16 संस्कार हिंदू धर्म में मानव जीवन के विभिन्न चरणों धार्मिक चरणों और सांस्कृतिक अनुष्ठानों का एक समूह है। ये संस्कार व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए किए जाते हैं। संस्कारों का उद्देश्य व्यक्ति को धार्मिक और नैतिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना, समाज में उसकी भूमिका को परिभाषित करना, और जीवन के प्रत्येक महत्वपूर्ण मोड़ पर उसकी सहायता करना है। 16 प्रमुख संस्कार निम्न है: गर्भाधान संस्कार: गर्भ धारण की प्रक्रिया को शुद्ध और शुभ बनाने के लिए। पुंसवन संस्कार: गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य और विकास के लिए, विशेषकर गर्भ के तीसरे महीने में। सीमंतोन्नयन संस्कार: गर्भवती स्त्री के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए जातकर्म संस्कार: शिशु के जन्म के तुरंत बाद किए जाने वाला संस्कार, जिसमें शिशु का स्वागत किया जाता है। नामकरण संस्कार: शिशु का नाम रखने का संस्कार। निष्क्रमण संस्कार: शिशु को पहली बार घर से बाहर लाने का संस्कार, आमतौर पर चार महीने की उम्र में। अन्नप्राशन संस्कार: शिशु को पहली बार अन्न (अनाज) खिलाने का संस्कार। चूड़ाकर्म (मुंडन) संस्कार: शिशु के सिर के बाल मुंडवाने का संस्कार, जो अशुद्धता को दूर करने के लिए किया जाता है। कर्णछेदन संस्कार: शिशु के कान छेदने का संस्कार। विद्यारंभ संस्कार: शिशु की शिक्षा की औपचारिक शुरुआत का संस्कार। उपनयन संस्कार: यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करने का संस्कार, जो वेदाध्ययन और धार्मिक शिक्षा की शुरुआत का प्रतीक है। वेदारंभ संस्कार: वेदों का अध्ययन प्रारंभ करने का संस्कार। केशांत (समावर्तन) संस्कार: शिक्षा के समापन पर किया जाने वाला संस्कार, जिसमें छात्र के गृहस्थ जीवन की शुरुआत होती है। विवाह संस्कार: वैवाहिक जीवन की शुरुआत का संस्कार, जिसमें पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को स्वीकार करते हैं। वानप्रस्थ संस्कार: गृहस्थ जीवन छोड़कर, वन में जाने का संस्कार, जो जीवन के तीसरे चरण की शुरुआत है। अन्त्येष्टि संस्कार: मृत्यु के बाद किया जाने वाला अंतिम संस्कार, जिसमें मृतक की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए प्रार्थना की जाती है।
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