डॉ. मोहनलाल गुप्ता-
अत्यंत प्राचीन काल से भारतीय ऋषि-मुनि मानव मात्र को सुखी बनाने के उद्देश्य से धरती के विभिन्न द्वीपों और दूरस्थ देशों की यात्रा करके अहिंसा, प्रेम, सद्भाव एवं शांति का संदेश देते आए हैं जिसे भारतीय संस्कृति कहा जाता है। यह भारतीय संस्कृति ईसाई धर्म तथा इस्लाम के प्रादुर्भाव से सैकड़ों साल पूर्व ही, विश्व के अनेक द्वीपों, प्रायद्वीपों एवं महाद्वीपों में फैल गई थी।
भारतीय संस्कृति को दूसरे देशों में ले जाने वाले उपदेशक हिन्दू धर्म तथा बौद्ध धर्म के प्रचारकों के रूप में नहीं गए थे। वे धरती पर ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न करने तथा मुनष्यों को हिंसा का मार्ग त्यागकर प्रेम से रहने का उपदेश देने के उद्देश्य से गए थे, बाद में इन्हें हिन्दू धर्म तथा बौद्ध धर्म का प्रचारक कहकर उनके योगदान को कम करके आंकने का प्रयास किया गया।
आज से लगभग 2000 साल पहले ईसाई धर्म तथा 1400 साल पहले इस्लाम के प्रादुर्भाव के पश्चात्, पूरी धरती से हिन्दू धर्म तेजी से समाप्त हुआ है।
चीन, जापान, वियतनाम, थाइलैण्ड तथा बर्मा आदि अनेकानेक एशियाई देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार हो जाने से बौद्ध धर्म का उतना ह्रास नहीं हुआ जबकि हिन्दू धर्म सैंकड़ों द्वीपों और देशों में दम तोड़ चुका है। भारत के अतिरिक्त केवल नेपाल देश तथा इण्डोनेशिया के बाली द्वीप में ही हिन्दुओं का बड़ी संख्या में अधिवास है। भारत को आपातकाल में ई। 1976 में 42वें संविधान संशोधन से धर्म-निरपेक्ष देश घोषित किया गया। धर्म-निरपेक्ष बनने वाला यह संसार का पहला देश था।
हाल ही के दशकों में नेपाल में चीन ने जिस प्रबलता के साथ साम्यवाद का आक्रमण किया। उसके प्रभाव में आकर नेपाल धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित हो गया। संसार में इन दो देशों के अतिरिक्त और कहीं भी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय व्यवस्था नहीं पाई जाती। बाली के हिन्दू जिस देश के निवासी हैं। उस देश में 90 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या रहती है।
विश्व के मानचित्र पर हिन्दू हर तरह से नष्ट हो रहे हैं। जनसंख्या से लेकर संस्कृति तक सब कुछ समाप्त हो रहा है किंतु हिन्दू जाति मदांध होकर सोई हुई है। ई। 1947 में पाकिस्तान में 20 प्रतिशत हिन्दू थे जो आज केवल 2-3 प्रतिशत रह गए हैं। बांगलादेश में भी हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया है, उनकी लड़कियों से बलपूर्वक विवाह किया जा रहा है, उनके घरों को जलाया जा रहा है। यहाँ तक कि पश्चिमी बंगाल में भी ऐसी घटनाए पिछले कुछ वर्षों में देखने का मिली हैं। केरल, काश्मीर, आसाम में भी हिन्दू जाति का अस्तित्व मिट रहा है। वोटों की राजनीति के समक्ष सब-कुछ समर्पित किया जा रहा है।
भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में हिन्दुओं की क्या स्थिति है। इसे देखा और समझा जाना आवश्यक है। अप्रैल 2017 के तीसरे एवं चौथे सप्ताह में प्राचीन हिन्दू मंदिरों के दर्शनों की लालसा में, हमारे परिवार ने इण्डोनेशिया गणराज्य के दो द्वीपों- बाली तथा जावा की यात्रा की। इस दौरान हमें देनपासार, उबुद, मेंगवी, कुता, जोग्यकार्ता तथा जकार्ता आदि नगरों का भ्रमण करने का अवसर मिला। हमने सुन रखा था कि बाली और जावा द्वीपों पर सैकड़ों साल पुराने कुछ ऐसे हिन्दू तथा बौद्ध मंदिर स्थित हैं जिनका निर्माण देवताओं द्वारा किया गया। ये देवता किसी अन्य ग्रह से आए हुए परग्रही जीव रहे होंगे जिनकी तकनीक तथा शिल्प उस काल के इंसानों की तकनीक तथा शिल्प की तुलना में अत्यंत उच्च कोटि की रही। होगी। तभी वे सैंकड़ों की संख्या वाले हिन्दू मंदिरों के समूह तथा विश्व के सबसे बड़े पिरामिडीय रचना वाले बौद्ध मंदिरों का निर्माण कर पाये। हमने इन मंदिरों को देखने की लालसा में इण्डोनेशिया भ्रमण का कार्यक्रम बनाया था।
