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भगवान शिव की उपासना हेतु उत्तम मास – श्रावण मास
कु. कृतिका खत्री,सनातन संस्था, दिल्ली-
भगवान शिव के प्रिय मास सावन या श्रावण मास में भगवान शिव और उनके परिवार की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन माह में भगवान शिव का अभिषेक करना बहुत ही फलदायी होता है । सावन माह भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे उत्तम माह माना जाता है।
श्रावण मास कहते ही व्रत का स्मरण होता है । उपासना में व्रत का महत्व अनन्य साधारण है । सामान्य जनों के लिए वेद अनुसार आचरण करना कठिन है । इस कठिनाई को दूर करने के लिए पुराणो में व्रतों का विधान बताया गया है । आषाढ एकादशी से लेकर कार्तिक एकादशी तक की कालावधि में चातुर्मास होता है । अधिकांश व्रत चातुर्मास में ही किए जाते हैं । इनमें विशेष व्रत श्रावण मास में ही आते हैं । श्रावण मास में बच्चों से लेकर बडे-बूढों तक सभी के द्वारा किया जानेवाला एक महत्त्वपूर्ण व्रत है, श्रावण सोमवार का व्रत । श्रावण सोमवार के व्रत संबंधी उपास्य देवता हैं भगवान शिवजी ।
श्रावण सोमवार की व्रतविधि
इसमें श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिवजी के देवालय में जाकर उनकी पूजा की जाती है । कुछ शिवभक्त श्रावण के प्रत्येक सोमवार को १०८ अथवा विशेष संख्या में बिल्वपत्र शिवपिंडी पर चढाते हैं । कुछ लोग श्रावण सोमवार को केदारनाथ, वैद्यनाथ धाम, गोकर्ण जैसे शिवजी के पवित्र स्थानों पर जाकर विविध उपचारों से उनका पूजन करते हैं । इसके साथ ही श्रावण सोमवार को भगवान शिवजी से संबंधित कथा-पुराणों का श्रवण करना, कीर्तन करना, भगवान शिवजी संबंधी स्तोत्रपाठ करना, भगवान शिवजीका ‘ॐ नमः शिवाय’ यह नामजप करना इत्यादि प्रकारसे भी दिनभर यथाशक्ति भगवान शिवजी की उपासना की जाती है । व्रत के दिन व्रतदेवता की इस प्रकार उपासना करना व्रत का ही एक अंग है । श्रावण सोमवार के दिन भगवान शिवजी का नामजप करना लाभदायी होता है ।
श्रावण सोमवार व्रत से संबंधित उपवास
इस दिन संभव हो, तो निराहार उपवास रखते हैं । निराहार उपवास अर्थात दिनभर आवश्यकतानुसार केवल जल प्राशन कर किया जानेवाला उपवास । दूसरे दिन भोजन कर यह उपवास तोडा जाता है । कुछ लोग नक्त व्रत रखते हैं । नवतकाल अर्थात सूर्यास्तके उपरांत तीन घटिका अर्थात ७२ मिनट, अथवा नक्षत्र दिखनेतकका काल । व्रतधारी दिनभर कुछ न सेवन कर इस नक्तकालमें भोजन कर व्रत रखते हैं ।
सोलह सोमवार व्रत
यह भगवान शिवजीसे संबंधित एक फलदायी व्रत है । इस व्रतका आरंभ श्रावण के पहले सोमवार को किया जाता है । इसमें क्रमशः सोलह सोमवार को उपवास रख, सत्रहवें सोमवार को व्रत की समाप्ति करते हैं । इस व्रतमें `सोलह सोमवार व्रतकथा’का पाठ किया जाता है । इस व्रत में निर्जल उपवास रखा जाता है । जिनके लिए ऐसा करना संभव नहीं, उन्हें गेहूं, गुड एवं घी में हलवा अथवा खीर बनाकर एक बार ग्रहण करने की विधि बताई गई है । व्रत की समाप्ति के समय सोलह दंपतियों को बुलाकर भोजन कराया जाता है, तथा वस्त्र एवं दक्षिणा दी जाती है । जो यह व्रत करता है, अथवा व्रत कथा का श्रवण करता है, उसके सर्व पापों एवं दुःखों का नाश होता है तथा उसकी सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।
‘कोरोना’ के प्रकोप के फलस्वरूप घर के बाहर जाने से मना होने के कारण ‘श्रावणी सोमवार’ का व्रत कैसे करें ?
