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विवाह-मेलापक तथा मंगल, गुरु एवं सूर्य पर विचार…
श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ )-
Mystic Power – ‘धन्यो गृहस्थाश्रमः ‘ विवाह गृहस्थाश्रम से सम्बन्धित प्रथम संस्कार है। अतः विवाह से सम्बन्धित अनेक बिन्दुओं – मेलापक, मंगली जन्मपत्री, गुरु एवं सूर्य से सम्बन्धित दान आदि अनेकानेक स्थितियों पर विचार करना अत्यन्त आवश्यक होता है। होडाचक्र के अनुसार नक्षत्रों एवं राशियों का ज्ञान परम आवश्यक है। इसके अतिरिक्त विवाह से सम्बन्धित वर्णगुण, वश्यगुण, तारागुण, योनिगुण, ग्रहमैत्रीगुण, गणगुण, राशिकूटगुण एवं नाड़ी- कूटगुणों का विचार विशेष महत्त्व रखता है। साथ ही गुरु एवं सूर्य से सम्बन्धित दान आदिपर भी संशय की स्थिति का निवारण परम आवश्यक हो जाता है।
मेलापक विचार – गृहस्थ को अपनी कन्या के लिये वर निश्चित करते समय वर के कुल, शरीर, विद्या, अवस्था, धन, गुण एवं स्वास्थ्यदशा पर अवश्य ही विचार करना चाहिये। बहुत ही समीप या बहुत दूर कन्या का विवाह नहीं करना चाहिये। वर-कन्या के नक्षत्र के अनुसार राशिनिर्धारण करते हुए गुणैक्यबोधक चक्र से गुणों की जानकारी कर लेना चाहिये। सामान्यतया अठारह गुणों से अधिक गुण बनने पर विवाह शुभ एवं करणीय होता है। इसके साथ ही वर्णविचार करना चाहिये।
जन्मपत्रिका – मंगलीविचार एवं परिहार-
विवाह के समय जन्मपत्रिका में अन्य विचार-विमर्श के साथ ही जातक के मंगली होने की दशा में जातक के माता-पिता विशेष चिन्तित हो जाते हैं। अतः मंगलदोष के विविध पहलुओं पर विचार करना चाहिये। मंगलदोष को कुजदोष भी कहते हैं। ज्योतिषियों की अज्ञानता के कारण कभी-कभी अमांगलिक जन्मपत्रिका को भी मांगलिक बताकर विवाह में रोक लगा दी जाती है। अतः इस प्रकरण पर गहन विवेचन की आवश्यकता है।
ज्योतिषग्रन्थों में मांगलिक जन्मपत्रिका के मंगलदोष का विवेचन इस प्रकार मिलता है-
“लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे ।
कन्या भर्तुर्विनाशाय भर्ता पत्नीविनाशकृत् ॥”
इस श्लोक से स्पष्ट हो जाता है कि जन्मपत्रिका के लग्न (प्रथम भाव), चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव एवं द्वादश भाव में से किसी भी भाव में मंगल का होना जन्मपत्रिका को मांगलिक बना देता है। इस दोष से प्रभावित पुरुष जातक को मौलि या मंगला तथा स्त्रीजातक को मंगली या चुनरी स्थान भेद से माना जाता है।
प्रथम भाव (लग्नस्थान ) में मंगल – जब जातककी जन्मपत्रिकाके प्रथम भाव (लग्नस्थान) में वृष या तुलाका मंगल होता है तो जातकके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है, ऐसा जातक क्रोधी, झगड़ालू, जिद्दी स्वभाव का हो जाता हैं।
चतुर्थ भाव में मंगल – चतुर्थ भाव में यदि स्वगृही या उच्च का मंगल है तो कृषि, पशुपालन में रुचि रहती है तथा माता-पिता का सुख पाता है, परंतु यदि मंगल मिथुन, कन्या, मकर या कुम्भ का हो तो माता-पिता के सुख से वंचित होता है तथा परिजनों से विरोध रहता है। अग्नि का भय बना रहता है।