इण्डोनेशिया निश्चित ही एक सुंदर देश है जो भारतीयों को अपनी वैविध्यपूर्ण हिन्दू संस्कृति तथा सुन्दर समुद्री तों के कारण आकर्षित करता है। हमने इसे एक धार्मिक यात्रा की तरह आरम्भ किया किंतु शीघ्र ही हमारी यह यात्रा ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक तथ्यों की खोजपूर्ण यात्रा में बदल गई तथा एक-एक करके बहुत से रहस्यों पर से आवरण हटाने वाली सिद्ध हुई। जैसे-जैसे हम अपनी यात्रा पर आगे बढ़ते गये।
नए-नए रहस्यों घर से पर्दा उठता गया। कुछ ही दिनों में हमने समझ लिया कि हमने प्राचीन हिन्दू मंदिरों के दर्शनों की लालसा में, अनजाने में ही बाली द्वीप के रूप में सात समुद्रों के बीच एक रहस्यमय किंतु निर्धन भारत के अवशेषों को खोज निकाला है। एक ऐसा निर्धन भारत जहाँ गाय नहीं है। गंगाजी नहीं हैं, गेहूं नहीं है। दूध, घी, दही, छाछ, रोटी, सोगरा, ढोकला, दाल-बाटी कुछ भी नहीं है। स्वाभाविक है कि ऐसा देश नितात निर्धन ही हो सकता है।
यह सचमुच एक रहस्यमय निर्धन भारत है जो अपने समस्त प्राचीन वैभव को खोकर और अपने वास्तविक स्वरूप को भूलकर सांस्कृतिक प्रदूषण की आंधी के झोंकों में संघर्ष कर रहा है। बाली द्वीप पर भले ही आज भी 85-90 प्रतिशत हिन्दू रहते हैं किंतु जावा द्वीप पर 90 प्रतिशत लोग इस्लाम स्वीकार कर चुके हैं। इण्डोनेशिया के सबसे बड़े द्वीप सुमात्रा में भी मुसलमानों की जनसंख्या की यही स्थिति है जिसका परिणाम यह है कि आज इण्डोनेशिया ससार का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है तथा इस देश की 90 प्रतिशत जनसंख्या मुसलमान है।
हिन्दुओं का छोटा सा दीपक बाली देश के रूप में टिमटिमा रहा है। इस सच्चाई के बीच बाली और जावा द्वीपों के हिन्दू और बौद्ध धर्मस्थलों को देखना कम रोमांचक नहीं है। इंडोनेशिया के मुसलमानों और भारत के मुसलमानों मे भी सांस्कृतिक भिन्नता है। इस भिन्नता को देखना और समझना काफी रोचक है। इंडोनेशिया के मुसलमानों ने यूनेस्को की सहायता से हिंदू और बौद्ध मंदिरों को धरती मे से खोज निकाला है और फिर से खड़ा करके पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है।
इण्डोनेशिया के नगरों एवं द्वीपों में मुख्य चौराहों पर भवनों के सामने, हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों को बड़ी शान से दिखाया जाता है। इण्डोनेशियाई समाज हजारों साल से स्त्री प्रधान रहा है। आज भी इण्डोनेशियाई समाज इस विशेषता से सम्पन्न है। यही कारण है कि वहाँ की औरतें बुरका, हिजाब आदि नहीं पहनतीं। वे आधुनिक संसार का प्रतिनिधित्व करती हैं और अपनी हजारों साल पुरानी संस्कृति पर गौरव करती हैं। एक ऐसी संस्कृति जो इस्लाम का हिस्सा नहीं है, अपितु इण्डोनेशियाई समाज के इतिहास और गौवमयी अतीत का हिस्सा है। साभार:हिन्दुत्व की छाया में इन्डोनेशिया (पुस्तक से)
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