अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ) -
रामायण पर हजारों वर्षों से चिन्तन तथा लेखन हो रहा है। कई विवाद भी हैं। एक विवाद है कि कैकेयी ने क्या राम को दण्ड देने के लिए वनवास भेजा था या यह देवताओं की योजना थी। आज की परिस्थिति के अनुसार देखा जाए तो स्पष्ट होता है। रावण उतना शक्तिशाली नहीं था कि प्रत्यक्ष युद्ध में देवों को हरा सके या भारत पर अधिकार कर सके। इन्द्र से भी वह पराजित हो गया था, पर धोखे से मेघनाद ने उनको बन्दी बना लिया था।
असुरों की छल नीति अभी तक चल रही है। शिवाजी ने उनके छल का उचित उत्तर दिया था।
अयोध्या के राजा दशरथ भी इन्द्र की सहायता के लिए असुरों से युद्ध कर चुके थे जिसमें उनके साथ कैकेयी भी गयी थी। रावण ने वही तरीका अपनाया जो आज पाकिस्तान तथा चीन भारत के विरुद्ध कर रहे हैं। उनके घुसपैठिए, समर्थक तथा भाड़े के उपद्रवी भारत में हिंसा करते रहते हैं। उनके विरुद्ध प्रत्यक्ष युद्ध नहीं लड़ा जा सकता है क्योंकि वे समाज में मिले हुए हैं।
असुरों की पद्धति सदा से यही रही है। केवल उनके सम्प्रदाय या पन्थ नाम बदलते रहते हैं। अयोध्या-मिथिला की दक्षिण सीमा पर मारीच, ताड़का आदि रावण के उपद्रवी नेता थे। उनके अन्य उपद्रव स्थान थे दण्डकारण्य, पंपासर आदि।
विश्वामित्र उनको रोकने के लिए अयोध्या के राजा दशरथ के पास गये तो दशरथ सेना भेजना चाहते थे। पर सेना द्वारा बक्सर की जनता पर आक्रमण सम्भव नहीं था। उस समय भी असुर लोग मन्दिर यज्ञशाला आदि तोड़ते थे। अतः विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को बुलाकर यज्ञशाला का आयोजन किया जिससे असुर मन्दिर तोड़ने के लिए आयें। उस समय विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को विशेष अस्त्रों की शिक्षा भी दी। वहां से असुरों को भगा कर मिथिला से मैत्री करायी। रावण के विरुद्ध युद्ध उसी समय आरम्भ हो चुका था।
देवताओं ने देखा कि यही तरीका है समाज के छिपे हुए असुरों को समाप्त करने का। अतः राम-लक्ष्मण को वनवास दण्ड का नाटक किया गया। पर राजा वही थे, भरत उनके प्रतिनिधि मात्र थे। राजकीय आदेश पर राम की ही मुहर (पादुका) लगती थी। पुराणों में भी दशरथ के बाद राम को ही राजा लिखा है, भरत का नाम इस सूची में नहीं है। रावण को पराजित करने के बाद राम-अभिषेक के समय ३०० राजा उपस्थित थे जो रावण के विरुद्ध युद्ध में सहायता कर रहे थे।
उत्तर काण्ड की यह कथा नहीं समझने के कारण पूरे काण्ड तथा बालकाण्ड को भी कुछ लोग क्षेपक कहते हैं। यदि राम का न जन्म हुआ, न राजा बने तो रामायण क्यों लिखी गयी? राम ने इस लिए उनको धन्यवाद दिया तथा अपने राज्य लौटने का अनुरोध किया था। रावण का राज्य केवल लंका में सीमित नहीं था, वह केवल राजधानी थी। उसकी स्वर्ण भूमि आस्ट्रेलिया थी। माली-सुमाली उसके नाना थे उनके नाम पर सुमालिया तथा माली अफ्रीका के देश हैं।
सीता को खोजने के लिए यवद्वीप के सात राज्यों तथा मोरक्को तक सुग्रीव के दूत गये थे। ये क्षेत्र या तो रावण के प्रत्यक्ष शासन में थे या उसके संघ में थे। इसके अतिरिक्त मेक्सिको का राजा अहिरावण भी उसका सहायक था। वह आस्तीक (एजटेक) जाति के नागों का देश था, अतः उसके राजा को अहिरावण कहा है (अहि = नाग)। समुद्र यात्रा करने वाले नाग थे। आज भी मेक्सिको में अहिरावण तथा मकरध्वज की मूर्तियां हैं।
रावण के विरुद्ध १८ मोर्चे पर युद्ध हुआ था जिनके लिए १८ सेनापति थे। इनको रामचरितमानस में कहा है-पदुम अठारह जूथप बन्दर। यहां पद्म का अर्थ १०,००० खर्व संख्या नहीं है, यह युद्ध क्षेत्रों का नाम है। वर्तमान इण्डोनेसिया, आस्ट्रेलिया पर आक्रमण के लिए सिंगापुर महत्वपूर्ण केन्द्र था जिसे शृङ्गवेरपुर कहा गया है। उसका राजा प्रयाग के निकट राम से मिलने आया था। केवल ग॔गा पार करने के लिए उसकी आवश्यकता नहीं थी। वैसी बहुत सी नदियां तथा समुद्र भी पार किया था।
एक शृङ्ग पूर्व अफ्रीका में भी है जो इथियोपिया का भाग है। दोनों नक्शे में शृङ्ग (सींग) की तरह दीखते हैं। यह देवताओं की योजना थी, जिसे गुप्त रखने की लिए कैकेयी ने अपने ऊपर दोष लिया। इस योजना से रावण को कठिनाई हो रही थी। वह किसी देश पर सेना द्वारा आक्रमण कर सकता था, पर तपस्वी पर नहीं, जैसा वह राम-लक्ष्मण की निन्दा के लिए कहता था। रामचरितमानस में केवल इसी सम्बोधन का प्रयोग किया है। अतः उसने सीता का अपहरण किया। पर यह राजनैतिक अपहरण था। असुर राज्य के भी आन्तरिक शासन के नियम कानून थे। वह सीता का बलात्कार नहीं कर सकता था। विभीषण के अतिरिक्त उसके कई सभासदों ने इसका विरोध किया था तथा युद्ध में पूरी सेना तथा परिवार के मरने पर भी वह सीता की हत्या नहीं कर सका।
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