाहता हूँ इन पौराणिक ग्रन्थों में इतिहास भी है किन्तु मात्र इतिहास नही है ।
राजनीति ,धर्मनीति ,कूटनीति, अर्थशास्त्र, शिक्षा, ज्योतिषीय गणनाओं को आधार बना कर लेखन कार्य करना ,खगोल विज्ञान,प्राचीन भूगोल के साथ गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य भी इन्ही ग्रन्थों में विद्यमान हैं । सुर असुर प्रत्येक मानव में विद्यमान हैं । मात्र गीता की ही अनेक बुद्धिजीवियों द्वारा व्याख्या हो चुकी है और इस एक ग्रन्थ को ही सभी बुद्धिजीवियों ने अपने अर्थ दिये अपनी व्याख्याएं दीं ।
यह एक ही ग्रन्थ जन जन में इतना प्रचारित हो गया कि लगता है इसकी प्रभा से अन्य सभी ग्रन्थों पर आम जनों की दृस्टि ही नही जाती ।
हमें सरकार से ये माँग करनी चाहिए कि यदि एक पन्थ विशेष यदि अपनी पन्थ की शिक्षा पाने हेतु भारी भरकम अनुदान पाता है तो उसके विपरीत हमारे भारत् के निज धर्म को व्याख्यायित करते इन बहुमूल्य ग्रन्थों के सामायिक अध्ययन करवाने हेतु सरकार क्या करती है ? मात्र कुछ संस्थाओं द्वारा अल्प प्रयास से इन ग्रन्थों की सुगन्ध क्षीण होती गयी है इन्हें उपेक्षा मिली है क्योंकि इन्हें मात्र धर्म ग्रंथ समझा गया है। तबलीक आदि संगठन आज इसलिए इतने शक्तिशाली हो गए कि उन्हें सरकारी संरक्षण प्राप्त हुआ और इसके विपरीत हमारे विविध संघठनो को समय समय पर हर तरह से बदनाम करने के कुत्सित प्रयास हुए हैं जिससे हिन्दू जनों में हीन भावना बहुत गहरे तक घर कर गयी । अपने स्तर पर आदि शकराचार्य द्वारा चारो पीठों से धर्म शिक्षण के प्रयास होते रहे हैं हो रहे हैं कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा भी ऐसे प्रयास हुए किन्तु सरकारी उपेक्षा के कारण जिस व्यापक स्तर पर ये होना चाहिए वो प्रश्रय केवल एक दो पन्थ विशेष को मिला जिसका परिणाम व्यापक स्तर पर धर्म परिवर्तन हुआ हमारे सनातन धर्म की स्थिति दयनीय होती चली गयी । जिस दिन सनातनी समुदाय को कर्तव्य बोध की हमारी प्राचीन शिक्षा से विमुख कर अधिकार प्राप्त करने हेतु लालायित किया गया सनातन संस्कार की हत्या तभी हो गयी । पारिवारिक विवाद, असहयोग, तलाक ,हड़ताल ,भ्रष्टाचार, से ये हिन्दू समाज बाहर आता दिखाई नही देता क्योकि कर्तव्य बोध समाप्त हो चुका है ।
सुर असुर संघर्ष यही है और असुर संस्कृति को सत्ता का प्रश्रय मिलने के कारण मनुष्य के भीतर के देवत्व की हत्या कर दी गयी । जाने अनजाने हम सभी असुर संस्कृति के वाहक हो गए हैं तो दोष व्यवस्था का ही है सत्ता का है । इस मकड़जाल से निकलने के उपाय हेतु ही वर्तमान सत्ता द्वारा कुछ अल्प प्रयास हुए और उन अल्प प्रयासों को ही इतना व्यापक विरोध झेलना पड़ा है जिसके हम सभी साक्षी हैं । ये प्रयास सतत् चलते रहने चाहिए इस हेतु हमें सत्ता का सहयोग बनाये रखना होगा । हमें ये भी ध्यान देना होगा कि बदलाव मात्र सरकार द्वारा नही अपुतु स्वयं में भी करने की दृढ़ता रखें । हमें मानसिक रूप से संकल्प लेना होगा बदलाव का । देखते रहना होगा कि बदलाव में निज सहयोग हमने कितना किया क्या कर सकते हैं ? मात्र एक दिन वोट देकर आप उस जहर को बाहर नही निकाल सकते जो पीढ़ियों से आपमें भरा जा चुका है । संस्कार विहीन समाज को संस्कारित करने हेतु स्वयं को ही आहूत करना होगा स्वयं के आचरण में बदलाव से ही समूह बनेगा । तबलीक का उदाहरण देता हूँ ये