धर्म-पथ

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guru kurabani

गुरु का बलिदान … किसे याद है इनकी कुर्बानी

नमन कृष्ण भागवत किंकर(धर्मज्ञ)- चिड़ियों से मै बाज लडाऊ गीदड़ों को मैं शेर बनाऊं, सवा लाख से एक लडाऊ तभी गोबिंद सिंह नाम कहउँ। आज का...
देवभूमि भारत

देवभूमि भारत

अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)- अहं राष्ट्री संगमनी, वसूनां चिकितुषी (देव्यथर्व शीर्ष) भारत वर्ष का मुख्य भारत या कुमारिका खण्ड अधोमु...
pratham jal pralay

प्राचीन जल-प्रलय

श्री अरुण उपाध्याय (धर्मज्ञ)- (१) प्रथम जल प्रलय-हमारे शास्त्रों में कई जल-प्रलयों की चर्चा है। पहला जल प्रलय प्रायः ३१००० ई.पू. में...
वेद में मूर्ति तत्त्व

वेद में मूर्ति तत्त्व

अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ) १. मूर्त-अमूर्त का समन्वय- परात्पर निर्विशेष ब्रह्म निराकार है। उसे देखना, जानना सम्भव नहीं है। उसके द...
शिवलिंगोपासना

शिवलिंगोपासना

डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक) निर्गुण-निराकार रूप में शिवलिंगोपासना की विशेष महिमा पुराणों में बतायी गयी है। पूजन के पूर्...
वर्ण व्यवस्था

वर्ण व्यवस्था

डॉ. दिलीप कुमार नाथाणी (डी.लिट्. संस्कृत) भारत में वर्ण-व्यवस्था के उद्गम तथा वैशिष्ट्य के विश्लेषणात्मक अध्ययन से सम्बन्ध रखनेवाले...
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सत्यनारायण कथा के आध्यात्मिक अर्थ

चक्रपाणि त्रिपाठी (पुजारी हनुमान मंदिर,लखनऊ) भविष्य पुराण ३.२.२८-२९ में दी गई सत्यनारायण की कथा तथा लोक में प्रचलित सत्यनारायण की कथ...
तीन ऋण महात्म्य

तीन ऋण महात्म्य

 अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ) १. मीमांसा- मीमांसा दर्शन के अनुसार मनुष्य ३ ऋणों के साथ जन्म लेता है। यज्ञ द्वारा देव ऋण से, ब्रह्मच...
बौधिक दासता

