रक्षाबंधन ३० या ३१ को ...किस दिन मनाएं ?

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  • 31 October 2024
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पं-राजमोहन डिमरी (ज्योतिर्विद )- रक्षाबंधन ३०/३१ अगस्त २०२३ को बड़े हर्षोल्लास के साथ सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाएगा! परंतु २ दिन क्यों? ऐसे ही परिस्थिति पिछले वर्ष भी बनी थी... १-सर्वप्रथम ३० अगस्त २०२३ का विचार करते हैं... इदं भद्रायां न कार्यम् अर्थात्- मुख्यतः 2 कार्य भद्रा काल में ना करें.. द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा… श्रावणी नृपतिं हन्तिं ग्रामं दहति फाल्गुनी.. भद्रां विना चेदपराह्ने तदा परा… तत् सत्वे तु रात्रावपीत्यर्थ: (धर्मसिन्धु, निर्णय सिंधु व अन्य ग्रंथ) अर्थात— भद्राकाल में रक्षाबंधन करने से देश के राजा घर के प्रधान का नाश तथा होलिका दहन करने से गांव की हानि अवश्य होती है… यदि भद्रा रात्रि में भी समाप्त होती हो तो भद्रा के उपरांत ही रक्षाबंधन करें.. अतः अपना कल्याण चाहने वाले भद्रा काल में रक्षाबंधन और होलिका दहन ना करें… आपातकाल में होलिका दहन,भद्रा के मुख को छोड़कर पुच्छकाल में किया जा सकता है… लेकिन- रक्षाबंधन के संबंध में निर्णयसिंधुकार स्वर्गीय महा उपाध्याय श्री पंडित विद्याधर गौड़ जी ने श्रावणी कर्म उपयोगी संक्षिप्त निर्णय में कहा है... भद्रायोगे रक्षाबंधनस्यैव निषेधात्… एवं प्रतिपद्योगोऽपि न निषिद्ध: .. अर्थात- भले ही रक्षाबंधन प्रतिपदा से युक्त हो परंतु सम्पूर्ण भद्रा का त्याग तो दूर से ही कर देना चाहिये.. इस वर्ष ३० अगस्त २०२३ को रक्षाबंधन का त्यौहार रात्रि में करना शास्त्र सम्मत है जबकि ३१ अगस्त २०२३ को सूर्योदय में पूर्णिमा प्राप्त हो रही है… ऐसा क्यों? आइये-इस पर विचार करते हैं.... पूर्णिमायां भद्रा रहितायां त्रिमुहूर्त्ताधिकोदव्यापिनीयां अपराह्ने प्रदोषे वा कार्यम्…. उदय त्रिमुहूर्त्त न्यूनत्वे पूर्वेद्युर्भद्रा रहिते प्रदोषादि काले कार्यम्.. तत्सत्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यात्… ( धर्मसिंधु व निर्णय सिंधु) अर्थात- भद्रा रहित और तीन मुहूर्त से अधिक उदयकाल व्यापनी पूर्णिमा के अपराह्न या प्रदोष काल में करें! यदि तीन मुहूर्त से कम हो तो न करें… ऐसी परिस्थिति में जब भद्रा बीत जाए,फिर चाहे रात्रि में ही बीते,तब रक्षाबंधन करें.. क्योंकि रक्षाबंधन देव कार्य है एवं दिन में ही करना उचित रहता है किन्तु दिनगत कर्म के संबंध में धर्मसिंधु व नागदेव का वचन है कि किसी कारणवश दिन के कर्म, यदि दिन में ना किया जा सके तो रात्रि के प्रथम प्रहर तक अवश्य कर लेने चाहिए! रात्रौ प्रहर पर्यन्तं दिनोक्तकर्माणि कुर्यात् … (धर्म सिंधु तृतीय परिच्छेद पूर्वार्द्ध ) दिवोदितानि कृत्यानि प्रमादादकृतानि वै.. शर्वर्याः प्रथमे भागे तानि कुर्याद्यथाक्रमम्.. (नागदेव) ३१ अगस्त २०२३ का रक्षाबंधन कैसे? जो माता-बहने रात्रि में किसी कारणवश ३० अगस्त २०२३ की रात्रि को रक्षाबंधन न कर सके वें माता बहने, ३१ अगस्त २०२३ को प्रातः काल ०७:०५ तक (पूर्णिमा) तथा उसके बाद भी उदया तिथि होने से रक्षाबंधन के त्योहार को प्रेम पूर्वक मनाएं.. ऐसा क्यों ? क्योंकि काल माधव कहता है.. या तिथिससमनुप्राप्य उदयं याति भास्करः सा तिथिः सकला ज्ञैया स्नान दान व्रतादिषु.. उदयन्नैव सविता यां तिथिम् प्रतिपद्यते.. सा तिथिः सकलाज्ञेया दानाध्यन कर्मसु.. अर्थात- सूर्योदय के बाद तिथि चाहे जितनी हो उसी दिन को व्रत-पूजा-यज्ञ अनुष्ठान-स्नान और दानादि के लिए संपूर्ण अहोरात्र में पुण्य फल प्रदान करने वाली माना गया है.. (श्राद्ध कर्म को छोड़कर) निष्कर्ष :- ३० अगस्त २०२३ को भद्रा के उपरांत रात्रि 9:01 से रात्रि के प्रथम प्रहर 9:54 तक रक्षाबंधन शास्त्र सम्मत है… ३१ अगस्त २०२३ को उदया तिथि होने से भी रक्षाबंधन का त्यौहार शास्त्र सम्मत है… ३० अगस्त २०२३ का मुहूर्त मुख्य तथा ३१ अगस्त २०२३ का मुहूर्त गौण है, दोनों मुहूर्त शास्त्र सम्मत है अतः सुविधानुसार उपयोग में लाएं..



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