युवानपिडिका / मुहांसे / एक्ने

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  • आयुष
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  • 31 October 2024
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डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक)- इसी को आयुर्वेद मे तारूण्यपिटिका या मुखदूषिका कहा जाता है । तारूण्यावस्था मे दुषित कफ , वात और रक्त की दुषित होने से काँटे जैसे फोडे मुँह, गर्दन या कभी कभी पीठ पर आते है । 

सामान्यरूप से १६ से २५ की उम्रमे ये व्याधि दिखाई देता है । जहाँ पे ये फोडे आते है वहाँ पर लालिमा, जलन, पीडा देखने को मिलती है । कभी कभी उसमे पुयप्रवृत्ति भी रहती है । पहले फोडे कम होते है और दूसरे नये उभर आते है ऐसा क्रम इसमे सदा देखने को मिलता है ।

 आधुनिक वैद्य के अनुसार इसे Acne Vulgaris कहते है । Acne bacillus नामक जीवाणु के कारण से ये उत्पन्न होते है । दिखनेमे भले ही ये रोग सादा लगे, लेकिन उस पर उपचार करते समय बडा संयम दिखाना पडता है । कई बार ऐसे रोगियोमे वमन / विरेचन / रक्तमोक्षण जैसे पंचकर्म कराने पडते है । कम से कम ४-६ महीने उपचार नियमित रूपसे लेनेसेही कुछ राहत मिलती है । तली हुई चीजें ,  हरीसब्जी, नया धान्य, उरदकी दाल,अनानास-लीची-स्ट्राँबेरी-केला-सीताफल जैसे फल, दही, लह्सुन,शाबुदाना, मुली, गन्ना, गुड, जादा नमक, खट्टी चीझे,मद्यपान, अधिक पानी पीना, धूपमे घूमना आदि चीजो  से जितना परहेज रखा जायेगा उतना जल्दी फायदा होता है ।



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