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पुराण शब्द का निर्वचन
डॉ. दिलीप कुमार नाथाणी विद्यावाचस्पति–
(1) व्याकरण की व्युत्पति के अनुसार पुराभवं इति पुराणम् इसमें पुरा एक अवयव है तथा सायंचिरंप्राह्वेप्रगेव्ययेभ्यष्ट्युलौ तुट् च'( पा.अ. 4.3.23) इस सूत्र से ट्यु प्रत्ययं की इत्संज्ञा होने से टकार का लोप करने पर युवोरनाकौ ( पा.अ. 7.1.1.) सूत्र से ‘य’ को नादेश एवं तुडागम होने पर पुरातन शब्द की निष्पत्ति होती है। किन्तु भगवान् पाणिनि ने ‘पूर्वकालैकसर्वजरत्पुराणनवकड्वला: समानाधिकरेन'( पा.अ. 2.1.46.) एवं ‘पुराणप्रोक्तेषु ब्राह्मणकल्पेषु’ ( पा.अ. 4.3.105) इन दो सूत्रों के द्वारा पुराणशब्द की निष्पत्ति के लिये तुडागम का निषेध किया है परिणामस्वरूप ‘पुरातन’ की अपेक्षा ‘पुरान’ शब्द की सिद्धि होती है एवं यहाँ अट्कुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि सूत्र से निपातादि प्रक्रिया द्वारा ‘णत्व’ प्राप्त हुआ एवं ‘पुरान’ शब्द ‘पुराण’ रूप में निष्प हुआ।
(2) पुरा शब्दात् पुरा अण्यते अतीतान्नर्थान् अण्यते जीवयति इति। पुरा शब्द से अण्यते करने पर इसका तात्पर्य होता है कि जो प्राचीन काल में जीवन जी रहे थे । इस रूप से ‘पुराण’ शब्द की व्युत्पत्ति होती है। इसमें ‘अण् प्राणन’ धातु से एवं दैवादि भाव से ‘नन्दिग्रहिपचादिभ्या ल्युणित्यच:'( पा.अ. 3.1.134) सूत्र द्वारा अच् प्रत्यय करने पर पुराण शब्द की व्युत्पत्ति होती है। इसका सीधा व स्पष्ट अर्थ है कि पूर्व में जिनहोंने जीवन जीया था उनका वर्णन इन ग्रन्थों में प्राप्त होता है।
(3) ‘अण’ शब्द से ‘पुरा’ अव्यय जुड़ा है इसमें अण् शब्द अणति यानि ‘कथयति’ या ‘कहता है’ अर्थ प्रकट करता है एवं पुरा शब्द भूतकाल का द्योतक है। इसकी व्युत्पत्ति में यहाँ भौवादिकात् ‘अण्’ धातु के होने एवं पचादित्वात् अचि प्रत्यय करने पर पुराण शब्द की व्युत्पत्ति होती है। घनान्त अच् शब्दों का प्रयोग पुर्ल्लिंग में हहोता हैं किन्तु ‘पुराण पंचलक्षणम्’ ( देवीभागवत 1.2.18, स्कन्दपुराण प्रभासखण्डे 2.84, सौरपुराण 9.4), पुराणं ग्रन्थ भेदे च क्लीबे त्रिषु पुरातेन’ (नानार्थरत्नामालायां, पृ. 77) ‘पुराणं षोडशपणे पुराणं प्रत्नशास्त्रयो:’ (हेमचन्द्रकोश, पृ. 13), ‘पुराणं यजुषा सह’ (अथर्ववेदे 11.7—24) आदि उदाहरणों में पुराण शब्द का नपुंसकलिंग में प्रयोग दिखाई देता हैं अत: इसे नपुंसक लिंग में प्रयोग में लिया जायेगा।।
(4) वैदिक शब्दों के निर्वचन पद्धति के अन्तर्गत यास्काचार्य द्वारा प्रणीत ग्रन्थ निरुक्त में यास्काचार्य ने पुराण शब्द का निर्वचन करते हुये कहा है कि ‘पुरा’ इस अव्यय को पूर्व में रखकर ‘नु’ धातु से पुराण शब्द का सिद्ध किया है उनकी व्युत्पत्ति ‘पुराणं पुरा नवं भवति’ (निरुक्त3.4.2—24) इति जो कि अत्यन्त प्राचीनकाल में नया था वह पुरण। यहाँ यास्कमुनि पुराण के विषय में यह अर्थ करना चाहत हैं कि जिन ग्रन्थों में प्राचीन लोगों से सम्बन्धित ज्ञान को नवीनता के साथ अक्षुण्ण रखा गया है, वे ग्रन्थ पुराण नाम से संज्ञित हैं।
(5) कुछ पुराणोंमें शब्दार्थक ‘अण्’ धातु से पुरण शब्द का सिद्ध किया गया है। इसका अर्थ है—यह अत्यनत ही प्राची समय में जसे कहा है। कोशकार के अनुसार पुरानी वस्तु हो उसे ‘पुराण’ कहते है।।
(6) अमरकोशकार ने पुराण का निर्वचन करते हुये कहा है —व्यासादिमुनिप्रणीतवेदार्थवर्णितपंचलक्षाणन्वितशास्त्रम् (अमरकोश 1.6.5)
(7) ब्रह्माण्ड पुराण में पुराण केा परिभाषित करते हुये कहा है—’पुराणं लोकतत्वार्थमखिलंवेदसंमितम्’ ( ब्रह्माण्डपुराण, पूर्वभाग 1.8) अर्थात् पुराण वेदसम्मित सम्पूर्णलोक के लिये आवश्यक अर्थों को प्रकट करता है। अथवा वेदसम्मित लोकतत्वार्थको पुराण प्रकट करता है। इस प्रकार ब्रह्माण्ड पुराण् ने पुराणों कोवेद के अर्थ का प्रतिपादक बताया है।
इससे स्पष्ट हेाता है कि अत्यन्त प्राचीन काल में जो कुछ हुआ उसका वर्णन हमें जिन ग्रन्थों में प्राप्त होता है, उसे पुराण कहते हैं निरुक्तकार यास्काचाय्र ने ‘पुरा’ इस अवसस को पूर्व में रखक ‘नु’ धातु से पुराण शब्द को सिद्ध किया है। इसी प्रकारमालविकाग्निमित्रम् में पुराण शब्द को निर्वचित करते हुये कहा है— पुरणामित्येव न साधु सर्वं न चापि काव्यं नवमित्यवद्यम् पुन: कालिदास ही रघुवंशम् में भी लिखते हैं पुराणपत्रापगमादनन्तरम् (रघुवंशम् 3.7) श्रीमद्भगवद्गीता में भी पुराण शब्द का समझाया गया है। वयोवृद्ध पुरातन, अजो नित्य शाश्वतोऽयं पुराण: (गीता 2.20) इस प्रकार पुरण शब्द क निर्वचन देखने से ज्ञात होता है कि पुराण के वर्ण्यविषय अत्यन्त प्राचीन हैं। यह शब्द स्वयं में ही प्राचीनता का द्योतक है। पुराणों का निर्वचन स्वयं पुराणों में प्राप्त होता है। वायु पुराण में लिखा है—
यस्मात्पुरा ह्यनतीदं पुराणं तेन तत् स्मृतम्।
निरुक्तिमस्य यो वेद सर्वपापै: प्रमुच्यते।। (वायुपुराण 1.203)
क्रमश:
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