सप्तम भाव में मंगल-सप्तम भाव में मंगल होने पर जातक में बुद्धि की कमी रहती है, स्वास्थ्य दुर्बल रहता है। मिथुन या कन्या का मंगल होने पर दो विवाह होते हैं, पर दोनों के अनिष्ट की आशंका रहती है। स्वगृही ( मेष या वृश्चिक) – का मंगल या उच्च (मकर) – का मंगल होने पर स्त्रीसुख मिलता है तथा व्यापारमें सफल रहता है। मकर या कुम्भ का मंगल जातक को दुराचारी बनाता है।
अष्टम भावमें मंगल – स्वगृही (मेष या वृश्चिक) या उच्च (मकर) का मंगल उत्तम स्वास्थ्य तथा दीर्घायुष्य देता है, किंतु नीच (कर्क) का मंगल स्वास्थ्य की हानि करता है। वृष और तुला का मंगल स्त्री की ओर से दुःख तथा व्यापार में धन की हानि कराता है। सिंह का मंगल धन एवं स्वास्थ्य की हानि के साथ ही अल्पायु बनाता है। पत्नी कर्कशा मिलती है।
द्वादश भावमें मंगल – दाम्पत्य जीवन में असन्तुष्टि, धन एवं विद्या की कमी, स्वगृही या उच्च का मंगल लोभी बनाता है, नीच (कर्क) का मंगल होने पर दुराचार में धननाश कराता है। सिंह का मंगल राजदण्ड का भागी बनाता है। मिथुन और कन्या का मंगल अहंकारी बनाता । धनु या मीन का मंगल सबसे विरोध तथा धन का अपव्यय कराता है।
भौम पंचक दोष – सभी ग्रह अपने से सातवें भाव को देखते हैं अर्थात् सभी ग्रह सातवीं दृष्टि वाले होते हैं, परंतु मंगल, गुरु और शनि की सातवीं दृष्टि के अतिरिक्त अन्य विशिष्ट दृष्टियाँ भी मानी गयी हैं। यथा- मंगल की चौथी और आठवीं दृष्टि, गुरुकी पाँचवीं और नवीं दृष्टि तथा शनि की तीसरी और दसवीं दृष्टि होती. है। ये जिस भाव को देखते हैं, उसे भी अपने प्रभाव से प्रभावित करते हैं।
प्रथम (लग्न), चतुर्थ, सप्तम, अष्टम द्वादश भावमें मंगलदोषके अतिरिक्त सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु—ये पाँच अशुभ ग्रह भी अपनी दृष्टि या युतिसे जन्मपत्रिका के भावोंको देखते हैं तथा उक्त भावों के फल को नष्ट या कम करने में सक्षम होते हैं। ये ग्रह भी जन्मपत्रिका के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भावों में होते हैं अथवा इन ग्रहों पर इनकी दृष्टि पड़ती है तो ये भी जातक के स्वास्थ्य, भोगविलास तथा दाम्पत्य जीवन को प्रभावित करते हैं।
मंगलदोष प्रभावी मांगलिक जन्मपत्रिकाएँ मंगलप्रभावी मांगलिक जन्मपत्रिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं-
१- मांगलिक जन्मपत्रिका – जब मंगल जन्मपत्रिकाके १।४। ७ । ८ । १२ भावोंमेंसे किसी भी भावमें होता है तो जन्मपत्रिका मांगलिक कहलाती है।
२- द्विबल मांगलिक जन्मपत्रिका – जब मंगल १।४ । ७ । ८ । १२ भावोंमें होनेके साथ-साथ नीच (कर्कराशि) का भी हो तो मंगलका दुष्प्रभाव दो गुना हो जाता है अथवा १।४ । ७ । ८ । १२ भावोंमें मंगलके अलावा सूर्य, शनि, राहु केतुमेंसे कोई ग्रह बैठा हो तो जन्मपत्रिका द्विबल मांगलिक होती है।
३- त्रिबल मांगलिक जन्मपत्रिका-नीच (कर्कराशि) – का मंगल यदि १ । ४ । ७ । ८ । १२ भावमें हो तथा शनि, राहु, केतु भी उक्त भावोंमें हों तो मंगलका दुष्प्रभाव तीन गुना हो जाता है। ऐसी जन्मपत्रिका त्रिबल मांगलिक कहलाती है।