संस्था कब से है इसके खचों का स्रोत क्या है ये अलग विषय है इसका मुख्य कार्य है चेहरे तैयार करना जिससे आप सङ्ख्या बल देख सकें और हतोत्साहित हों इनसे भिड़ने में । चार महीने की जमात होती है जिसका खर्च जमात में जाने वाले से पहले ही जमा करवा लिया जाता है । इन चार महीनों में वो विभिन्न शहरों में भ्रमण करते हैं इनके भोजन आदि की व्यवस्था मस्जिद में होती है वहीं से झुण्ड में एकत्र होकर ये गाँव कस्बों में इश्लाम की दावत देते हैं । इन जमात का लक्ष्य अपने ही समुदाय के उन नौजवानों की ओर अधिक होता है जो बिना दाढ़ी के पेंट शर्ट आदि पहनते हैं झुण्ड में जाकर उन्हें अपने दीन के बारे में आकर्षित कर जमात में आने को प्रेरित किया जाता है इस दीन की दावत में 25% तो आकर्षित हो ही जाते हैं और ये 25% मुश्लिम उसके बाद पाँच वख्त के नमाजी कुर्ता पजामा दाढ़ी आदि की सुन्नत से संस्कारित हो जाते हैं । ध्यान दें कि जमात जाने के बाद उन चार महीनों में दाढ़ी रखने नमाज पढ़ने पठानी ड्रेस पहनने पर इतना अधिक शबाब बता दिया जाता है सुन्नत से जोड़ कर इन संस्कारों को छोड़ने को महापाप बताया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप चहुँ ओर धीरे धीरे दाढ़ी वाले ही दिखने लगते हैं । हम उनका कुछ नही बिगाड़ सकते उन्हें और हमकों भी धार्मिक स्वतंत्रता है । यदि आप चोटी रखेंगें भारतीय परिधान को वरीयता देंगें तिलक धारण करेंगें जनेऊ पहनेंगे सन्ध्या करेंगें तो कोई कानून आपको रोक नही सकता किन्तु अपने संस्कार के प्रति वर्षों से हम इतनी अधिक हीन भावना से ग्रसित हो चुके हैं ये सभी चिह्न हमें पिछड़ेपन जैसे प्रतीत होने लगे । जमात से हम सीख सकते हैं कि चेहरे कैसे तैयार किये जा सकते हैं उससे मिलता जुलता प्रारूप लिए हुए ऐसा संघटन खड़ा किया जा सकता है जो चेहरे तैयार करें।
संस्कार से ही समाज निर्मित होता है हमने अपने संस्कार छोड़ दिये जिसका परिणाम हमारा हिन्दू समाज आज धरातल पर है।
फेसबुक पर तिलक सेल्फी अपलोड करने से बदलाव नही होने वाला अपितु धरातल पर गम्भीरता से प्रयास करने होंगें । रामायण और महाभारत मात्र इतिहास नही अपुतु इनके पात्रों के नाम से इनके कृत्यों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है इसलिए ये सभी ग्रन्थ बहु अर्थी हैं मात्र इतिहास नही हैं ।
पूर्व में मैंने महाभारत के पात्रों को केन्द्र में रखकर वैश्विक राजनीति पर अपनी कल्पना में दृश्य देखने का प्रयास किया हम कहाँ खड़े हैं ये समझने की कल्पना की इस देश की संस्कृति की हत्या कैसे हुई इसके उत्तर खोजने के प्रयास किये पुनः उन्हें शब्द देने का प्रयास करता हूँ अल्पज्ञ होने के कारण इसे मेरा मानसिक ज्वर समझ सकते हैं एक सज्जन ने ऐसा कहा था उनके सम्बोधन को नमन करते हुए अपनी कल्पना को पुनः रूप देता हूँ ।
भारतीय संस्कृति जिसे आप यदि सीता समझे तो सीताहरण हो चुका है अथवा द्रोपदी तो द्रोपदी चीर हरण हो चुका है ।
पाञ्चाली द्रुपद के यज्ञ से उत्पन्न हुई द्रुपद यानी अटल सत्य सनातन धर्म और उस धर्म को मानने वाली संस्कृति ही उसकी पुत्री है । विविध वासनाओं का मोह त्याग मन को जीतने वाले संस्कार की ओर सतत् प्रवाहित प्रज्ञा शक्ति ही धृष्टद्युम्न है द्वैत के आचरण रूपी द्रोण का वध करती है द्वैत है परमात्मा की ओर जाएं अथवा भोग की ओर इन दो मार्गों के बीच जीव की छटपटाहट ही द्रोण हैं ।
