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विस्तृत देव पूजन का प्रारम्भिक विधान
आचार्य राकेश तिवारी –
सम्पूर्ण गणपती पूजन विधी -1॥ श्रीगणेशाय नम:॥ मंगलम दिशतु मे विनायको मंगलम दिशतु मे सरस्वती । मंगलम दिशतु मे जनार्दनो मंगलम दिशतु मे सदा शिव॥ॐ स॒ह ना॑ववतु । स॒ह नौ॑ भुनक्तु । स॒ह वी॒र्यं॑ करवाव है । ते॒ज॒स्विना॒वधी॑तमस्तु॒ मा वि॑द्विषा॒व है॓॥॥ॐ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शांतिः॥ सर्वेषु धर्मकार्येषु पत्नी दक्षिणत: शुभा। अभिषेके विप्रपादक्षालने चैव वामत:॥ (संस्कार कौस्तुभ)अर्थात- समस्त धर्म कार्यों में पत्नी को दाहिनी ओर बैठाना चाहिए, परंतु शिवाभिषेक ब्राह्मण के पादप्रक्षालन आदि कार्यों में पत्नी को वांम भाग में बैठाना चाहिए।
आचमन1. ॐ केशवाय नम:।2. ॐ माधवाय नम:।3. ॐ नारायणाय नम:।4. ॐ गंगाय नम:।5. ॐ यमुनाय नम:।6. ॐ सरस्वतियै नम:।पवित्र मंत्र:ॐ अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥पवित्रधारणम्!ॐ पवित्रे स्त्थो व्वैष्णव्यौसवितुर्व: प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण-पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभि:। तस्यते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्त्काम: पुनेतच्छकेयम्॥
आसन शुद्धी-ॐ पृथ्वि! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां दिवि! पवित्रं कुरु चासनम्।मंगलतिलकम्स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्वेवेदाः।स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥कर्मपात्र पूजनम्अपनी बायीं तरफ भूमि पर त्रिकोणात्मक या चतुष्कोणात्मक मण्डल बनाकर गन्धाक्षत से पूजन कर उस पर कर्मपात्र रखकर:-ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:॥गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिन्धु! कावेरि! जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु॥
इसी तरह अड़्कुश मुद्रा से तीर्थों का आह्वाहन करें, मत्स्य मुद्रा से आच्छादित कर पञ्च प्रणव का जप करें, अब गन्धाक्षत लेकर वरुण का ध्यान करें।वरुण ध्यानम्ॐ तत्त्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः॥ अहेळमानो वरुणेह बोध्युरुश गुँ समान आयुः प्रमोषीः॥(ॐ भूर्भुव: स्व: अस्मिन कलशे वरुणं साड़्गाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय आवाह्यामि स्थापयामि। ॐ अपां पतये बं वरुणाय नम:॥ सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि। नमस्करोमि।)
कलश का जल सामग्री में संप्रोक्षण करें।भूतापसारणम्पीली सरसों अथवा अक्षत लेकर पूजन-कर्मभूमि में चारो तरफ मंत्र पढते हुए भूतापसारण करें।अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमि-संस्थिता। ये भूता विघ्नकर्त्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ॥१॥अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतो दिशम्। सर्वेषामविरोधेन पूजाकर्म समारभे ॥२॥ यदत्र संस्थितं भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वत:। स्थानं त्यक्त्वा तु तत्सर्वं यत्रस्थं तत्र गच्छतु ॥३॥भूतप्रेतपिशाचाद्या अपक्रामन्तु राक्षसा:। स्थानदस्माद्! ब्रजन्त्यन्य त्स्वीकरोमि भुवं त्विमाम ॥४॥ भूतानि राक्षसा वापि येऽत्र तिष्ठन्ति केचन। ते सर्वेऽप्यपगच्छन्तु देव पूजां करोम्यहम ॥५॥तीन बार ताली बजाकर सभी विघ्नों का अपसारण करें। भूमि में कुंकुम से त्रिकोण रेखा बनाकर पृथ्वी की पूजा करें-आधारशक्ति पूजनम्ॐ मही द्यौ: पृथिवी च न ऽइमं यज्ञमिमिक्षताम्। पिपृतान्नो भरीमभि:॥भूमि का स्पर्श कर गंधाक्षत पुष्प छोड़ें।ॐ आधारशक्तये पृथिव्यै- नम:, कमलाशनाय नम:।प्रार्थनाकरें.पृथ्वि त्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥दीप प्रज्वाल्यकलश के दाहिने भाग में दीपक स्थापन पूजन-ॐ अग्निर्ज्ज्योतिषार्ज्ज्योतिष्म्मानृक्मोवर्च्चसाव्वर्च्चस्वान्। सहस्रदा ऽअसिसहस्रायत्त्वा॥दीपो ज्योति: परं ब्रम्ह दीपो ज्योति: जनार्दन:। दीपो हरतु में पापं दीपज्योति: नमोऽस्तु ते ॥१॥शुभम करोतु कल्याणम आरोग्यम धन सम्पदा। शत्रु बुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमोस्तुते ॥२॥गुरु ध्यानम्गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरवे नमः॥१॥अखण्ड मण्डलाकारम्! व्याप्तम यॆन चराचरम। तत्पदम दर्शितम यॆन तस्मै श्री गुरवॆ नम:॥२॥देव ध्यानम्शान्ताकारम भुजगशयनम्! पद्मनाभम सुरेशम्, विश्वाधारम गगनसदृशम्! मेघवर्णं शुभाड्गम। लक्ष्मीकान्तम्! कमलनयनम योगिभिर्ध्यानगम्यम, वन्दे विष्णुम भवभयहरम सर्वलौकैकनाथम्॥
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
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