गणमति तथा सरस्वती के मन्त्रगर्भ स्तोत्र
अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)
Mystic Power– मन्त्रगर्भ गणपति स्तोत्रम्
(वासुदेवानन्द सरस्वती कृत-दत्त पुराण टीका के आरम्भ में। हर पंक्ति में ४ अक्षरों के बाद – चिह्न है। ऊपर से नीचे पढ़ने पर ये ४ मन्त्र-वाक्य हैं।)
वा-रणास्यो द-रघ्नोर्थ्य ए-कदं त-श्शिवात्मजः।
सु-शर्मकृ त्ता-रणोर्च्यः क-विस्त त्पु-रुषप्रियः॥१॥
दे-वः पवि त्रे-क्षणोर्द्यो दं-तीचा रु-स्त्रिलोचनः।
वा-ग्मीशोमा या-तीतात्मा ता-पशो षा-ख्यआखुगः॥२॥
नं-दीवन्द्यो य-मीशानो य-शस्वी य-शआस्पदः।
द-र्शनीयो वि-घ्नराजो वि-घ्नहा वि-घ्नकृद्विराट्॥३॥
स-भ्योहृत्प द्म-निलयो द्म-रस द्म-विहापकः।
र-क्ताङ्गोऽर्को हे-ममाली हे-रम्बो हे-मदंष्ट्रकः॥४॥
स्व-राट्प्रभा अ-जोनन्तो व-रेण्यो म-तिमान्गुणी।
ती-र्थकीर्तिर् व-रकरः क्र-त्वीशो हा-पितासुरः॥५॥
कृ-पाकरो धू-म्रकेतुस् तुं-दिलो दे-ववल्लभः।
त-पस्वीशस् ता-पहरो डा-किनी वा-रितोऽभयः॥६॥
वि-श्वप्रियो य-क्षवन्द्यो य-ष्टा न य-विवर्धनः।
ना-नारूपधरो धी-र आद्यो धी-मतां धी-रकः सुधीः॥७॥
य-मीश्वरो म-हा हस्ती म-हात्मा म-ह उत्तमः।
क-र्ताऽकर्ता हि-तकरो हि-तज्ञो हि-तशासनः॥८॥
स्तो-तास्तव्यस् तन्-त्रमूलस् तन्-त्रज्ञ सू तन्-त्रविग्रहं।
त्र-यीवेद्यो नो-दनाज्ञो नो-दना नो-दितद्विजः॥९॥
मि-त्राभोम द-नस्मेरो दं-तीम रु-दुपासितः।
दं-डोप्रम त्तः-शास्तार्यस् ती-र्थमिं द्रः -स्तुतोपहा॥१०॥
स-त्यसन्धः प्र-काशात्मा प्र-सन्नः प्र-णतार्तिहा।
मं-त्रविद्या चो-दितात्मा चो-दना चो-दिताखिलः॥१॥
त्र-यीधर्मो द-शातीतो द-क्षोऽभे द-उमासुतः।
कं-नः सदे यात्-प्रणुतोऽ यात्- स पा यात्-सदा भयात्॥१२॥
इति श्रीमत् परमहंस परिव्राजकाचार्य वासुदेवानन्द सरस्वती विरचितं मन्त्रगर्भगणपति स्तोत्रं संपूर्णम्॥
इसमें प्रथम वाक्य-वासुदेवानंद सरस्वती कृत विनायक स्तोत्रमिदं समन्त्रकं।
द्वितीय वाक्य-दत्तात्रेयाय विद्महे, अवधूताय धीमहि, तन्नो दत्तः प्रचोदयात्।
तृतीय वाक्य-एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।
चतुर्थ वाक्य-तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।
अथ मन्त्रगर्भं सरस्वती स्तोत्रम्
वा-ग्वादिनी पा-पहरासिभे द-चोद्यादिकं म-द्भर दिव्यमूर्ते।
सु-शर्मदे व-न्द्यपदेऽस्तु वि त्ता-दयाचते हो-मयि पूर्णकीर्ते॥१॥
दे-व्यै नमः का-लजितेऽस्तु मा त्रे-यि सर्वभा अ-स्यखिलार्थदात्वं।