भारत की बौद्धिक दासता

अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)- बौद्धिक दासता कई अर्थों में यह बाकी विश्व में भी है और भारत से अधिक है। इसाइयों को ईसा मसीह की भेड़ कह...
जानिये हनुमान जन्मोत्सव विशेष पूजन विधि सुन्दर कुमार (प्रधान संपादक)- तिथि कुछ पंचांगों के अनुसार हनुमान जन्म तिथि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी है, तो कुछ चैत्र पूर्णिमा बताते हैं । महाराष्ट्र में हनुमान जन्मोत्सव चैत्र पूर्णिमा पर मनाई जाती है । महत्त्व हनुमान जयंतीपर हनुमान तत्त्व अन्य दिनों की तुलनामें 1000 गुना अधिक कार्यरत रहता है ।’ इस तिथि पर ‘श्री हनुमते नमः ।’ का नाम जप तथा हनुमानजी की अन्य उपासना भावपूर्ण करने से हनुमान तत्त्व का अधिकाधिक लाभ होने में सहायता मिलती है ।’ उत्सव मनाने की पद्धति इस दिन हनुमानजी के मंदिर में सूर्योदय होने से पहले ही कीर्तन आरंभ करते हैं । सूर्योदय पर हनुमानजी का जन्म होता है, उस समय कीर्तन समाप्त होता है एवं सभी को प्रसाद बांटा जाता है । (सभीको प्रसादके रूप में सोंठ देते हैं ।) हनुमान जयंती की पूजा विधि अ. हनुमानजी का जन्मोत्सव प्रातः सूर्योदय के समय मनाया जाता है । आ. हनुमानजी की मूर्ति अथवा प्रतिमा की यथासंभव पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पद्धति से पूजा करनी चाहिए । इ. सूर्योदय के समय शंखनाद कर पूजा आरंभ करें । ई. भोग लगाने के लिए सोंठ और चीनी का मिश्रण ले सकते हैं । पश्‍चात वह मिश्रण प्रसाद के रूप में सबको बांट दें । उ. हनुमानजी को मदार (रुई) के फूल-पत्तों का हार अर्पण करें । ऊ. पूजा के उपरांत श्रीराम एवं श्रीहनुमान की आरती करें । टिप्पणी : सामान्यत: यह पूजा विधि इस प्रकार बनाई गई है कि सबके लिए सरल हो; परन्तु जो षोडशोपचार पद्धति से पूजन कर सकते हैं, वे वैसा करें । जहां परंपरा के अनुसार पूजा की जाती है, वे वैसा कर सकते हैं । २. पूजा की व्यवस्था अ. पात्र (बरतन) आचमन की सामग्री (ताम्रपात्र, पंचपात्र, कलश, आचमनी) नीरांजन (दीपक), पूजा की थाली, समई (पीतल का दीपस्तंभ) तथा उसके नीचे रखने हेतु थाली, अगरबत्ती का स्टैंड एवं थाली, घंटी । आ. अन्य पूजा-सामग्री अक्षत, हलदी-कुमकुम, सुपारियां, पान के चार पत्ते, छुट्टे पैसे, बेल के पत्ते, अगरबत्ती, घी की बाती तथा समई के लिए बाती, दियासलाई, गंध (चंदन), १ नारियल, मदार के फूल एवं पत्तों की माला, दोना, पीढा, फल, सोंठ एवं चीनी मिलाकर बनाया भोग (नैवेद्य), रंगोली । इ. पूजक की तैयारी पूजक रेशमी वस्त्र/धोती पहनकर आसन पर बैठे । अपने बांए कंधे पर उपवस्त्र (उपरना) व्यवस्थित ढंग से घडी कर के ले । पूजक, पूजा के समय हाथ पोंछने के लिए, एक कपडा साथ में रखे । ३. प्रत्यक्ष पूजन आचमन पूजक, आगे दिए ३ नामों का उच्चारण कर, प्रत्येक नाम के अंत में बाएं हाथ से आचमनी में पानी उठाकर दायीं हथेली पर रखे और पी जाए । १. श्री केशवाय नमः ।, २. श्री नारायणाय नमः ।, ३. श्री माधवाय नमः । निम्नांकित नाम उच्चारकर हथेली पर पानी लें और नीचे रखे ताम्रपात्र में छोडें । ४. गोविंदाय नमः । तत्पश्‍चात हाथ जोडकर निम्नांकित नामों का क्रमानुसार उच्चार करें । ५. विष्णवे नमः, ६. मधुसूदनाय नमः, ७. त्रिविक्रमाय नमः, ८. वामनाय नमः, ९. श्रीधराय नमः, १०. हृषिकेशाय नमः, ११. पद्मनाभाय नमः, १२. दामोदराय नमः, १३. संकर्षणाय नमः, १४. वासुदेवाय नमः, १५. प्रद्मुम्नाय नमः, १६. अनिरुद्धाय नमः, १७. पुरुषोत्तमाय नमः, १८. अधोक्षजाय नमः, १९. नारसिंहाय नमः, २०. अच्युताय नमः, २१. जनार्दनाय नमः, २२. उपेन्द्राय नमः, २३. हरये नमः और २४. श्रीकृष्णाय नमः । पुन: आचमन करें । पूजक स्वयं को तिलक लगाएं । तत्पश्‍चात हाथ जोडकर शांत मन से आगे दिए देवताओं का स्मरण और नमस्कार करें । देवताओं को नमस्कार श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो नमः । ग्रामदेवताभ्यो नमः । स्थानदेवताभ्यो नमः । वास्तुदेवताभ्यो नमः । आदित्यादि-नवग्रहदेवताभ्यो नमः । सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमो नमः । अविघ्नमस्तु । अपनी दोनों आंखों को जल लगाकर, आगे दिए देशकाल का उच्चारण करें । देशकाल श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे विष्णुपदे श्रीश्‍वेत-वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वंतरे अष्टाविंशतितमे युगे युगचतुष्के कलियुगे प्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतवर्षे भरतखण्डे दण्डकारण्ये देशे गोदावर्याः दक्षिणे तीरे बौद्धावतारे रामक्षेत्रे अस्मिन् वर्तमाने शालिवाहन शके व्यावहारिके विलम्बीनाम संवत्सरे, उत्तरायणे, वसंतऋतौ, चैत्रमासे, शुक्लपक्षे, नवम्यां तिथौ, भानु