डॉ. दिलीप कुमार नाथाणी (विद्यावाचस्पति)-
mystic power - आजकल एक परम्परा चल पड़ी है अथवा सनातन द्रोहियों के द्वारा चलाई गयी है। उनमें भी जो सनातनी आज से 35—45 वर्ष पूर्व जोश जोश साम्यवादि (देश व सनातन धर्म को नष्ट करने वाली कम्यूनिस्ट) सोच से जुड़े हुये नाम मात्र के सनातनी हिन्दू भी इस षड्यन्त्र में सम्मिलित हो जाते हैं। तथा गणेश पर्व पर जल प्रदूषण, श्राद्धों में पितरों के होने पर शंका तथा नवरात्री में रावण की महिमा मण्डित करने का व्यवस्थित क्रम चलता है। उसमें रावण को निर्दोष बताया जाता है। आज उसी मिथ्या कथानकों का दहन मैं करूँगा। अत: इसको पढ़ने के उपरान्त जिन—जिन के मन में रावण, कुम्भकरण, कर्ण, दुर्योधन, दु:शासन आदि विराजमान है उनकी जल कर मृत्यु हो जायेगी तथा उन—उन हृदयों के स्वामियों के कुतर्क भी सदा—सदा के लिये समाप्त हो जायेंगे। उन्हें बड़ी पीड़ा होगी वे जलेंगे भुनेंगे पर मेरे तर्कों का उत्तर उनके पास नहीं होगा तथा यही उनकी जलन, कुढ़न मेरे लिये आनन्द एवं पारिश्रमिक होगा
प्रसंग—1 माता कौशल्या जी ने राम से पूछा कि पुत्र तूने रावण को मारा तो राम ने उत्तर दिया कि मैंने रावण को नहीं वरन् रावण की 'मैं' ने उसे मारा।
समाधान:— रावण को भगवान् राम ने ही मारा। उसमें मैं ही नहीं वरन् वह छँटा हुआ 'बदमाश' भी था। दूसरे के धन का अपहरण करना, परायी स्त्रियों को अपमानित करना आदि कई कई दुष्ट व्यसन उसमें थे। संस्कृत साहित्य में कहा है ''रामादिवत् वर्तितव्यं न तु रावणादिवत्''
अत: इस प्रसंग में षड्यन्त्र क्या है यह आप समझिये
षड्यन्त्र यह है कि रावण को अहंकारी बता कर उसके लुटेरा, बलात्कारी, अत्याचारी, राक्षसत्व आदि दोषों से उसे मुक्त करने का षड्यन्त्र है।
द्वितीय षड्यन्त्र कि आप रावण को केवल अहंकारी मानें। इसके बाद अगले 20—30 वर्षों में यह प्रमाणित करने का प्रयास किया जायेगा कि रावण को मारने के बिना भी काम हो सकता था। राम ने यह त्रुटि की थी।
तृतीय षड्यन्त्र माता सीता, राम व लक्ष्मण को ही अपराधी बता दिया जायेगा। वैसे भगवान् राम व कृष्ण को अपराधी बताने का कार्य कई संगठन कर रहे हैं। कई अपराधी तो भगवान् राम व भगवान् कृष्ण को भगवान् ही नहीं मानते अपितु महापुरुष बताते हैं। ऐसे व्यक्ति भी इसी षड्यन्त्र के उपकरण हैं।
प्रलाप:— रावण ने राम से कहा कि तुम इसलिये जीते कि तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ था तथा मैं इसलिये हारा कि मेरा भाई मेरे साथ नहीं था।
सर्वप्रथम तो यहाँ यह समझने योग्य है कि विभीषण जी ने बहुत बहुत बहुत प्रयास किया कि रावण समझ जाये कि वह अनुचित कार्य कर रहा है। बारम्बार समझाने के उपरान्त भी जब वह नहीं माना तो बात यही समाप्त नहीं हुई वरन् रावण ने अपनी दुष्टता अर्थात्, अन्यों का लूटना, बलात्कार आदि कार्यों में प्रवृत्ति, राक्षसीय कार्यों को उचित बताते हुये विभीषण जी पर पाद—प्रहार करके बाहर निकाल दिया। ऐसे में विभीषण जी के पास एक ही विकल्प शेष था कि वह किसी भी प्रकार लंकावासियों की रक्षा करे एवं लंका की रक्षा करे। इस कार्य में विभीषण सफल भी हुये अत: घर का भेदी लंका ढाए कहावत चरितार्थ भी नहीं होती। उन्होंने सत्य का साथ दिया राम उनके शत्रु थे ही नहीं वे तो केवल अपनी पत्नी की रक्षार्थ ही आये थे। पुन: वे केवल अपनी पत्नी ही नहीं वरन् स्त्रीजाति की रक्षा के लिये अभियान था। एक महाभियान जिसमें उसके विरोधी वे ही थे स्वयं बलात्कारी हों तन से नहीं तो मन से ही व्यभिचारी अवश्य हैं। अत: रावण का समर्थक भी निश्चित ही व्यक्तिगत सोच हो सकती है कि क्योंकि आपकी इच्छा आपके मन के द्वारा संचालित है।
रावण के भाई वाले प्रलाप का छद्म स्वरूप क्या है?