वा-सोऽत्र ते नः-स्थितये शिवा या-त्रीशस्य पू र्ण-स्यकलासि सा त्वम्॥२॥
नं-द प्रदे स-त्य सुतेऽभवा य- सूक्ष्मां धियं स-म्प्रति मे विधेहि।
द-य स्वसा र-स्वजलाधिसे वि-नृलोकपे र-म्मयि संनिधेहि॥३॥
स-त्यं सर स्व-त्यरि मोक्ष स द्म-तारिण्यसि स्व-स्य जनस्य भर्म।
र-म्यं हिते ती-रमिदंशिया हे-नांगीकरो ती-ह पतेत्स मोहे॥४॥
स्व-भूतदे वा-धिअ हरेऽस्मिवा अ-चेता अपि प्र-ज्ञ उपासनात्ते।
ती-व्र व्रतैर् जे-तुमशक्यमे व-तन्निश्चलं चे-त इदं कृतं ते॥५॥
वि-चित्रवाग् भि-र्ज्ञ गुरूनसा धू-तीर्थाश्रयां त-त्वत एव गातुं।
र-जस्तनु र्वा-क्षमतेध्यती ता-सुकीर्तिरा य-च्छतु मे धियं सा॥६॥
चि-त्रांगि वा जि-न्यघनाशिनी य-मसौ सुमूर् ति-स्तव चां मयीह।
त-मोघहं नी-रमिदं यदा धी-तीतिघ्नमे के-ऽपि न ते त्यजन्ति॥७॥
स-द्योगि भा व-प्रतिमं सुधा म-नान्दीमुखं तु-ष्टिदमेव नाम।
मं-त्रो व्रतं ती-र्थमितोऽधिकं हि- यन्मे मतं ना-स्त्यत एव पाहि॥८॥
त्र-यी तपो य-ज्ञमुखानितां तं-ज्ञं पातिना धि-घ्न इमेऽज्ञमार्ये।
क-स्त्वल्प सं ज्ञं-हि दये तयो नो- दयार्ह आर् यो-ज्झित ईशवर्ये॥९॥
स-मस्त दे व-र्षि नुते प्रसी द-धेह्यस्यके वि-श्व गते करं ते।
र-क्ष स्व सु ष्टु-त्युदिते प्रम त्तः-सत्यं न वि श्वां-तर एव मत्तः॥१०॥
स्व-ज्ञं हि मां धि-क्कृतमत्र वि प्र-रत्नैर्वरं वि-प्रतरं विधेहि।
ती-क्ष्णद्युतेर् या-धिरुगिष्ट वा चो-ऽस्वस्था य मे रा-त्विति ते रिरीहि॥११॥
स्तो-तुं न चै व-प्रभुरस्मि वेद ती-र्थाधिपे ज-न्महरे प्रसीद।
त्र-पै वयत् सु-ष्टुतयेस्त्यपा या-त् सा जाड्यहा ति-प्रियदा विपद्भ्यः॥१२॥
इति श्रीमत् परमहंस परिव्राजकाचार्य वासुदेवानन्द सरस्वती कृत मन्त्रगर्भ सरस्वती स्तोत्रं सम्पूर्णम्।
प्रथम पंक्ति-वासुदेवानन्द सरस्वती विरचित समंत्रक सरस्वती स्तोत्र।
द्वितीय पंक्ति-पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती यज्ञं वष्टु धिया वसु। (ऋक्, १/३/१०, सामवेद, १/१८९, वाज. यजु, २०/८४, मैत्रायणी सं, ४/१०/१,२, ३ या १४२/७, १५०/१, १६६/२, काण्व सं, ४/१६, तैत्तिरीय ब्राह्मण, २/४/३/१, ऐतरेय आरण्यक, १/१/४/१५)
तृतीय पंक्ति-दत्तात्रेयाय विद्महे, अवधूताय धीमहि, तं नो दत्तः प्रचोदयात्।
चतुर्थ पंक्ति-महो अर्णः सरस्वती, प्रचेतयति केतुना, धियो विश्वां विराजति। (ऋक्, १/३/१२, वाज. यजु, २०/८६)
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