वासरे, आर्द्रा दिवस नक्षत्रे, शोभन योगे, बालव करणे, मिथुन स्थिते वर्तमाने श्रीचंद्रे, मीन स्थिते वर्तमाने श्रीसूर्ये, तुला स्थिते वर्तमाने श्रीदेवगुरौ, धनु स्थिते वर्तमाने श्रीशनैश्‍चरौ शेषेषु सर्वग्रहेषु यथायथं राशिस्थानानि स्थितेषु एवङ् ग्रह-गुणविशेषेण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ हाथ में अक्षत लेकर आगे बताया हुआ संकल्प करें । तत्पश्‍चात हथेली पर जल लेकर ‘करिष्ये’ बोलते हुए अक्षत ताम्रपात्र में छोड दें । संकल्प : मम आत्मनः श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-फल-प्राप्त्यर्थं श्री परमेश्‍वरप्रीत्यर्थम् अस्माकं सकुटुंबानां सपरिवाराणां द्विपद-चतुष्पद-सहितानां क्षेम-स्थैर्य-आयु:-आरोग्य-ऐश्‍वर्य-अभिवृद्धि-पूर्वकं श्रीहनुमत् देवता-अखंड-कृपाप्रसाद-सिद्ध्यर्थं गंधादि-पञ्चोपचारैः पूजनम् अहं करिष्ये ॥ तत्रादौ निर्विघ्नता-सिद्ध्यथर्र्ं महागणपतिस्मरणं करिष्ये ॥ शरीरशुद्ध्यर्थं दशवारं विष्णुस्मरणं करिष्ये ॥ कलश-घंटा-दीप-पूजनं करिष्ये ॥ (२०१८) श्रीगणेशस्मरण वक्रतुण्ड महाकाय, कोटिसूर्यसमप्रभ । निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥ श्री गणेशाय नम: चिन्तयामि । श्रीविष्णुस्मरण ‘विष्णवे नमो’ ९ बार बोलें, दसवीं बार ‘विष्णवे नमः’ बोलें । कलशपूजन कलशदेवताभ्यो नमः सर्वोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि ॥ (कलश पर चंदन, फूल तथा अक्षत आपस में मिलाकर एकसाथ चढाएं ।) घंटीपूजन घंटिकायै नमः सर्वोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि । (घंटी पर चंदन, फूल तथा अक्षत मिलाकर एकसाथ चढाएं ।) दीपपूजन दीपदेवताभ्यो नमः सर्वोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि । (समई पर चंदन, फूल तथा अक्षत मिलाकर एकसाथ चढाएं ।) पूजा स्थलशुद्धी दाहिने हाथ में बेलपत्र लें । उस पर आचमनी से जल छोडें तथा ‘पुंडरीकाक्षाय नमः ।’ कहते हुए वह जल पूजासामग्री पर एवं स्वयं पर छिडकें । बेल का पत्ता ताम्रपात्र में छोडें । हाथ जोडकर आगे का श्‍लोक बोलें मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥ श्री हनुमते नमः । ध्यायामि ॥ (हनुमानजी का ध्यान करें ।) श्री हनुमते नमः । आवाहयामि ॥ (अक्षत चढाएं / हनुमानजी को बुलाएं ।) श्री हनुमते नमः । विलेपनार्थे चंदनं समर्पयामि ॥ (चंदन का तिलक लगाएं / हनुमानजी को चंदन का लेप लगाएं ।) श्री हनुमते नमः । सिंदूरं समर्पयामि ॥ (सिंदूर अर्पित करें ।) श्री हनुमते नमः । अलंकारार्थे अक्षतान् समर्पयामि ॥ (अक्षत अर्पित करें ।) श्री हनुमते नमः । पुष्पं समर्पयामि ॥ (पुष्प अर्पित करें ।) श्री हनुमते नमः । बिल्वपत्रं समर्पयामि ॥ बेलपत्र अर्पित करें ।) श्री हनुमते नमः । धूपं समर्पयामि ॥ (अगरबत्ती दिखाएं ।) श्री हनुमते नमः । दीपं समर्पयामि ॥ (दीप दिखाएं ।) दाहिने हाथ में बेल के दो पत्ते लें । उन पर आचमनी से जल छोडें और वह जल सामने रखे नैवेद्य पर छिडकें । बेल का एक पत्ता नैवेद्य पर रखें । दूसरा पत्ता दाहिने हाथ में ही रखें एवं बायां हाथ अपनी छाती पर रखकर, निम्नांकित मंत्रोच्चार करें- श्री हनुमते नमः । शुंठिका नैवेद्यं निवेदयामि । ॐ प्राणाय स्वाहा, ॐ अपानाय स्वाहा, ॐ व्यानाय स्वाहा, ॐ उदानाय स्वाहा, ॐ समानाय स्वाहा, ॐ ब्रह्मणे स्वाहा । उपर्युक्त मंत्र बोलते हुए नैवेद्य अर्पित करें तथा हाथ में लिया हुआ बेलपत्र हनुमानजी को चढाएं । निम्नांकित मंत्र बोलकर क्रमश: पान के पत्ते, नारियल तथा फलों पर जल छोडें । (पूजाकर्म संपन्न) श्री हनुमते नमः । मुखवासार्थे पूगीफलतांबूलं समर्पयामि, फलार्थे नारिकेलम् समर्पयामि । प्रार्थना आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् । पूजांचैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्‍वर ॥ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्‍वर । यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे । यस्य स्मृत्या च नामोत्तया तपःपूजाक्रियादिषु । न्यूनं संपूर्णतां याति सद्यो वंदे तमच्युतम् ॥ दाहिने हाथ में अक्षत लेकर निम्नांकित मंत्र पढें तथा प्रीयताम् बोलते हुए इस अक्षत पर जल छिडकें पश्‍चात इसे ताम्रपात्र में छोड दें । अनेन कृत पूजनेन श्री हनुमत् देवता प्रीयताम् ॥ पूजा के प्रारंभ में बताएं अनुसार दो बार आचमन करें तथा हनुमानजी को मनःपूर्वक नमस्कार करें । संदर्भ : सनातन का ग्रंथ `धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार`

जानिये हनुमान जन्मोत्सव विशेष पूजन विधि

सुन्दर कुमार (प्रधान संपादक)- तिथि कुछ पंचांगों के अनुसार हनुमान जन्म तिथि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी है, तो कुछ चैत्र पूर्णिमा बता...