श्री अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ )-
जैसे मनुष्यों का जन्म मरण होता रहता है, उसी प्रकार ग्रह, तारा तथा ब्रह्माण्ड का भी जन्म मरण होता रहता है। मनुष्यों की कुल जनसंख्या स्थिर नहीं है, पिछले ५०० वर्षों से बढ़ रही है। किन्तु आकाश में सृष्ट विश्व का मान सदा समान रहता है। वह पूरुष के ४ पाद का एक ही पाद है, ३ पाद आकाश में स्थिर हैं।
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एतावानस्य महिमाऽतो ज्यायांश्च पूरुषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥ (पुरुष सूक्त, ३)
४ पाद मिलाकर पूरुष है, सृष्ट एक पाद पुरुष है।
एक और पूरुष है। दृश्य जगत् विराट् है, जो राजते या प्रकाशित है। इसका अधिष्ठान भी पूरुष है, जो उससे बहुत बड़ा है। अधिष्ठान दो प्रकार का कह सकते हैं-पिण्ड के चारों तरफ फैला विरल पदार्थ, या उनके तथा चारों तरफ के पिण्डों का आकर्षण जिसे संकर्षण कहा गया है (संयुक्त आकर्षण)।
तस्माद् विराट् अजायत, विराजो अधि-पूरुषः। (पुरुष सूक्त, ५)
सूर्य केन्द्रित विश्व या सौरमण्डल अपेक्षाकृत कम आयु का है, उसे मर्त्य कहा गया है। सूर्य जिसका कण रूप अंश है, वह ब्रह्माण्ड या अरबों ब्रह्माण्डों का समूह स्थायी है, उसे अमृत कहा गया है।
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यञ्च।
हिरण्ययेन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन्॥(यजु, ३३/४३)
आकृष्णेन = केन्द्रीय आकर्षण, संकर्षण
रजसा = दृश्य जगत् या लोक
अमृत = अधिक स्थायी
मर्त्य = कम स्थायी
भुवनानि = मर्त्य, अमृत दोनों प्रकार के अरबों भुवन।
पश्यन् = सूर्य से प्रकाश निकलता है, जिससे अन्य उसे देखते हैं। स्वयं सूर्य कैसे देखता है? अन्य ताराओं के प्रकाश से, या अपने सौरमण्डल के ग्रहों के परावर्तित प्रकाश से।
आकाश में तीन प्रकार के पदार्थ हैं-
(१) ब्रह्माण्ड के तारा, ग्रह आदि पिण्ड (घना पिण्ड या ऊर्जा अग्नि है)।= पुरुष
(२) तारा, ग्रहों के बीच के खाली स्थान का विरल पदार्थ या सोम = अधिपूरुष
(३) अज्ञात पदार्थ जिसके आकर्षण का अनुभव हो रहा है ( dark matter)। = पूरुष के तीन पाद।
आधुनिक अनुमानों में थोडी भिन्नता है। ब्रह्माण्ड के भीतर अज्ञात पदार्थ की मात्रा प्रायः ८०% से अधिक है। दृश्य पिण्ड केवल ४% है।
सम्पूर्ण विश्व में जिसके दृश्य भाग में १०० अरब से अधिक ब्रह्माण्ड हैं, ५% पिण्ड या अग्नि हैं, १८% ताराओं के बीच या ब्रह्माण्डों के बीच का विरल पदार्थ तथा प्रायः ७८% अज्ञात पदार्थ है।
अज्ञात पदार्थ का मान ३/४ भाग या ७५% का अनुमान पुरुष सूक्त में कैसे हुआ? एक तर्क हो सकता है कि ऊर्जा दो प्रकार की है-असुर ऊर्जा से निर्माण नहीं होता-वह तमोगुण है।
देव ऊर्जा से निर्माण होता है, वह राजसिक है। सत्व गुण यथास्थिति है (रजसा वर्तमानः)।
सौर मण्डल के क्षेत्रों के देव ३३ हैं, असुर ९९ हैं। अतः ३/४ भाग अनिर्मित विश्व है, जो आकाश में सदा बना रहता है। निर्मित विश्व में जितना नष्ट होता है, उतना पुनः मूल स्रोत से बन जाता है।
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