वर्तमान कोरोना संकट की पृष्ठभूमि पर देशभर में यातायात बंदी (लॉकडाऊन) है । किसी-किसी स्थान पर कोरोना का प्रादुर्भाव अल्प है, किंतु तब भी लोगों के घर से बाहर निकलने पर अनेक बंधन लगाए गए हैं । इस कारण हिन्दुओं के विविध त्यौहार, उत्सव, व्रत सामूहिक रूप से मनाए जाने पर बंधन है । कोरोना समान संकटकाल की पार्श्वभूमि पर हिन्दू धर्म ने धर्माचरण के शास्त्र में संकटकाल के लिए भी कुछ विकल्प बताए हैं, जिसे ‘आपद्धर्म’ कहा जाता है । आपद्धर्म का अर्थ है ‘आपदि कर्तव्यो धर्मः ।’ अर्थात आपदा के समय आचरण करना आवश्यक धर्म है!
इसी माह में श्रावण अर्थात सावन महिना होने से संपत काल में बताई गई पद्धति के अनुसार इस वर्ष हम सार्वजनिक रूप से विविध व्रत उत्सव सदैव की भांति नहीं मना सकेंगे । इस दृष्टि से प्रस्तुत लेख में वर्तमान परिप्रेक्ष्य से धर्माचरण के रूप में ‘श्रावणी सोमवार’ व्रत कैसे करना है, इसका विचार किया गया है । यहां महत्त्वपूर्ण सूत्र यह है कि इससे हिन्दू धर्म ने कितने उच्च स्तर तक जाकर मनुष्य का विचार किया है, यह सीखने को मिलता है । इससे हिन्दू धर्म की एकमेव अद्वितीयता ध्यान में आती है ।
श्रावणी सोमवार में श्रद्धालु शिवजी के मंदिर में जाकर शिवपिंडी का जलाभिषेक करते हैं । ‘लॉकडाऊन’ के कारण जिन्हें घर के बाहर जाकर शिवालय में जाना संभव नहीं है । वे ‘आपद्धर्म’ के रूप में घर में रहकर यह व्रत किस प्रकार से करें, इस विषय में इस लेख में धर्मशास्त्राधारित वर्णन किया गया है।
- श्रावण सोमवारी उपवास कर शिवजी की विधिवत पूजा करना
‘उपोषितः शुचिर्भूत्वा सोमवारे जितेन्द्रियः।
वैदिकैर्लौकिकैर्मन्त्रैर्विधिवत्पूजयेच्छिवम् ॥’ – स्कन्दपुराण, ब्रह्मखण्ड, अध्याय 8, श्लोक 10
अर्थ : संयम तथा शुचिर्भूतता आदि नियमों का पालन करते हुए सोमवारी उपवास कर वैदिक अथवा लौकिक मंत्र से शिवजी की विधिवत पूजा करें ।
शास्त्रकारों ने मन पर संयम रख, शुचिर्भूतता नियम पालन के विषय में, तथा उपवास करने के विषय में बताया है । उसके अनुसार हम अपने ज्ञान के आधार पर जो संभव हो, उन वैदिक अथवा लौकिक मंत्रों के द्वारा शिवजी की पूजा कर सकते हैं ।
- शिवजी की पूजा कैसे करें ?
* अपने घर में स्थित शिवलिंग की पूजा करें ।
* यदि शिवलिंग उपलब्ध न हो, तो शिवजी के चित्र की पूजा करें ।
* शिवजी का चित्र भी उपलब्ध न हो, तो पीढे पर शिवलिंग की अथवा शिवजी का चित्र बनाकर उसकी पूजा करें ।
* ऊपर बताए अनुसार कुछ भी संभव न हो, तो शिवजी के नाम का जप ‘ॐ नमः शिवाय।’ यह नाम मंत्र लिखकर हम पूजा कर सकते हैं ।’
सौजन्य : सनातन संस्था
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