डॉ. दिलीप कुमार नाथाणी (विद्यावाचस्पति)-
Mystic Power- वादे वादे तत्त्व जायते बारम्बार चर्चा करने से तत्त्व निकल कर आता है जिस प्रकार दधि (दही) को मंथने से उसमें से मक्खन निकल कर आता है उसी प्रकार वाद—विवाद करने से तथ्यपूर्ण ज्ञान निकल कर आता है। मेरी वृत्ति भी कुछ ऐसी ही है धर्म के नाम पर विवेकहीन होकर सभी से चर्चा कर लेता हूँ तथा अन्त में मुँह की खानी पड़ती है ता खा लेता हूँ पर जिस प्रकार गोबर गिरे तो जब उठाओ तो वह मिट्टी को तो साथ में लेकर ही आएगा वैसे ही मैं भी गाय के गोबर की भाँति गोबर गणेश कहीं का कुछ न कुछ उठा कर ही लाता हूँ तो इस बार यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि ''गाय का दूध पीना गाय के प्रति क्रूरता है'' जब यह ज्ञान प्राप्त हुआ तो मैं क्षणभर अवाक् रह गया मुझ सनातन हिन्दू धर्मावलम्बि गोबर गणेश को यह ज्ञान दिया गया कि — *''मनुष्य के अलावा कोई पशु किसी अन्य का दूध नहीं पीता अत: गाय का दूध पीना गाय के प्रति क्रूरता है''
बस इस पंक्ति को सुनते ही मेरे शक्त्पिात हो गया सभी चक्र एक ही साथ खुल गये। अब यह जानने योग्य तथ्य है कि यह बात कह कौन रहा है तो आप सभी पाठक समझ ही गये होंगे कि गाय के दूध पीना गाय की प्रति क्रूरता है यह बात वे लोग कह रहे हैं जिन्हें गाय खानी है तथा जो नित्य गाय खाते हैं। और तो और एक मांस भोजी बड़ी ही निर्लजता (बेशर्मी) के साथ अपनी मां का दूध पीने की अपेक्षा वृश्चिकयोनि के बच्चों की भाँति अपनी ही मां के माँस को खाना पसन्द करता है।
आप सभी जानते हैं मादा वृश्चिक (मादा बिच्छु) अपने बच्चों को अपनी ही पीठ पर लेकर चलती है तथा वे बच्चे अपनी ही माँ का माँस खाते हैं यदि माता वृश्चिक की पीठ से कोई बच्चा नीचे गिर जाता है तो माँ अपने ही बच्चे को खा लेती है जो बच्चे अपनी माँ की पीठ पर से नहीं गिरते वे अपनी ही माँ का दूध नहीं पीते अपितु माँ का माँस खाते हैं। तो गाय को दूध पीना गाय के प्रति क्रूरता है उसका तात्पर्य है यह बात कहने वाले सभी अपनी माँ का दूध नहीं वरन् अपनी ही माँ का माँस खाना में अधिक रुचि रखते हैं वैसे फ्रायड के योनकुण्ठित वासना भरे घृणित सिद्धान्तों से तो हम सभी परिचित हैं यहभी उसी कैटेगरी से आया हुआ सिद्धान्त है।
अब आता है कि इस वाक्य से हमें क्या क्या ज्ञान हुआ—
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