मंगल दोष का परिहार- जातककी जन्मपत्रिका मांगलिक होनेपर माता-पिता चिन्तित हो जाते हैं; क्योंकि ज्योतिषशास्त्रके अल्पज्ञ ज्योतिषियोंने अनेक प्रकारकी भ्रान्तियाँ फैला रखी हैं, किंतु इनमें से अधिकांश जन्मपत्रिकाएँ ऐसी होती हैं, जिनमें मंगलदोष का परिहार सहजरूपेण हो जाता है-
१- यदि पुरुष की जन्मपत्रिका मांगलिक हो तथा स्त्री की जन्मपत्रिका के १ । ४ । ७ । ८ । १२ भावों में सूर्य, शनि, राहु हो तो जन्मपत्रिका मंगलदोष से मुक्त हो जाती है।
२- जिस भाव में मंगल बैठा हो, उस भावका स्वामी ज्योतिष की दृष्टि से बलवान् हो तथा उसी भाव में बैठा हो या उस भाव में उसकी दृष्टि पड़ रही हो, पुनः सप्तमेश या शुक्र तीसरे भाव में बैठा हो तो मंगलदोष नहीं माना जायगा।
३- मेषका मंगल लग्न में, वृश्चिक का चतुर्थ भाव में, वृषका सप्तम भाव में, कुम्भका अष्टम भाव में तथा धनुका द्वादश भाव में हो तो मंगलदोष नहीं माना जाता-
“अजे लग्ने व्यये चापे पाताले वृश्चिके स्थिते ।
वृषे जाये घटे रन्ध्रे भौमदोषो न विद्यते ॥”
४- उच्च का गुरु लग्न में स्थित हो तो मांगलिक दोष नहीं माना जाता। ऐसे जातक का विवाह अमांगलिक जातक से किया जा सकता है।
५ -यदि शनि ग्रह १ । ४ । ७ । ८ । १२ भाव में किसी एक जातक की जन्मपत्रिका में हो तथा दूसरे जातक की जन्मपत्रिका में इन्हीं स्थानों में से किसी एक स्थान में मंगल हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है। विवाह शुभ माना जाता है।
६- यदि केन्द्र १ । ४।७।१० तथा त्रिकोण (५।९) भाव में शुभ ग्रह हों तथा ३, ६, ११ भावों में अशुभ ग्रह हों एवं ७ वें भाव में सप्तमेश हो तो मंगलदोष नहीं रहता ।
७- सातवें भाव में मंगल हो तथा गुरु की उस पर दृष्टि हो तो मांगलिक दोष नष्ट हो जाता है।
८- गुरु और मंगलकी युति हो अथवा मंगल और चन्द्रकी युति हो या फिर चन्द्रमा केन्द्र स्थानों (१।४। ७।१०) में स्थित हो तो मांगलिक दोष नहीं रहता ।
९-१।४।७।८।१२ भावोंमें मंगल यदि चर राशि (मेष, कर्क, मकर) – का हो तो मांगलिक दोष नहीं होता ।
१०- एक जन्मपत्रिका में जैसा मंगल तथा सूर्य और सूर्य, शनि, राहु, केतु आदि पापग्रह दूसरी जन्मपत्रिका में भी हो तो मंगलदोष नहीं रहता। विवाह शुभ रहता है।
सूर्य एवं गुरु दोष विचार एवं परिहार – अशुभ स्थानों पर सूर्य एवं गुरु की स्थिति भी दोषपूर्ण मानी गयी है। ऐसी स्थिति आने पर ज्योतिषी प्रायः इन ग्रहों से सम्बन्धित दान आदि करनेका विधान बताया करते हैं। तथापि इस समस्या के समाधान स्वरूप परिहार रूप में अधोलिखित बात ध्यान देने योग्य है-
द्वादश वर्ष से अधिक की कन्या एवं षोडश वर्ष ( सोलह वर्ष ) – से अधिक का वर हो तो ज्योतिष के विद्वान् सूर्य एवं गुरु का विचार नहीं करते।
अतः किसी सुविज्ञ ज्योतिषी से जन्मपत्रिका के दोष- गुणों का निराकरण करवाकर संशयनिवृत्त होकर विवाह कार्य सम्पन्न कराना चाहिये ।
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