- तंत्र शास्त्र
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31 October 2024
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डॉ.दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक)-
इस विषय पर ‘दीक्षा रहस्य’ नामक अध्याय के अन्तर्गत ‘दीक्षा हेतु उपयुक्त स्थान’ शीर्षक में कुछ लिखा गया है क्योंकि जिन पवित्र स्थानों पर दीक्षा प्राप्त करने से शीघ्र साधना सफल होती है उन्हीं स्थानों पर जप करना भी शुभप्रद माना गया है।
“पुण्य क्षेत्रं नदी तीरं-गुहा पर्वत मस्तकम्
तीर्थ प्रदेशा सिन्धूना-संगम: पावनं बनम्“
(पुण्य क्षेत्रों, नदियों के किनारे, पर्वतों की चोटियों, समुद्रों के संगम स्थल, गंगा-सागर संगम, घने जंगल, उद्यान, देवस्थान, समुद्रतट, विल्व वृक्ष, पीपलवृक्ष, बटवृक्ष, तथा धात्रीवृक्ष के नीचे तथा गोशाला में पुरश्चरण करना चाहिए। इन दिव्य स्थानों पर जप करने का फल इस प्रकार बताया गया है –
“गृहे जप समं प्रोक्त:-गोष्ठे शतगुणासु स:।”
जबकि अन्य ग्रन्थों में लिखा गया है –
“गृहे शतगुंण विन्ध्याद्-गोष्ठे लक्षगुंण भवेत्
कोटि देवालये पुण्यं-अनन्तं शिव सन्निधौ।”
(अर्थात् अपने घर में जप करने से अधिक फल गोशाला में, गोशाला से अधिक फल एकान्त उद्यान में, एकान्त उद्यान से अधिक पर्वत शिखर पर, पर्वत शिखर से अधिक पुण्यक्षेत्र में, पुण्यक्षेत्र से अधिक फल देवालय में, तथा शिव सान्निध्य में जप का अनन्त फल मिलता है।)
।। सिद्ध पीठों में पुरश्चरण ।।
तंत्र-शास्त्रों में उन सभी सिद्ध तथा महासिद्ध पीठों का विवरण दिया गया है जहाँ पुरश्चरण करने से शीघ्र मंत्र-जागृत हो जाता है। चार धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग तथा 51-शक्तिपीठों के अतिरिक्त भी भगवान शंकर द्वारा माता पार्वती को जिन सिद्धपीठों का परिचय दिया गया था उनमें से प्रमुख हैं :
“मायावती, मधुपुरी-काशी गोरक्षकारिणी
मणिपुरं हृषीकेश-प्रयागंच तपोवनम्
बदरी च महापीठं-उड्डिपानं महेश्वरि
कामरूपं महापीठं-सर्वकाम फलप्रदम।“
अर्थात् मायावती, हरिद्वार, काशी, गोरखपुरी, हिगुलादेवी, ज्वालामुखी, रामगिरी पर्वत, त्र्यम्बकेश्वर, पशुपतिनाथ, अयोध्या, कुरूक्षेत्र, मणिपुर, रिषीकेष, प्रयाग, तपोवन, बद्रीनाथ, अम्बाजी, गंगासागर, उड्डियानपीठ, जगन्नाथपुरी, महिष्मतीपुरी, वाराही क्षेत्र, गोवर्धन पर्वत, विन्ध्यवासिनी, क्षीरग्राम तथा वैद्यनाथधाम। इन सभी सिद्धपीठों में से आसाम का कामरूप कामाक्षादेवी धाम महासिद्ध पीठ है जहाँ पुरश्चरण करने से अतिशीघ्र मंत्र-सिद्धि मिलती है। धरती पर ऐसी महासिद्ध पीठ अन्यत्र नहीं है।