रावण के द्वारा भाई का साथ नहीं दिया जाना एक ऐसा प्रलाप है जो कि रावण को निर्दोष बताने का उपक्रम है। उद्देश्य एक ही है कि येन केन प्रकारेण, कर्ण, दुर्योधन, दु:शासन, शकुनि, रावण, हिरण्यकशिपु,आदि राक्षसों को सही बताया जाए।
यह इस षड्यन्त्र का प्रथम चरण है।
द्वितीय चरण में हमारे आदर्शों में से त्रुटियाँ ढूँढीं जायेंगीं।
तृतीय चरण में हमारे आदर्शों का बुरा एवं इन राक्षसों का अच्छा बताया जायेगा। और आपके घर की मूर्त्तियों को आपके घर से बाहर निकालने के लिये आपको प्रेरित किया जायेगा।
अत: यहीं सावधान हो जाये। चिन्तन करें कि अन्ततोगत्वा एक अपराधी, व्यभिचारी, बलात्कारी, डकैत का महिमा मण्डन क्यों? यह एक षड्यन्त्र है कि आप अपने आदर्शों का त्याग करें।
प्रलाप:— रावण कहता है कि अरे तुम मुझे क्यों जला रहे हो? मैंने तुम्हारी पत्नी का अपहरण तो नहीं किया है।
समाधान:— सर्वप्रथम यह प्रलाप जो सोशल साइटों पर विभिन्न प्रचार माध्यमों से आ रहा है उसका प्रथम निष्कर्ष तो यही है कि रावण किसी न किसी रूप में अभी भी न केवल जीवित है अपितु वह अपनी राक्षसी सेना का निर्माण भी कर रहा है। तात्पर्य है कि रावण की वृत्ति यथा, लूट, बलात्कार, अतिक्रमण, निर्दोषों की हत्या, अत्याचार, पाशविकता आदि जीवित है। जिनमें यह जीवित है वे ही इस प्रकार का प्रपंच प्रचारित कर रहे हैं।
अब आता है कि यह जो मूल प्रश्न बनाकर भेजा जा रहा है कि वर्तमान में रावण को क्यों जलाया जा रहा है?
समाधान:— यह रावण को जलाना इस बात का प्रतीक है कि जो भी व्यक्ति, समाज, संस्कृति यदि स्त्री जाति का सम्मान नहीं करेगी तो वह जलाये जाने योग्य है। अत: हम वर्तमान समाज में भी यदि स्त्री का अपमान करते हैं अथवा अपमान होते देख रहे हैं जैसे लवजिहाद, हिन्दू कन्याओं का अपमान आदि का कुकर्म देख रहे हैं तो हम भी रावण की ही श्रेणी में ही हैं।
अस्तु तात्पर्य है कि रावण स्त्री अपमान का प्रतीक है, रावण अन्यों के धन हरण करने वाले ऐसे लोगों का प्रतीक है जो प्रत्यक्ष में स्वयं का बहुत ही अच्छा धार्मिक दिखाते हैं पर वे हैं दूसरों की धन सम्पत्तियों को लूटने वाले लुटेरे, रावण प्रतीक है पिशाची मानसिकता का, आदि आदि। अत: यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि मनुष्य बुरे कार्यों शीघ्र फँस जाता है अत: उसे नित्य प्रतिवर्ष जलाया जाना आवश्यक है। यह हमें दर्शाता है कि हमारी संस्कृति, स्त्री जाति का सम्मान करती है। हमारी जाति दूसरों के धन का हरण नहीं करती। आदि
इस कथानक से होने वाले षड्यन्त्र तथा हमारी संस्कृति पर पढ़ने वाला प्रभाव
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