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छठ पूजा का शास्त्र
कु. कृतिका खत्री,प्रवक्ता सनातन संस्था –
mystic power – हमारे देश में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ । मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है । यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है । पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में । चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जानेवाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जानेवाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है । पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है । इस पर्व को स्त्री और पुरुष समानरूप से मनाते हैं । लोक आस्था के इस पावन पर्व की महिमा सनातन संस्था के सत्संगों में बतायी गई ।
छठ पूजा कथा इतिहास – लोकपरंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है । लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी । त्रेतायुग में भगवान राम जब माता सीता से स्वयंवर करके घर लौटे थे और उनका राज्याभिषेक किया गया, उसके पश्चात उन्होंने पूरे विधान के साथ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को पूरे परिवार के साथ यह पूजा की थी; तभी से इस पूजा का महत्त्व है । द्वापरयुग में जब पांडव ने अपना सर्वस्व गंवा दिया था, तब द्रौपदी ने इस व्रत का पालन किया । वर्षों तक इसे नियमित करने पर पांडवों को उनका सर्वस्व वापस मिला था । इसकी पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है ।
बहुत समय पहले एक राजा-रानी हुआ करते थे । उनकी कोई संतान नहीं थी । राजा इससे बहुत दुःखी थे । महर्षि कश्यप उनके राज्य में आए । राजा ने उनकी सेवा की । महर्षि ने आशीर्वाद दिया जिसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई; परंतु उनकी संतान मृत पैदा हुई जिसके कारण राजा-रानी अत्यंत दुःखी थे और दोनों ने आत्महत्या का निर्णय लिया । जैसे ही वे दोनों नदी में कूदने लगे, उन्हें छठी माता ने दर्शन दिए और कहा कि ‘आप मेरी पूजा करें जिससे आपको अवश्य संतान प्राप्ति होगी ।’ राजा-रानी ने विधि-विधान से छठी माता की पूजा की और उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई । तब से ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पूजा की जाती है ।
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
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