कर्ण-छेदन संस्कार हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण संस्कार है, जिसे विशेष रूप से बच्चों के लिए किया जाता है। इस संस्कार के दौरान बच्चे के कानों को छेदा जाता है, जिससे उनमें कुंडल या बालियाँ पहनाई जाती हैं। कर्ण-छेदन को शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। कर्ण-छेदन संस्कार का धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व है। धार्मिक दृष्टि से, यह संस्कार बच्चे की सुनने की क्षमता को बढ़ाने और बुरी शक्तियों से रक्षा करने के लिए किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, कानों को छेदन करने से शरीर के नाड़ी तंत्र (मर्म बिंदु) को संतुलित किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस संस्कार को आमतौर पर बच्चे की एक विशेष आयु में किया जाता है, जिसे शुभ माना जाता है। संस्कार के दौरान विधिपूर्वक पूजा और मंत्रोच्चार किया जाता है। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और इसे बच्चे के जीवन में एक महत्वपूर्ण और शुभ आरंभ के रूप में देखा जाता है।
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