यदि इस उदाहरण को सीता जी पर रख कर देखें तो कृषि और गौ आधारित संस्कृति को सतत् भोग की ओर प्रवाह ही सीता हरण है ग्रामीणों का पलायन गौ हत्या किसानों की आत्महत्या इसके परिणाम हैं ।
सत्ता के बन्धन में रहने वाली सैन्य शक्ति ही भीष्म है।जो प्रतिज्ञाओं के बन्धन में जकड़ी है ।
पोप पन्थ की महत्वाकांक्षा ही धृतराष्ट्र है और इसके द्वारा पोषित कथित शांति पन्थ ( आतंक पन्थ ) ही दूर्योधन है । सत्ता का लोभ धृतराष्ट्र को है किन्तु आगे सदैव दुर्योधन को रखा जाता है । मात्र अपने हितों को साधने हेतु इन शक्तियों का साथ देने वाला वामपंथ ही कर्ण है ।
पञ्च देवताओं के पञ्चायतन को मानने वाली निरीह जनता ही पाण्डव है जो द्रोपदी रूपी सनातन संस्कृति की वाहक है ।
इस जनता के अन्दर सुसुप्त सनातन चेतना ही कृष्ण है जो निशस्त्र हैं यदि संस्कारित होकर इस चेतना को जाग्रत कर सके तभी विजय सम्भव है नही तो वन वन भटकते रहना ही पाण्डवों की नियति है। संघठित होना ही हमारी विजय का एकमात्र सूत्र है।
पोप संस्कृति के द्वारा पोषित आतंक पन्थ आज उसका ही प्रबल शत्रु बन गया है ये पन्थ अब धृतराष्ट्र के वश में नही है इन दोनों के लक्ष्य ( वैश्विक रूप से मात्र अपनी सत्ता चाहिए ) अब टकराने लगे तो हम आज आतंकवाद का वैश्विक चरम स्वरूप देख रहे हैं । अमेरिका ब्रिट्रेन इटली फ्रांस यूरोप आदि जो अभी तक सम्पूर्ण विश्व को अपनी मुट्ठी में लिए हुए थे उन्हें अपनी सत्ता जाती हुई दिखती है तो मात्र आतंक पन्थ के कारण हिन्दुओं से उन्हें कोई खतरा ही नही लगता क्योकि ये सुसुप्त हैं विश्व स्तर पर मात्र अच्छे कामगार हैं लेवर हैं ।
चीन के अपने स्वप्न हैं अपनी संकल्प शक्ति द्वारा आज वह इन दोनों पन्थों के विरुद्ध खड़े होने की ओर बढ़ता दिखता है और ये स्थिति भारत् के लिए अच्छी है इसलिए मैंने पूर्व पोस्ट की कल्पना में चीन को भीम की संज्ञा दी थी वो इसलिए कि आज चीन ही इन शक्तियों से युद्ध करने इन्हें हराने में सक्षम दिखता है । पाण्डव की मेरी कल्पना में मैं भारत को युधिष्ठिर मानता हूँ । जिसके बड़े भूभाग को द्यूत ( छल-बल-सन्धि) द्वारा लगातार सीमित किया जाता रहा है । जहाँ अभी भी सनातन धर्म ध्वज वाहक असहाय अवस्था मे सुसुप्त हैं ।
रूस को अर्जुन के रूप में देखना भी वही दृस्टि है रूस और चीन ही इन शक्तियों को नष्ट करने में सक्षम हैं भले ही ये दोनों देश अनीश्वरवादी हैं किन्तु वैश्विक युद्ध में ये दोनों ही मुख्य भूमिका में रहेंगें ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं भारत् से प्रकट युद्ध नही कर सकते क्योकि व्यापारिक हित निहित हैं अतः परोक्ष रूप से हमारे सहयोगी हैं जापान नकुल और इजरायल सहदेव है ।
कल्पना करें यदि ये पाँच शक्तिशाली देश यदि एक हो जाये तो विश्व का परिदृश्य कितना बदला हुआ होगा ।वर्तमान में भारत् अमेरिका मित्रता सबसे अच्छे दौर में है किन्तु अमेरिका अपने हितों को सर्वप्रथम प्राथमिकता देता है इसे ध्यान रखना होगा । वरना जिस तरह पूर्व में परोक्ष रूप से रूस ने यहाँ नियंत्रण कर रखा था वही स्थिति अमेरिका की मित्रता से होगी । चित्र में दिख रहे भारत रत्न अटल जी एवं दीनदयाल उपाध्याय जी के स्वप्नों को पूर्ण करने का सङ्कल्प करिये ।
वन्देमातरम्
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -: