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महान जननी देवकी
कृष्णदत्त जी महाराज –
Mystic Power- राजा कंस के कारागार में जहाँ वासुदेव व देवकी बंदी थे, देवकी सदैव गायत्री का चिंतन करती हुई संकल्प वादिनी बनी और भगवान श्रीकृष्ण जैसे पुत्र को जन्म देने वाली हुईं, ये माताएँ कैसी महान होती हैं, जिनका मन कितना पवित्र होता है, जो कंस अन्न देता था उसको गायत्री माँ को अर्पण करके, शुद्ध संकल्प करके अर्थात् एक सौ एक गायत्री मंत्रों का पाठ करके पान करती थीं।
माता जब तू कणाद, गौतम, राम, कृष्ण जैसी महान आत्माओं को जन्म देती है तब तेरे हृदय की उदारता किस प्रकार की होगी यही विचार में नहीं आता क्योंकि हे माता! जब प्रभु तेरे गर्भ स्थल में पुत्र की रचना करते हैं तो उस समय जो सूक्ष्म यंत्र बनते हैं, ये यंत्र तेरे भाव से बनते हैं, परमात्मा उन यंत्रों को बनाने में जो द्रव्य लेता है, यह द्रव्य तो तेरे द्वारा है परंतु बनाने की शक्ति नही है, रचाने वाला तो प्रभु है, तो माता जितने ऊँचे तेरे भाव होंगें उतने ही तेरे गर्भस्थल से होने वाले हम जैसे पुत्रों के भाव भी ऊँचें होंगे। परंतु जहाँ तेरे विचारों में, तेरी रसना से जैसे रसों का स्वादन होगा तो देखो, वैसे ही रस स्वादन से प्रभु तेरे गर्भ की रचना करते हैं, यदि तू माँस का भक्षण करती है तो उसके तो परमाणु होंगे वे तमोगुणी होंगे, तो तेरे पुत्र या पुत्री का तमोगुणी चुनाव होगा। हे मेरी माता तेरे श्रृंगार पर, तेरी मानवीयता पर उस काल में आक्रमण होता है, जिस समय तू अपनी मानवीयता को और अपने वास्तविक स्वरूप को त्याग देती है।
मेरे प्यारे! आदि ऋषि मंडल मुझे स्मरण है भगवान कृष्ण का जीवन, उनका जन्म राजा कंस के कारागार में हुआ, जहाँ राजा कंस के हृदय की वेदना थी कि जन्म होते ही उसको नष्ट किया जाएगा परंतु वासुदेव और माता देवकी परमात्मा का चिंतन कर रहे थे और उनके हृदय में एक वेदना जागृत हुई, वासुदेव ने कहा- “देवी! यदि हम इस कारागार में अपने सुंदर पुत्र को जन्म दे सकते हैं तो बिना समय के उसकी मृत्यु कोई नहीं कर सकता।”
मेरे प्यारे! देखो माता देवकी और वासुदेव ने वैज्ञानिक रूपों से प्यारे पुत्र को जन्म दिया।
जब माता देवकी के गर्भ में पुनीत आत्मा का प्रवेश हो गया और पंचम माह हुआ तो माता देवकी के नेत्रों में लालिमा आ गई, नेत्रों में जब लालिमा आई तो देवकी पति देव से कहती हैं- “हे प्रभु! यह लालिमा क्यों बन गई है?” उन्होंने कहा “हमारे द्वारा ऐसी संतान का जन्म होना है जो हमें कारागार से मुक्त करा सकेगा।” ऐसा कौन कह रहा है? ऐसा वासुदेव कह रहे हैं क्योंकि वे वैज्ञानिक थे, वे अंतरात्मा से वार्ता प्रकट करते थे।
जब लालिमा बनने के पश्चात छठा माह प्रारम्भ हुआ तब देवकी अपने ही मस्तिष्क से ज्ञान की वार्ता प्रकट करने लगी, उन्होंने कहा- “हे प्रभु! मुझे ये क्या हो गया है? आज मैं मंत्रों को उच्चारण कर रही हूँ और मेरा ज्ञान उपजने लगा है…..”
वासुदेव ने कहा- “हे देवी! यह तो पुण्य आत्मा है जो परमपिता परमात्मा की गोद से उत्सव मना कर आई है, जो नाभि में प्रवेश कर गई है, उसकी जो तरंगे हैं, उसका जो ज्ञान है, उसका समन्वय तुम्हारे मस्तिष्क से होने जा रहा है, शब्द जब महा लग्नाकता हो गया तो नेत्रों की लालिमा समाप्त हो गई और ऊर्ध्वा में ब्रह्मरन्ध से ले करके और त्रिवेणी के स्थान तक नारी की आभा में रसों का स्वादन होने लगा।
माता देवकी ने कहा- “प्रभु ये क्या हुआ?” वासुदेव कहते हैं- “हे देवी! तेरे गर्भ स्थल से योगी का जन्म होगा……”
(पूजनीय गुरूजी के प्रवचन का छोटा सा अंश, अंतरात्मा तरंगित हो जाती है यह जान कर की हम ऐसे महान पूर्वजों की संतान हैं)
माता देवकी जैसी महान माताएँ ही कृष्ण जैसे पुत्र को जन्म देती हैं क्योंकि संतान उत्पत्ति एक संकल्प है, यह एक संकल्प है कि हम ऐसी संतान को जन्म दें जो समाज को ऊँचा बनाएँ।
आहा! क्या समय था पौराणिक, समय हमारे प्राचीनतम ऎतिहासिक वैदिक धर्म का, सबसे प्राचीन भाषा- संस्कृत, प्राचीनतम ज्ञान व् विज्ञान जो हमारे चारों वेदों में समाहित है, हमारी प्राचीनतम आर्य सभ्यता…..
ये वो समय था, जब इस अमूल्य ज्ञान का पान करने वाला मोक्ष को प्राप्त करता था, जब इस ज्ञान का प्रकाश अखंड बहता था, जब इस ज्ञान को आत्मसात करना ही जन्म का उद्देश्य समझा जाता था।
उस समय माता मदालसा जैसी माँ, अपने गर्भ में ही अपने पुत्रों को संस्कार देती थी, संस्कार भी ऐसे की पुत्र पांच साल की आयु में ही वनों को गमन कर जाते थे।
माता कौशल्या राज्य का अन्न ग्रहण नहीं करती थी, इस डर से की कहीं रजोगुण वाले अन्न से उनका पुत्र, राज्य के लोभ में ना पड़ जाए और देखो उन्होंने जन्म दिया श्री राम को।
भगवान् श्रीकृष्ण जी के जन्मदिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें।
योगिराज भगवान श्रीकृष्ण की जय
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