महामहोपाध्याय पंडित राजेंद्र शास्त्री- जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए भैरव आराधना का बहुत महत्व है। जप के बाद श्री बटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्र का पाठ करें, तो निश्चित ही आपके सारे कार्य सफल और सार्थक हो जाएंगे, साथ ही आप अपने व्यापार, व्यवसाय और जीवन में आने वाली समस्या, विघ्न, बाधा, शत्रु, कोर्ट कचहरी, और मुकदमे में पूर्ण सफलता प्राप्त करेंगे :– ॥ मूल-स्तोत्र ॥ ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः। क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट् ॥ श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्। रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः॥ कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः। त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः॥ शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः। अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी – पतिः॥ धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्। नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्॥ कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः। त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्॥ त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय। बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग -वर – धारकः॥ भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः। धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु – लोचनः॥ प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः। अष्ट -मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान- चक्षुस्तपो-मयः॥ अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः। भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः॥ कपाल-धारी मुण्डी च , नाग- यज्ञोपवीत-वान्। जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा॥ शुद्द – नीलाञ्जन – प्रख्य – देहः मुण्ड -विभूषणः। बलि-भुग्बलि-भुङ्- नाथो, बालोबाल – पराक्रम॥ सर्वापत् – तारणो दुर्गो, दुष्ट- भूत- निषेवितः। कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी वश-कृद्वशी॥ जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया – मन्त्रौषधी -मयः। सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ – विष्णुरितीव हि॥ ॥फल-श्रुति॥ अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः। मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम्॥ य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट – शतमुत्तमम्। न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा॥ न शत्रुभ्यो भयंकिञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्। पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः॥ मारी-भये राज-भये, तथा चौ राग्निजे भये। औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नज भये॥ बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः। सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव – कीर्तनात्॥ साधना का समय.... शाम 7 से 11 बजे के बीच। साधना की चेतावनी.... इस साधना को बिना गुरु की आज्ञा के ना करें। साधना के दौरान खान-पान शुद्ध रखें। सहवास से दूर रहें। वाणी की शुद्धता रखें और किसी भी कीमत पर क्रोध न करें। साधना नियम व सावधानी
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