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मन्त्र रहस्य (ध्वनि)
ज्ञानेन्द्रनाथ-
हमारे इस विश्वांतर्गत करीब करीब सभी चीजे स्पंदमय होती है। स्पंदन का अर्थ है– ताल व लय युक्त आघातोंके परिणामोकी निर्मिती।सम्पूर्ण निसर्ग स्पंदमय होता है। वायुकी बहनेकी अपनी लय होती है। नदी का प्रवाह — इसका भी एक ताल होता है। प्रपात-गर्जना ; समुद्र-गाज ; आदि सबकुछ तालबद्धही होते है। संगीत भी तालबद्ध–लयबद्ध ही होता है।हमारा सम्पूर्ण देह भी स्पंदनयुक्तही है। इन स्पंदनोकी लयमें जरा भी परिवर्तन ; देहमें तकलिफे/बीमारी/व्याधी निर्माण करू सकता है। हमारा ह्रदय व नाडी आदिके स्पंदन भी तालबद्ध और लयबद्ध होते है।हमारे अंतर्गत उर्जाका प्रकटीकरणं (इसेही योगशास्त्र की परिभाषामे कुंडलिनी जागरण कहते है।)– भी ; स्पंद-शक्ति तथा स्पंदन निर्मितीकाही परिणाम है।यही विवेचन अब हम योगशास्त्रकी परिभाषामे देखेंगे।
सुषुम्ना मे होनेवाला प्रमस्तिष्क द्रव्य — जिसे संस्कृतमे तनमात्रा कहते है — होता है। इनमेसेही ये स्पंदन मेंदूके सहस्रारतक जाकर ; विशिष्ट या इच्छित परिणाम देते है। या ये परिणाम स्पंदनोद्वारा निर्माण भी किये जा सकते है। फिर ये स्पंदन नैसर्गिक हो या किसी चीज द्वारा निर्मित हो। सम्पूर्ण योगशास्त्र (इसमे मन्त्र विज्ञान भी है।)– स्पंदनोम्परही आधारित है।
स्पंदनही जीवितताका लक्षण ; तथा स्पंदन-रहितताही मृत्यू है। यह तथ्य ध्यानमे लिया तो ; एक बात प्रमुखतासे उजागर होती हुई दिखेगी कि ; हम सामान्य व्यक्ति ; अपने दैनंदिन जीवनमें ; इनही स्पंदनोंको भुलकर या उन्हे दुर्लक्षित कर ; जिंदगी बिताते रहते है।ऐसेमे कैसा आनंद और कैसा समाधान ? परिणाम ? कुछ व्यक्ति होते है– व्यसनाधीन । हां कुछ सत्प्रवृत्त व्यक्ति ; नृत्य; संगीत; एकाध कला; या योग को अपनाते है।योगकी वजहसेही ; जागृत तथा निद्रित अवस्थामे भी ; ऐसे स्पंदन निरंतर जागृत राहते है। व्यक्ति स्फूर्तिवान बनती है।यह स्फूर्तीही स्पंदमानता है ना ? इसी वजहसे मन और देह — दोनोमे सुसंवाद रहकर; हम अग्रसर होते है– उन्नतीकी ओर।
गुरु गोरक्षनाथ अपनी प्रस्तुति “पंचमात्रायोग”में इनही क्रियाओपर बल देते है। इसी परिप्रेक्षमें हम ; “मन्त्र” विषयकी ओर देख सकते है। किसी भी मंत्रमे ; ध्वनी ; उसका उच्चारण ; लय; ताल महत्वपूर्ण होते है। आरती; स्तोत्र-पठण; मंत्रजप; नाम-स्मरण — आदि सबकुछ हम करते है— ताल और लयबद्धतापूर्वक। है ना ? अब इसका कारण यहांपर स्पष्ट हुआ होगा। इच्छित व इष्ट परिणाम प्राप्त होने हेतु ; महत्व होता है — ताल और लयकोही।
साधारणतया मंत्रो के विषय मे समाज मे काफी आकर्षण दिखता है।यहां एक बात स्पष्ट रुपमे ध्यानमे लेणी होगी कि; मन्त्र होते है — शस्त्रकी भांति। जिस चीजपर शस्त्र चलाया जायेगा ; उसके दो टुकडे हो सकते है। परंतु कठिन पदार्थोम्पर चलाया गया तो ? शस्त्रही निरुपयोगी होनेकी संभावना बनी रहती है ना? मंत्रोके या स्पंदनोंके विषयमे भी ऐसाही है।जिसपर मंत्रप्रयोग करना हो — उसके सामर्थ्यपर भी मंत्रोके परिणाम निर्धारित होतेही है। एक बात और देखते है। —– मंत्रसे भी सामर्थ्यशाली /बलवान ऐसी बाते भी होती है।कृतीया (कर्म) भी होते है — जिसकी वजहसे; इस विश्वांतर्गत मूलतत्वओंके साथ मुकाबला किया जा सकता है –अवश्य । जिसने यह विश्व तथा वह किसके द्वारा बना है? उन मूल तत्वओंको जान लिया; उसे मंत्रोनकी आवश्यकताही नही पडती। इसके बिना भी वह कई बाते ; वह अत्यन्त आसानीसे; सहजतापूर्वक कर सकता है।मेरे ग्रुप के सभी मित्रोको यह बौद्धिक आक्रमण ; उचित नही लगेगा शायद। तथापि यही कडवा सत्य है। हर गुरु यही अपेक्षा रखते है कि; अपना शिष्य ; इसे साध्य करे। यह पोस्ट गँभीरतापूर्वक पढे। चिंतन करे। योग का अवलम्बन आरंभ करे। यही हम सभीकी मनोकामना है। इति आदेश सभीको।
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:- लेखक के व्यक्तिगत विचार होते हैं जो कि सनातन धर्म के तथ्यों पर आधारित होते हैं। -:
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